लाखों लोगों की जिंदगियां लील रही दूषित हवा, दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित 15 शहरों में भारत के 12

दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 9 शहरों में भारत के 6 शहर और सर्वाधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 13 भारत के हैं। दुनिया का सर्वाधिक प्रदूषित शहर मेघालय और असम की सीमा पर स्थित औद्योगिक शहर बिरनीहाट है।

दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित 15 शहरों में भारत के 12
दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित 15 शहरों में भारत के 12
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महेन्द्र पांडे

स्विट्ज़रलैंड की वायु गुणवत्ता मोनिटरिंग डेटाबेस से संबंधित संस्था, आईक्यू एयर, द्वारा प्रकाशित वर्ष 2024 की वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के महज 7 देशों और 17 प्रतिशत शहरों की हवा सांस लेने लायक है, यानि वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के अनुरूप है। इस रिपोर्ट को दुनिया के 138 देशों में स्थित 40000 से अधिक मोनीटोरींग केंद्रों द्वारा पीएम2.5 के प्राप्त आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया है। जिन 7 देशों में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के अनुरूप है, वे हैं – एस्टोनिया, आइसलैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, बहामास, ग्रेनाडा और बारबाडोस। 

इस रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के संदर्भ में वैश्विक स्तर पर पहले स्थान पर चाड है, इसके बाद क्रम से कांगो, बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत का स्थान है। सबसे प्रदूषित शहरों में भारत का स्थान पांचवां है। राजधानी दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है, इसके बाद चाड की राजधानी एनदजमेना, बांग्लादेश की राजधानी ढाका, डेमक्रैटिक रीपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी किंशासा और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद का स्थान है।

दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 9 शहरों में भारत के 6 शहर और सर्वाधिक प्रदूषित 20 शहरों में से 13 भारत के हैं। दुनिया का सर्वाधिक प्रदूषित शहर मेघालय और असम की सीमा पर स्थित औद्योगिक शहर बिरनीहाट है। यहाँ पीएम2.5 का औसत स्तर 128.2 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों की तुलना में 25 गुणा अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 2023 की तुलना में पीएम2.5 के औसत स्तर में 7 प्रतिशत की कमी आई है, पर अभी भी इसकी औसत सांद्रता 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों से 10 गुना अधिक है। दिल्ली में वर्ष 2024 में पीएम2.5 का औसत स्तर 91.8 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था।

दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में दूसरे स्थान पर दिल्ली, चौथे स्थान पर मेलानपुर, छठे स्थान पर फरीदाबाद, आठवें स्थान पर लोनी और नौवें स्थान पर नई दिल्ली है। इनके अतिरिक्त 20 सबसे प्रदूषित शहरों में गुरुग्राम, गंगानगर, ग्रेटर नोएडा, भिवाड़ी, मुजफ्फरनगर, हनुमानगढ़ और नोएडा भी शामिल हैं। वायु प्रदूषण के संदर्भ में 20 शीर्ष प्रदूषित शहरों में 4 शहर पाकिस्तान के भी हैं। रिपोर्ट के अनुसार प्रशांत क्षेत्र के देशों में वायु प्रदूषण के समस्या सबसे कम है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स 2023 के अनुसार “पृथ्वी पर कोई अन्य स्थान ऐसा नहीं है जहां वायु प्रदूषण की चुनौती दक्षिण एशिया से ज्यादा कठिन हो। बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान - जहां वैश्विक आबादी का 22.9 प्रतिशत हिस्सा रहता है - दुनिया के शीर्ष चार सबसे प्रदूषित देश हैं। वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण के कारण जीवन के कुल जितने वर्षों की क्षति होती है, उसमें से आधे से अधिक यानि 52.8 प्रतिशत क्षति उच्च प्रदूषण स्तर के कारण दक्षिण एशिया में होती है। यदि ये चार देश विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश के अनुरूप प्रदूषण कम कर दें तो औसत दक्षिण एशियाई नागरिक 5.1 वर्ष अधिक जीवित रहेगा, जबकि भारत नागरिकों की औसत उम्र में 5.2 वर्षों की वृद्धि होगी।


हाल में ही प्रकाशित एक दूसरे अध्ययन के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर इसके मापे गए स्तर से भी अधिक रहता है। एनपीजे क्लीन एयर नामक जर्नल में यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंगहम के वैज्ञानिक डॉ यिन्ग चेन द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार सर्दियों के समय जब दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक रहता है, उसे दौरान हवा में नमी भी अत्यधिक रहती है। अत्यधिक नमी के कारण हवा में मौजूद बहुत छोटे कणों, जैसे पीएम2.5 में नमी के कारण इनका आकार बढ़ जाता है और ऐसे कण माप से बाहर पहुँच जाते हैं।

