सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में बनाई थीं गाइडलाइंस फिर भी देश भर में खुले पड़े मौत के कुंओं में जान गंवा रहे हैं मासूम

तमिलनाडु के त्रिची में बोरवेल में गिरे सुजित को नहीं बचाया जा सका। तीन दिन बार उसका शव ही बाहर आया। इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल दायर कर सुप्रीम कोर्ट के उन दिशा निर्देशों को लागू करने की मांग की गई है जो 2010 में जारी हुए थे।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

दो साल का मासूम सुजित विल्सन नहीं बच सका। करीब 72 घंटे की कोशिशें बेकार गईं और आखिरकार उसका शव ही निकाला जा सका। सुजित 100 फीट गहरे एक बोरवेल में गिर गया था जिसे तमिलनाडु के त्रिची में खुला छोड़ दिया गया था। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल कर सरकार के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग की गई है। याचिका में बोरवेल में बच्चों के गिरने की घटनाओं को रोक पाने में सरकार की नाकामी को उजागर किया गया है, साथ ही इसे सुप्रीम कोर्ट की ऐसे मामलों में 2010 की गाइडलाइन की अनदेखी बताया गया है।

सुजित को बचाने के लिए हालांकि हर संभव कोशिश की गई, लेकिन सारी कोशिशें बेकार ही साबित हुईं। मंगलवार सुबह सुजित का शव ही निकाला जा सका। इस घटना से विचलित वकील जी एस मणि ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने ऐसे मामलों में केंद्र और राज्य सरकार दोनों की नाकामी को उजागर किया है। याचिका में कहा गया है कि देश भर में लगातार ऐसे मामलों की खबरें आती रही हैं।

उन्होंने अखबारों में प्रकाशित रिपोर्टों के आधार पर कहा है कि 2012 में मध्य प्रदेश में 67 बच्चे ऐसे ही बोरवेल में गिरकर जान गंवा चुके हैं। इसी तरह की 67 घटनाएं महाराष्ट्र में, उत्तर प्रदेश में 19, गुजरात में 18 और तमिलनाडु में 13 घटनाएं सामने आ चुकी हैं।

इसी साल जून में पंजाब में भी दो साल का एक बच्चा करीब 110 घंटे तक बोरवेल में फंसा रहा था। ऐसी ही घटना की खबर पुणे से भी आई थी जहां चह साल का एक बच्चा नहीं बचाया जा सका।


याचिका के मुताबिक, “तमिलनाडु के त्रिची का ताजा मामला सुजित की मौत का है, जिससे साबित होता है कि यह खुले हुए बोरवेल मौत का कुंआ साबित हो रहे हैं।”

गौरतलब है कि 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अन्य जरूरी निर्देशों को अलावा साफ कहा था कि जब भी ऐसे ट्यूब वेल या बोरवेल खोदे जाएं तो उन्हें बंद भी किया जाना अनिवार्य हो। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक:

  • बोरवेल खोदे जाने से कम से कम 15 दिन पहले बोरवेल के मालिक को प्रशासन को सूचना देनी होगी
  • बोरवेल या ट्यूब वेल निर्माण से पहले इसका पंजीकरण कराना जरूरी होगा
  • बोरवेल और ट्यूबवेल के नजदीक एक साइनबोर्ड लगाना होगा जिसमें खुदाई करने वाली एजेंसी का पता, इस्तेमाल करने वाली एजेंसी और मालिक का पता लिखा होना चाहिए
  • वेल के चारों तरफ कंटीले तारों की बाड़ लगाना होगा
  • बोरवेल के चारों तरफ तय माप का सीमेंट का प्लेटफार्म बनाना होगा
  • बोरवेल को बंद करने के लिए मजबूत स्टील प्लेट को पाइप, नट-बोल्ट से कसकर लगाना होगा
  • पंप की मरम्मत के दौरान भी वेल को खुला और बिना ढका नहीं छोड़ा जाना चाहिए
  • मरम्मत के बाद गड्ढों को भरना जरूरी होगा
  • बेकार हो चुके बोरवेल को नीचे से ऊपर तक मिट्टी, रेत और ड्रिल कटिंग से भरना होगा
  • खुदाई का काम हो जाने के बाद वहां की जमीन की हालत पहले जैसी करनी होगी
  • जिलाधिकारी को यह अधिकार होना चाहिए कि वह इन दिशा निर्देशों का पालन सुनिश्चित कराए। इसकी जिम्मेदारी सरकार और राज्य प्रशासन पर भी है
  • जिले, ब्लॉक और ग्राम स्तर पर सभी बोरवेल और ट्यूबवेल की जानकारी और उनकी दशा के बार में जानकारी उपलब्ध हो। साथ ही यह भी अंकित हो कि इनमं से कितने बेकार हो गए हैं और उन्हें भरा गया है या नहीं।
  • अगर कोई बोरवेल बेकार हो जाता है तो उसका प्रमाणपत्र लेना जरूरी हो कि इस बोरवेल को पूरा भर दिया गया है
  • सभी दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए औचक निरीक्षण किया जाना जरूरी है

याचिका में मांग की गई है कि ऐसे मामलों में जो भी अफसर दोषी पाए जाएं उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही हो।

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