नेपाल यात्रा के दौरान मधेशियों का मुद्दा नहीं उठाने के लिए पीएम मोदी की चौतरफा आलोचना

मुनि ने बताया कि मधेशी लोगों में भारत को लेकर एक नाउम्मीदी की भावना है क्योंकि ऐसा समझा जा रहा है कि भारत ने उनके एजेंडे को पूरी तरह त्याग दिया है और संवैधानिक बदलाव के मुद्दे पर वह काठमांडु पर दबाव नहीं बना रहा है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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धैर्य माहेश्वरी

हाल में संपन्न हुई पीएम मोदी की नेपाल यात्रा के दौरान उन्होंने वहां संवैधानिक बदलाव के समर्थन में कुछ नहीं बोला और इसे लेकर मधेशी राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने उनकी काफी आलोचना की है।

नेपाल के जनकपुर के रहने वाले मधेशी अलगाववादी प्रोफेसर सीके राउत ने नवजीवन को बताया, “सभी लोग उनसे यह उम्मीद कर रहे थे कि वे इस मुद्दे पर बोंलेगे, जबकि न सिर्फ उन्होंने इसकी पूरी तरह से उपेक्षा की बल्कि एक बार भी मधेशी शब्द का भी इस्तेमाल नहीं किया।” राउत पीएम मोदी के उस भाषण का संदर्भ दे रहे थे जो उन्होंने अपनी यात्रा के पहले दिन दिया था।

मधेशी-बहुल जनकपुर में पीएम मोदी की यात्रा को असफल करार देते हुए उन्होंने कहा, “वे दुनिया के इतने बड़े कद के नेता हैं, बावजूद इसके दूर-दराज के जिलों से बुलाए गए लोगों को उनसे नाउम्मीदी हाथ लगी और वे भारी मन से लौटे।”

राउत ने इस बात का भी उल्लेख किया कि नेपाली सुरक्षा एजेंसियों ने जनकपुर के रैली स्थल से उनके भाषण के दौरान 28 लोगों को गिरफ्तार कर लिया, उनमें से ज्यादातर को अगले दिन छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा, “उनका एकमात्र अपराध यह था कि पीएम मोदी के स्वागत की तख्तियां लिए हुए थे और स्वतंत्र मधेशी राज्य के समर्थन में नारे लगा रहे थे।” राउत ने यह भी बताया कि नेपाल की पुलिस उन पर 24 घंटे निगरानी रख रही है।

पीएम मोदी के साथ रैली में आए हुए लोगों को संबोधित करने वाले प्रांत संख्या 2 के मुख्यमंत्री लालबाबू राउत ने अपने भाषण के दौरान यह कहा कि “भेदभावपूर्ण” संविधान के खिलाफ मधेशी लोगों का “संघर्ष” जारी रहेगा।

मुख्यमंत्री राउत ने कहा, “सरकार मधेश के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित है। पूर्वाग्रह से ग्रसित मानसिकता की वजह से मधेशियों को तुलनात्मक रूप से ज्यादा गरीबी, बेराजगारी और शोषण में जी रहे हैं।”

भारत सरकार के पूर्व विशेष दूत और नेपाल विशेषज्ञ प्रोफेसर एसडी मुनि ने नवजीवन को बताया, “संविधान या मधेशियों के मुद्दे को न तो पीएम मोदी के संयुक्त वक्तव्य में उठाया गया और न ही उनके किसी भाषण में।”

मुनि ने कहा, “मुख्यमंत्री का पीएम मोदी के सामने यह कहना कि संविधान के लिए उनका संघर्ष जारी रहेगा नई दिल्ली के लिए एक बहुत बड़ा संदेश है।”

मुनि ने बताया कि मधेशी लोगों में भारत को लेकर एक नाउम्मीदी की भावना है क्योंकि ऐसा समझा जा रहा है कि भारत ने उनके एजेंडे को पूरी तरह त्याग दिया है और संवैधानिक बदलाव के मुद्दे पर वह काठमांडु पर दबाव नहीं बना रहा है।

मुनि ने दोहराया, “उन्होंने चुनाव प्रक्रिया की प्रशंसा की, नई स्थायी सरकार के बारे में बात की, लेकिन संविधान के सवाल को नहीं उठाया।”

मुनि ने यह भी जोड़ा कि पीएम मोदी नेपाल में “भारत-विरोधी भावना” का सामना करने या उससे निपटने में नाकामयाब रहे, जो पहाड़ों में बसे लोगों में काफी ज्यादा है। इसकी जड़ें 2015 में भारत द्वारा नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी में हैं जो उसने संवैधानिक दस्तावेज में नेपाली लोगों की मांगों को शामिल कराने के लिए किया था।

भारत के साथ सांस्कृतिक और धार्मिक जुड़ाव रखने वाले मधेशी लोगों के प्रति सहानुभूति सीमा के इस पार भी बढ़ रही थी

भारत में नेपाल की सीमा से सटे दरभंगा के निलंबित बीजेपी सांसद कीर्ति आजाद ने पिछले सप्ताह पीएम मोदी से यह अपील की थी कि वे नेपाल के साथ की गई भारत की 200 साल पुरानी संधि तोड़ लें, जिसके आधार पर नेपाल को मधेशी जनसंख्या वाले इलाकों पर नियंत्रण मिला हुआ है।।

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