दो साल बाद लौटी है सजावटी लाइटों के लिए दिल्ली के बाजार में रौनक, मेक इन इंडिया अपनी जगह, पर चीनी माल की अब भी बिक्री

दिल्ली में दिवाली की रौनक बढ़ने लगी है। साथ ही दिल्ली के बाजारों, खासतौर से सजावटी लाइटों के बाजारों में करीब दो साल बाद रौनक वापस आई है। जहां एक तरफ मेक इन इंडिया पर जोर है वहीं चीनी माल की भी खूब बिक्री हो रही है।

फोटो : विपिन
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आसिम खान

दिल्ली के भागीरथ प्लेस मार्केट में इस साल इलेक्ट्रॉनिक पटाखों की धूम है। बटन दबाते ही इससे रंग-बिरंगी रोशनी निकलती है और पटाखों की जोरदार आवाज आती है। ये लगभग 1,500 रुपये में बिक रहे हैं। इनकी बिक्री कर रहे विक्की का कहना है कि ‘पटाखों पर बैन है और लोग भी प्रदूषण को लेकर सतर्क हैं, ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक पटाखे अच्छी संख्या में बिक रहे हैं।’

ग्राहकों को निबटाने के बीच में ही सचदेवा इलेक्ट्रिकल अप्लायेंसेज के अभिषेक ने कहा कि ‘दो साल तक तो बिजनेस मंदा ही रहा। इस बार कुछ बिक्री हो रही है। आम तौर पर बिकने वाली लड़ी लाइटों के अलावा लोग इस बार झरने वाली लाइटें और स्टार परदे चुन रहे हैं। इस बार ये नए आइटम हैं। 10x10 मीटर झरने वाली लाइट की कीमत 400 रुपये है जबकि 20 पीस स्टार परदे की कीमत 350 रुपये।’

फोटो : विपिन
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भुक-भुक कर और सामान्य तौर पर जलने वाली लाइट की लड़ी से लेकर टिमटिमाने वाले सितारों, इलेक्ट्रिक दीये और फल वाली लाइट्स तक बाजार में चीनी उत्पाद भरे पड़े हैं। अभिषेक के पिताजी ने कहा कि ‘पूरे बाजार में चीनी उत्पाद हैं। यहां के कुछ दुकानदार बड़े आयातक हैं। हम-जैसे रिटेलर उनसे ही माल लेते हैं और थोड़े मार्जिन पर उन्हें बेचते हैं।’ इन उपादों की कोई वारंटी नहीं होती। वैसे, दुकानदारों ने कहा कि ये ‘आम तौर पर एक-डेढ़ साल तक आराम से चल जाते हैं।

कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन से पहले राहुल सिंह यहां नियमित तौर पर आते रहे हैं। दो साल बाद यहां आने पर उन्होंने कहा कि ’यहां भीड़-भाड़ और इतनी सारी रंग-बिरंगी लाइट आसपास देखकर बहुत खुशी हो रही है। इसने तो मुझे उत्साह से भर दिया है।’

फोटो : असीम
फोटो : असीम

पूरे साल स्विच, बल्ब, केबल-जैसे सामान्य इलेक्ट्रिक सामान बेचने वाली दुकानों में इस वक्त बाहर सजावटी लाइट लगी हैं। लाइट हाउस के रविकांत का कहना है कि ’हम पिछले कई दशकों से लैम्प और सजावटी लाइट के बिजनेस में हैं। लेकिन 2020 के बाद से हमने चीनी उत्पादों की बिक्री बहुत हद तक बंद ही कर दी है। आज हमारे पास जो कुछ है, उसमें से 20 प्रतिशत ही चीनी है, और वह भी इसलिए कुछ ग्राहक इसकी मांग करते हैं।’ यह पूछने पर कि ’2020 के बाद क्यों?’, वह कहते हैं कि ’हम चीनी उत्पाद बेचे ही क्यों? देखिए, चीन हमारे साथ क्या कर रहा है। हम भारतीय उत्पादों की अधिक बिक्री को प्रोत्साहित कर रहे हैं ताकि हमारे उत्पादक और इनमें लगे लोग अधिक काम पाएं।’ लेकिन देसी उत्पाद के प्रति यह भाव कितना है, यह पूछने पर कांत कहते हैं कि ‘मैं नहीं जानता कि और लोग क्या सोचते हैं। लेकिन लाइट का रेगुलर बिजनेस करने वाले दुकानदार अब भारतीय उत्पादों की बिक्री को तरजीह देते हैं। ये विश्वसनीय और टिकाऊ हैं तथा इनकी मरम्मत भी हो सकती है।’


कुछ कारीगर भी कांच से बने और एलईडी लगे हाथ से बने खूबसूरत सजावटी लैंप भी बेच रहे हैं। नदीम ने बताया, ‘यह छत्र है, यह झूमर है। छत्र 400 रुपये का है। बड़ा वाला झूमर 800 रुपये का।’ यह पूछने पर कि क्या विदेशी माल है, उसने कहा, ‘नहीं, हमने इसे खुद तैयार किया है। हम हाथों से इसे तैयार करते हैं और हमारा वर्कशॉप सीलमपुर में है।’ चांदनी चौक रोड पर ‘लाइटिंग बुटीक’ के मालिक रवि कुमार कहते हैं कि उन्होंने कभी भी चीनी लैंप नहीं बेचे। उन्होंने अपनी दुकान के बाहर ‘मेक इन इंडिया’ का बड़ा-सा बोर्ड लगा रखा है। कुमार ने बताया कि ‘हम अपने ग्राहकों को उनकी सुविधा के अनुरूप उत्पाद देते हैं। और हम इस बिजनेस में 1963 से हैं।’

बाजार में ही एक दुकान के बाहर एक छोटे टेबल पर 17 साल के गोविंद ने धागे वाली लाइट और ई-दीया के कुछ पैकेट लगा रखे हैं। धागे वाली लाइट के दाम 50 रुपये और 18 ई-दीये का एक पैकेट 50 रुपये का है। वह बहुत खुश नहीं दिखता, पर बताता है कि ’सामान्य दिनों में वह एक दुकान में सेल्समैन है। दीपावली से पहले कुछ अतिरिक्त पैसे हो जाएं, इसलिए वह इनकी बिक्री कर रहा है।

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