'धारावी से 'सक्रिय कचरे के ढेर' में लोगों को किया जा रहा शिफ्ट', कांग्रेस बोली- गरीब मरे तो मरे.. मोदी को नहीं पड़ता फर्क
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि धारावी की झुग्गियों में रह रहे 50 हज़ार से 1 लाख निवासियों को देवनार के एक एक्टिव लैंडफिल यानि 'सक्रिय कचरे के ढेर' वाली जगह पर शिफ़्ट करने की योजना है।

महाराष्ट्र के धारावी रिडेवलेपमेंट प्रोजेक्ट को लेकर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं। अंग्रेजी अखबर इंडियन एक्सप्रेस ने अदाणी के धारावी प्रोजेक्ट पर बड़ा ख़ुलासा किया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि धारावी की झुग्गियों में रह रहे 50 हज़ार से 1 लाख निवासियों को देवनार के एक एक्टिव लैंडफिल यानि 'सक्रिय कचरे के ढेर' वाली जगह पर शिफ़्ट करने की योजना है। इंडियन एक्सप्रेस को RTI के ज़रिए ये जानकारी मिली है और अधिकारियों ने इसकी तस्दीक भी कर दी है।
इधर, कांग्रेस ने एक बार फिर पीएम मोदी और अडानी पर हमला बोला है। कांग्रेस ने एक पोस्ट में कहा है कि नरेंद्र मोदी के सबसे खास दोस्त अडानी मुंबई के धारावी को उजाड़ रहे हैं। अडानी को धारावी में अपनी दुनिया बसानी है, जहां अमीरों के लिए सारी सुविधाएं हों। इसके लिए करीब 1 लाख गरीब भारतीय लोगों को धारावी से हटाकर, मुंबई के सबसे बड़े कचरे के ढेर पर शिफ्ट किया जाएगा। ये कचरे का ढेर हर घंटे करीब 6202 किलोग्राम मीथेन गैस उत्सर्जित करता है, जिससे हवा बेहद जहरीली है। साथ ही इससे निकलने वाला जहर वहां के पानी में भी घुला हुआ है।
कांग्रेस ने आगे कहा कि ऐसे में जिन 1 लाख गरीब भारतीयों को वहां शिफ्ट किया जाएगा, उनकी सेहत पर इसका खराब असर होगा। लेकिन, मोदी सरकार को क्या फर्क पड़ता है। उसे तो सिर्फ अमीरों की मौज से मतलब है। गरीब मरे तो मरे।
नरेंद्र मोदी और अडानी भारत को 'दो भारत' में बदल रहे हैं। एक भारत जो उनके चहेते अमीरों का है, जिनके लिए हर सुख सुविधाएं हैं और दूसरा भारत जहां गरीब की जिंदगी की कोई कीमत नहीं, उसका शोषण किया जा रहा है।
दरअसल, अंग्रेजी अखबार इंडियन एंक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया कि सीपीसीबी ने पर्यावरण को लेकर जो मानदंड और दिशानिर्देश बनाएं है, यह उसके बिल्कुल उलट है। दरअसल एक बंद लैंडफिल में डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के लिए सीपीसीबी के 2021 के दिशानिर्देशों के अनुसार, अस्पताल, आवास और स्कूल जैसी सुविधाओं को लैंडफिल के अंदर नहीं बनाया जा सकता है और इसकी सीमा से 100 मीटर का नो-डेवलपमेंट-जोन अनिवार्य है। लेकिन देवनार कोई बंद लैंडफिल नहीं है। इसके बजाय यह एक एक्टिव लैंडफिल है। यह जहरीली गैंसे और लीचेट छोड़ता है।
एनजीटी की मुख्य बेंच को सौंपी गई 2024 की सीबीसीबी रिपोर्ट के अनुसार, देवनार लैंडफिल से हर घंटे औसतन 6,202 किलोग्राम मीथेन उत्सर्जित होती है। इससे यह भारत के टॉप 22 मीथेन हॉटस्पॉट में से एक बन गया है। यही कारण है कि धारावी के लोगों को देवनार लैंडफिल साइट पर ट्रांसफर करने का राज्य का फैसला कई सवाल और चिंताएं पैदा करता है।
अखबर की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि धारावी में फैली 600 एकड़ की झुग्गी-झोपड़ियों और कारखानों में से 296 एकड़ जमीन धारावी डेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के लिए तय की गई है। इसका मकसद एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती को बेहतर आवास और सुविधाओं के साथ एक आधुनिक शहरी केंद्र में बदलना है। इसमें वहां रहने वाले लोगों को इन-सीटू और एक्स-सीटू पुनर्वास देने का प्रस्ताव है। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एसवीआर श्रीनिवास इस प्रोजेक्ट के सीईओ हैं।
आपको बता दें, महाराष्ट्र में पिछले साल विधानसभा चुनाव हुए थे। इससे एक दिन पहले महाराष्ट्र सरकार ने धारावी स्लम रिडेवलेपमेंट प्रोजेक्ट के अनुमानित 50,000-100000 लाख लोगों को देवनार लैंडफिल में फिर से बसाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। यह जगह मुंबई के सबसे बड़े कचरा डंपों में से एक है। यह प्रोजेक्ट अडानी ग्रुप और महाराष्ट्र सरकार दोनों की तरफ से चलाया जा रहा है।
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