पप्पू यादव 32 साल पुराने मामले में बरी होते ही बोले- देश में आपातकाल जैसी स्थिति

बिहार के मधेपुरा की एक स्थानीय अदालत ने सोमवार को चार बार के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को 32 साल पुराने अपहरण के एक मामले में बरी कर दिया। पप्पू यादव पिछले पांच महीनों से जेल में बंद थे।

फोटो: IANS
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नवजीवन डेस्क

बिहार के मधेपुरा की एक स्थानीय अदालत ने सोमवार को चार बार के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को 32 साल पुराने अपहरण के एक मामले में बरी कर दिया। पप्पू यादव पिछले पांच महीनों से जेल में बंद थे। उन्हें उस समय गिरफ्तार किया गया था, जब वह कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान लोगों के कल्याण कार्यो में लगे हुए थे। सूत्र इस घटनाक्रम को कुशेश्वर स्थान और तारापुर विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से जोड़ रहे हैं।

बरी होने के बाद बड़ी संख्या में जन अधिकार पार्टी के समर्थक मधेपुरा कोर्ट में जमा हो गए और उन्होंने पप्पू यादव के पक्ष में नारेबाजी की। पप्पू यादव ने कहा, "मैं पिछले 5 महीने से एक ऐसे मामले में जेल में बंद हूं, जिसमें आम लोगों को एक दिन के लिए भी बंद नहीं किया जा सकता। देश में आपातकाल जैसी स्थिति है। आम लोगों की हत्या हो रही है। यह तानाशाही शासन है, जहां किसानों की हत्या की जा रही है। इन सबके बावजूद, सच्चाई की हमेशा जीत होती है।"

उन्होंने और उनके जेएपी ने आरोप लगाया कि उनकी गिरफ्तारी सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा भाजपा के सारण सांसद राजीव प्रताप रूडी के आवास परिसर में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लगभग 40 एंबुलेंस अप्रयुक्त स्थिति में रखे होने की बात उजागर करने पर राजनीतिक प्रतिशोध का नतीजा थी।


पप्पू यादव को 29 जनवरी, 1989 को मधेपुरा के मुरलीगंज पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज होने के तीन दशक बाद अपहरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में शैलेंद्र यादव ने दावा किया था कि उनके चचेरे भाई राजकुमार यादव और पप्पू यादव के करीबी सहयोगी उमाकांत यादव के लोगों ने अपहरण कर लिया था।

हालांकि, 'पीड़ित' राजकुमार यादव ने दावा किया - पप्पू यादव को पांच महीने पहले जो गिरफ्तार किया गया था, वह भ्रम का मामला था। उसने कहा, "मुझे और उमाकांत को 28 जनवरी 1989 को पप्पू यादव की गाड़ी में बिठाया गया था। कुछ घंटों के बाद, हम उनके घर से निकले और मधेपुरा पहुंचे। हमें शुरू में लगा कि हमारा अपहरण कर लिया गया है .. लेकिन वह भ्रम था।"

जेएपी के राज्य प्रमुख राघवेंद्र कुशवाहा ने कहा, "पूरे तथाकथित अपहरण का कानूनी पहलू बेहद चौंकाने वाला था। इस मामले में पप्पू यादव को 1989 में गिरफ्तार किया गया था। कानूनी कार्यवाही के अनुसार, पुलिस को प्राथमिकी के 90 दिनों के भीतर आरोपपत्र दाखिल करना था। मधेपुरा पुलिस चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई और पप्पू को जमानत मिल गई।"

उन्होंने कहा, "पप्पू यादव 2014 का संसदीय चुनाव मधेपुरा से जीते थे और केंद्र सरकार ने उन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराई थी। इसका मतलब है कि जब भी वह देश के किसी भी स्थान पर जाते थे, तो संबंधित जिले की पुलिस और संबंधित जिलों के पुलिस प्रशासन को सूचित करते थे। उन्हें उनकी वाई श्रेणी की सुरक्षा के अलावा अतिरिक्त सुरक्षा देनी पड़ती थी, जिसमें सीआरपीएफ के 6 जवान शामिल होते थे।"

कुशवाहा ने कहा, "उन्होंने कई बार मधेपुरा और बिहार के अन्य जिलों का दौरा किया। वह विधानसभा चुनाव 2020 में खुले तौर पर प्रचार में शामिल थे। राज्य पुलिस ने अपहरण के मामले में उन्हें उस समय गिरफ्तार क्यों नहीं किया, जबकि उन्हें उस मामले में भगोड़ा घोषित किया गया था।"


पप्पू यादव के वकील विशाल ठाकुर ने कहा, "उस 32 साल पुराने तथाकथित अपहरण के मामले में 11 लोगों पर मामला दर्ज किया गया था और उनमें से 4 को बरी कर दिया गया था। पप्पू यादव उन 7 आरोपियों में से थे, जिन्हें बिहार पुलिस द्वारा भगोड़ा घोषित किया गया था।"

उन्होंने कहा, "जब वह तिहाड़ जेल में बंद थे, तब क्या बिहार पुलिस को पता नहीं था? जब वह 2014 से 2019 तक सांसद थे और मधेपुरा, पटना और दिल्ली में आधिकारिक आवास था, तो बिहार पुलिस ने उन्हें भगोड़ा क्यों घोषित किया था। उन्होंने मधेपुरा का दौरा किया था। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान भी कई बार वहां गए तो भगोड़ा कैसे हो गए।"

आईएएनएस के इनपुट के साथ

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