इस अध्ययन के अनुसार दिल्ली की हवा के ऐरोसॉल में पानी की मात्रा 740 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक पहुँच जाती है जो किसी भी बड़े शहर की तुलना में सर्वाधिक है। दिल्ली में दिसम्बर-जनवरी महीने में वायु प्रदूषण का स्तर सर्वाधिक रहता है और इसी समय हवा में सुबह नमी भी 90 प्रतिशत तक पहुँच जाती है। इस दौरान नमी के कारण पीएम कणों की माप वास्तविक सांद्रता की तुलना में 20 प्रतिशत तक कम हो पाती है। फरवरी-मार्च महीनों में हवा में नमी 80 प्रतिशत तक रहती है और पीएम की वास्तविक सांद्रता मापे गए सांद्रता की तुलना में 8.6 प्रतिशत अधिक रहती है। अप्रैल से जून के दौरान हवा में नमी बहुत कम रहती है, पर जुलाई से सितंबर के बीच मॉनसून के महीनों में हवा में नमी बढ़ती है, पर इस दौरान अधिकतर पीएम कण पानी के साथ बह जाते हैं और इससे इनकी सांद्रता प्रभावित नहीं होती है।

देश की 67.4 प्रतिशत आबादी अपनी सांस के साथ जो हवा लेती है, उसमें पीएम2.5 की सांद्रता केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित मानक से अधिक रहती है। अपनी बड़ी आबादी के कारण दुनिया के किसी भी देश की तुलना में वायु प्रदूषण का असर भारत में सबसे घातक होता है। हमारे देश में उत्तरी क्षेत्र और गंगा का मैदान – बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल - वायु प्रदूषण की दृष्टि से निकृष्ट है। देश के पूरे उत्तरी क्षेत्र में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की आयु औसतन 8 वर्ष कम हो रही है।

पूरे देश के सन्दर्भ में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की औसतन आयु 5.3 वर्ष कम हो रही है, यानि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुरूप यदि हम हवा में पीएम2.5 की सांद्रता रख पाते हैं तो लोगों की औसत आयु में 5.3 वर्ष की बढ़ोतरी होगी। यदि पीएम2.5 की सांद्रता केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों की सीमा में रहता है, तब भी लोगों की औसत आयु में 1.8 वर्षों की बढ़ोतरी होगी।

वायु प्रदूषण के लिए कुछ वर्ष पहले तमाम योजनाएं बनाई गईं, बड़े तामझाम से नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को शुरू किया गया। शहरों में सार्वजनिक स्थानों पर बड़े-बड़े एयर प्युरिफायर लगाए गए, महंगे वाटर गन और वाटर स्प्रिंकलर सडकों पर दौड़ने लगे और सडकों से धूल हटाने के लिए नई मशीनें दौड़ने लगीं – पर इसका क्या असर हुआ किसी को नहीं पता। इनमें से अधिकतर उपकरण अब काम भी नहीं करते। दूसरी तरफ दिल्ली में रूम एयर प्यूरीफायर का एक बड़ा बाजार खड़ा हो गया।

हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है, वह है हरेक आपदा का इवेंट मैनेजमेंट। प्रदूषण भी अब एक इवेंट मैनेजमेंट बन गया है। इस दौर में गुमराह करने का काम इवेंट मैनेजमेंट द्वारा किया जाता है, इसके माध्यम से सबसे आगे वाले को धक्का मारकर सबसे पीछे और सबसे पीछे वाले को सबसे आगे किया जा सकता है। अब तो प्रदूषण नियंत्रण भी एक विज्ञापनों और होर्डिंग्स का विषय रह गया है, जिसपर लटके नेता मुस्कराते हुए दिन रात गुबार में पड़े रहते हैं। पब्लिक के लिए भले ही वायु प्रदूषण ट्रेजिक हो, हमारी सरकार और नेता इसे कॉमेडी में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ते। सरकारें विरोधियों पर हमले के समय वायु प्रदूषण का कारण कुछ और बताती हैं, मीडिया में कुछ और बताती हैं, संसद में कुछ और बताती हैं और न्यायालय में कुछ और कहती हैं। दूसरी तरफ मीडिया कुछ और खबर गढ़ कर महीनों दिखाता रहता है। न्यायालय हरेक साल बस फटकार लगाता है, मीडिया और सोशल मीडिया पर खबरें चलती हैं, फिर दो-तीन सुनवाई के बाद मार्च-अप्रैल का महीना आ जाता है और न्यायालय का काम भी पूरा हो जाता है।

निरंकुश सत्ता के लिए जनता कुछ नहीं होती तभी हरेक कार्य एक इवेंट होता है, दिखावा होता है। चन्द्रमा पर पहुँचना एक अंतरराष्ट्रीय दिखावा है, सो हम वहां पहुँच गए। दूसरी तरफ देश में वायु प्रदूषण सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या है, इससे अधिकतर सामान्य नागरिक प्रभावित होते हैं – जाहिर है सत्ता इसे उपेक्षित विषय मानती है।

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