PM शेख हसीना बोलीं- हमारे देश की आजादी में भारत के योगदान के लिए शुक्रिया, बांग्लादेश कैसे हुआ आजाद, जानते हैं आप?

क्या आप जानते हैं कि बांग्लादेश कैसे आजाद हुआ? बांग्लादेश को आजाद कराने में भारत की क्या भूमिका थी? क्या आप जानते हैं जिस समय बांग्लादेश को आजाद कराने में भारत ने मदद की उस समय भारत का प्रधानमंत्री कौन था, बांग्लादेश को आजाद कराने में क्या भूमिका आदा की?

फोटो: ANI
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हैदर अली खान

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना चार दिवसीय भारत दौरे पर हैं। अपने दौरे के दूसरे दिन मंगलवार को राजधानी दिल्ली में राजघाट पहुंचकर उन्होंने महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की। इससे पहले राष्ट्रपति भवन में प्रेस से बात करते हुए प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उन लमहों को याद किया जब उनका देश आजाद हुआ था। शेख हसीना ने कहा कि भारत हमारा हमेशा से एक अच्छा साथी रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा देश जब आजाद हुआ तब भारत और भारत के लोगों ने हमारा समर्थन किया, उस दौरान किए गए भारत के योगदान के लिए मैं शुक्रिया अदा करती हूं।

क्या आप जानते हैं कि बांग्लादेश कैसे आजाद हुआ? बांग्लादेश को आजाद कराने में भारत की क्या भूमिका थी? क्या आप जानते हैं जिस समय बांग्लादेश को आजाद कराने में भारत ने मदद की उस समय भारत का प्रधानमंत्री कौन था और बांग्लादेश को आजाद कराने में क्या भूमिका आदा की? आइए जानते हैं कि आजादी के जिन लम्हों को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने याद किया है। उसके लिए भारत की उस समय की मौजूदा सरकार और प्रधानमंत्री ने किस तरह की भूमिका अदा की थी।

बांग्लादेश के जन्म में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बड़ी भूमिका अदा की थी। 1971 में बांग्लादेश की आजादी से पहले हुआ भारत और पाकिस्तान युद्ध, बांग्लादेश में मुक्ति वाहिनी को भारत का समर्थन देना और इन सबके बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कूटनीति और उनके नेतृत्व की गाथा को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। 1971 का युद्ध भारत के लिए सिर्फ सैन्य जीत नहीं थी, यह एक राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से बड़ी कामयाबी थी। मात्र 24 साल पुराने आजाद भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के ताकतवर दोस्त अमेरिका और चीन को हैरत में डाल दिया था।

ऐसे शुरू हुई थी बांग्लादेश की आजादी की कहानी

1969 में जनरल याह्या खान ने फील्ड मार्शल अयूब खान से पाकिस्तान की बागडोर अपने हाथ में ली थी। इसके बाद अगले साल पाकिस्तान में चुनाव का ऐलान हुआ। कहा जाता है कि आजाद पाकिस्तान में यह सही मायनों में पहला चुनाव था। साल 1970 में हुए इन चुनावों में शेख मुजीबुर रहमान की आवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की 162 में से 160 सीटों पर जीत हासिल की। जुल्फिकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने पश्चिमी पाकिस्तान की 138 में से 81 सीटों पर जीत हासिल की। बहुमत रहमान के पास था और उन्हें ही प्रधानमंत्री बनना चाहिए था, लेकिन पाकिस्तान के सैन्य शासन ने ऐसा होने से रोक दिया। भुट्टो ने कई हफ्तों तक मुजीबुर रहमान से बातचीत की, लेकिन जब मामले का हल नहीं निकला तो याह्या खान ने पूर्वी पाकिस्तान में बर्बरता शुरू कर दी, और यहीं से बांग्लादेश के जन्म की असल जंग शुरू हुई। मार्च 1971 तक आवामी लीग ने सड़क पर उतर कर अपना प्रदर्शन तेज कर दिया। वहीं, पाकिस्तान की सेना खुलेआम बर्बरता कर रही थी। इस दौरान हजारों लोग मारे गए। हमूदुर रहमान कमीशन ने मौतों का अधिकारिक आंकड़ा 26,000 बताया था। वहीं, लाखों शरणार्थी शरण पाने के लिए भारत का रुख किया।


मई 1971 को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन जैकपॉट’ लॉन्च किया

