2024 के लोकसभा चुनाव तक पीएम चाहते हैं 10.5 लाख लोगों को नौकरियां देना, लेकिन जरूरत तो आज 9.5 करोड़ नौकरियों की है

नौकरियां देने का निर्देश प्रधानमंत्री की तरफ से उनकी सरकार के 8 साल पूरे होने के बाद आया है, जबकि उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में वादा किया था कि हर साल दो करोड़ रोजगार देंगे। इस हिसाब से तो अब तक 16 करोड़ लोगों को नौकरी मिल जानी चाहिए थी।

 फाइल फोटो : Getty Images
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ऐशलिन मैथ्यू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को सभी विभागों और मंत्रालयों को निर्देश दिया है कि अगले 18 महीनों यानी डेढ़ साल के अंदर 10 लाख 50 हजार लोगों को नौकरी दी जाए। ध्यान रहे कि डेढ़-दो साल बाद 2024 के लोकसभा चुनाव होने हैं। लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि देश में बढ़ती बेरोजगारी को खत्म करने के लिए कम से कम 9.5 करोड़ नौकरियों की जरूरत है।

नौकरियां देने का निर्देश प्रधानमंत्री की तरफ से उनकी सरकार के 8 साल पूरे होने के बाद आया है, जबकि उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में वादा किया था कि हर साल दो करोड़ रोजगार देंगे। इस हिसाब से तो अब तक 16 करोड़ लोगों को नौकरी मिल जानी चाहिए थी।

मौजूदा वक्त में देश में बेरोजगारी दर करीब 8 फीसदी है। अशोका यूनिवर्सिटी के सीईडीए (सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2020 के बीच करीब 10 करोड़ नौकरियां देने के विपरीत 2021 में कम से कम एक करोड़ नौकरियां खत्म हुई हैं।

इस साल यानी फरवरी 2022 में आए सीईडीए के सर्वे में सामने आया है कि देश में 15 से 29 वर्ष आयुवर्ग के युवाओं में रोजगार की दर अक्टूबर-दिसंबर 2021 में 2019 की तिमाही से कम थी और जनवरी-मार्च 2016 तिमाही के मुकाबले 30 फीसदी कम थी। वहीं सीएमआईई की रिपोर्ट के मुताबिक मई 2021 में बेरोजगारी दर 11.84 फीसदी के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी।

मौजूदा 42 करोड़ कार्यबल में से मौजूदा समय में 8 फीसदी बेरोजगार हैं, यानी काम करने लायक 3.5 करोड़ लोगों के पास नौकरियां नहीं हैं। 42 करोड़ में से करीब 2.5 करोड़ लोगों ने तो नौकरी तलाशना ही छोड़ दिया है। वे छोटे-मोटे काम कर रहे हैं लेकिन नौकरियां नहीं तलाश रहे हैं। इनमें से बड़ी संख्या महिलाओं की है क्योंकि कुल कार्यबल में से महिलाओं की भागीदारी में बड़ी कमी दर्ज हुई है।

मोदी सरकार द्वारा अगले डेढ़ साल में सिर्फ 10.5 लाख नौकरियों का वादा करने की कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तीखी आलोचना की है। उन्होने इस बात को रेखांकित किया हैकि देश में बेरोजगारी दर 8 फीसदी पर है जो कि उच्च स्तर है। उन्होंने कहा कि, “वैसे तो असली बेरोजगारी दर 20 फीसदी पार कर चुकी है। अगर विभिन्न सर्वे देखें तो तस्वीर सामने आ जाएगी। कार्यबल से 2.10 करोड़ महिलाएं बाहर हो चुकी हैं और सिर्फ काम करने लायक 9 फीसदी लोग ही काम की तलाश कर रहे हैं।”


उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री अच्छे दिन और हर साल 2 करोड़ नौकरी देने का वादा कर सत्ता मे आए थे। उस वादे का क्या हुआ? हकीकत में देखें तो नोटबंदी के दौरान करीब 14 करोड़ लोगों के रोजगार खत्म हुए, हड़बड़ी में लागू जीएसटी और बिना सलाह-मश्विरे के लागू लॉकडाउन के कारण भी लोगों का रोजगार छिना। 8 साल में 16 करोड़ नौकरियां देने के बजाए इन सालों में 14 करोड़ नौकरियां और रोजगार खत्म हो गए। इस तरह देखें तो कुल 30 करोड़ नौकरियों का नुकसान हुआ है।”

सुरजेवाला ने सवाल उठाया कि आखिर सिर्फ 10.5 लाख नौकरियों की ही घोषणा क्यों की गई जबकि केंद्र और राज्य सरकारों के विभागों में ही 30 लाख पद खाली पड़े हैं। उन्होंने तमाम विभागों में खाली पड़े पदों को सामने रखते हुए कहा कि अकेले केंद्र सरकार के विभागों में 9.1 लाख पद खाली हैं, सरकारी बैंकों में 2 लाख पद खाली हैं. स्वास्थ्य सेवाओँ में करीब 3.5 लाख पद खाली हैं, उच्च शिक्षा में करीब 35000 पद खाली है और सैन्य बलों में 3.5 लाख पद खाली पड़े हैं।

ध्यान रहे कि सरकार ने इसी साल संसद को बताया था कि केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में पहली मार्च 2020 तक 8.72 लाख पद खाली थे। इसी तरह रेल मंत्रालय में 15 लाख मंजूर पदों में से 2.3 लाख पद खाली थे। गृह मंत्रालय में 10.8 लाख मंजूर पदों में से 1.3 लाख पद खाली हैं।

देश में बढ़ती बेरोजगारी पर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि आंकड़ों मे भले ही बेरोजगारी दर 8 फीसदी हो लेकिन “हमें काम करने लायक 20 फीसदी से ज्यादा लोगों के लिए नौकरियां या रोजगार चाहिए क्योंकि बहुत से लोगों को काबिलियत से कम नौकरी या रोजगार मिला हुआ है. ऐसे लोगों को भी बेरोजगार माना जाना चाहिए।”

प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं कि तुरंत 8.4 करोड़ लोगों को नौकरी दी जानी चाहिए और फिर हर साल एक करोड़ लोग जॉब मार्केट में आते हैं उनके लिए व्यवस्था करनी होगी। हमें हर साल उस हिसाब से कम से कम एक करोड़ नौकरियां सृजित करनी होंगी। उन्होंने जोर देकर कहा, “इन 10.5 लाख नौकरियों से कुछ भला नहीं होने वाला है।”


वहीं सीएमआईई के एमडी महेश व्यास ने भी कहा था कि भारत को तुरंत कम से कम 85 लाख नौकरियां सृजित करने की जरूरत है। लेकिन फिलहाल हमारी क्षमता सिर्फ 40 लाख नौकरियों की ही है। सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि सरकार जो तस्वीर दिखा रही है हालात उससे कहीं बदतर हैं क्योंकि सरकार ऐसे लोगों को भी रोजगार में लगा हुआ मान लेती है जिसे 7 दिन के सप्ताह में आधे दिन का ही काम मिलता है।

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