शुरू से ही भारत का समर्थन आवामी लीग और मुजीबुर रहमान को था। पाकिस्तान की सेना की कार्रवाई के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सीधे तौर पर दखलंदाजी का निर्णय नहीं लिया। हालांकि, भारतीय सेना की पूर्वी कमांड ने पूर्वी पाकिस्तान के ऑपरेशन्स की जिम्मेदारी संभाल ली थी। 15 मई 1971 को भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन जैकपॉट’ लॉन्च किया। इस ऑपरेशन के जरिए मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों को ट्रेनिंग, हथियार, पैसा और साजो-सामान की सप्लाई मुहैया कराना शुरू किया। मुक्ति वाहिनी पूर्वी पाकिस्तान की मिलिट्री, पैरामिलिट्री और नागरिकों की सेना थी। इसका मकसद गुरिल्ला जंग के जरिए पूर्वी पाकिस्तान को आजाद करना था।

भारतीय सेना अभी तक इस युद्ध में शामिल नहीं हुई थी, लेकिन दिसंबर 1971 में पाकिस्तान की एक हरकत ने भारत को सीधे जंग में कूदने पर मजबूर कर दिया। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की एयरफोर्स ने भारत से हमले की आशंका को देखते हुए पश्चिमी क्षेत्रों पर हमला कर दिया। फिर क्या था 4 दिसंबर की सुबह तक भारत ने आधिकारिक रूप से पाकिस्तान के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया।

इंदिरा गांधी की रणनीति ने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में कर दिया

भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रणनीति ने पाकिस्तान को चारों खाने चित्त कर दिया और पाकिस्तान दो टुकड़ों में कर दिया। 1971 की जंग के आगाज से पहले ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कई पहलुओं पर रणनीति बना चुकी थीं। उन्होंने अपने सैन्य जनरलों को पूरी छूट दी कि वह मुक्ति वाहिनी को अपने तरीके से तैयार करें और साथ ही खुद भी आने वाले कूटनीतिक संकट के लिए तैयार थीं।

इंदिरा गांधी का 1971 युद्ध के लिए सोच एकदम साफ थी कि यह छोटा और निर्याणक हो। युद्ध लंबा खिंचने से इसमें अमेरिका और चीन जैसे देशों की दखलंदाजी का अंदेशा था। इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान का संकट शुरू होने से लेकर युद्ध तक अपना धैर्य बनाए रखा। शरणार्थियों की संख्या बढ़ रही थी, कलकत्ता से पूर्वी पाकिस्तान की निर्वासित सरकार चल रही थी और भारत में विपक्ष इस सरकार को आधिकारिक पहचान देने की मांग कर रहा था। लेकिन इंदिरा गांधी ने धैर्य बनाए रखा।

पाकिस्तान की एयरफोर्स के हमले के दौरान इंदिरा कलकत्ता में थीं। वह तुरंत दिल्ली पहुंचीं और देश को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हम पर एक युद्ध थोपा गया है। इन शब्दों से हमें इंदिरा की कूटनीति की एक झलक मिलती है।

इंदिरा गांधी की रणनीति थी कि युद्ध छोटा हो लेकिन लंबा खिंचता है तो दुनिया को पहले से ही पाकिस्तान की करतूत पता होनी चाहिए। ऐसे में इंदिरा गांधी ने मार्च से अक्टूबर 1971 तक दुनिया के कई नेताओं को खत लिखकर भारत की सीमा पर चल रहे हालात की जानकारी दी। गांधी ने 21 दिन का जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, बेल्जियम और अमेरिका का दौरा भी किया था। हर जगह इंदिरा ने पूर्वी पाकिस्तान में चल रहे नरसंहार का जिक्र किया।


युद्ध शुरू होने के 13 दिनों में ही पाकिस्तान ने डाल दिया हथियार

16 दिसंबर 1971 और युद्ध शुरू होने के 13 दिन बाद पाकिस्तान की सेना के पूर्वी कमांड के इंचार्ज जनरल एए खान नियाजी ने ढाका में हथियार डाल दिया था। नियाजी ने अपनी सर्विस रिवॉल्वर भारतीय सेना के पूर्वी कमांड इंचार्ज लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा को सौंपकर इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर साइन किया था। इस घटना की तस्वीर भारत के पराक्रम की गवाह बनी थी। 16 दिसंबर की शाम 5 बजे जनरल सैम मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी को फोन करके बताया कि ढाका अब आजाद है और पाकिस्तान की सेना ने बिना शर्त सरेंडर कर दिया है। इंदिरा गांधी इसके बाद संसद पहुंचीं और उन्होंने कहा, “ढाका अब एक आजाद देश की राजधानी है। हम जीत के इस क्षण में बांग्लादेश के लोगों का अभिवादन करते हैं।” तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा को पाकिस्तान को शिकस्त देने और उसके दो टुकड़े करने के लिए ‘अभिनव चंडी दुर्गा’ कहा था।

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