कोरोना: दुनियाभर में 22 साल में पहली बार बढ़ेगी गरीबी! 8% आबादी पर खतरा, धरा रह जाएगा गरीबी-भूख हटाने का सपना

यूएन के मुताबिक भारत में 2006 से 2016 के बीच 21 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले थे। बांग्लादेश में शिक्षा, साक्षरता जैसे कार्यक्रमों के कारण साल 2000 से अब तक 3.3 करोड़ लोग गरीबी से उबर गए थे। हालांकि अब एक्सपर्ट्स ने चिंता जताई है कि कोरोना से हालात विपरीत हो सकते हैं।

फोटो: Getty Images
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नवजीवन डेस्क

कोरोना वायरस जितनी तेजी से फैल रहा है उससे भी कई ज्यादा तेजी से इस महामारी ने दुनिया को कई सालों पीछे धकेल दिया है। इसका अनुमान लगाना बेहद ही मुश्किल है कि अब ये आगे कितनी और तबाही मचाने वाला है। क्योंकि अभी सिर्फ कुछ ही महीने हुए हैं और इन महीनों में ही कोरोना वायरस ने दुनिया की 20 साल की उपलब्धियों पर पानी फेर दिया है। इस महामारी से ना सिर्फ भारत में प्रवासी मजदूरों से लेकर तमाम गरीब परिवार के आगे जीने का खतरा है बल्कि दुनिया भर में भी सबसे ज्यादा अगर कोई प्रभावित हुआ है तो वो गरीब तबका ही है।

200 करोड़ लोगों पर गरीबी का खतरा मंडरा रहा है

इस महामारी का सबसे बुरा प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ा है। वर्ल्ड बैंक के अनुमान के मुताबिक सब-सहारा अफ्रीकन देश 25 साल में पहली मंदी से गुजरेंगे। वहीं, दक्षिण एशियाई देश 40 साल में सबसे खराब आर्थिक प्रदर्शन करेंगे। सबसे ज्यादा खतरे में इनफॉर्मल सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारी हैं। करीब 200 करोड़ लोगों के पास हेल्थ केयर, बेरोजगारी सहायता जैसी कोई सुविधा नहीं है। बांग्लादेश में गार्मेंट इंडस्ट्री में 10 लाख लोग अनौपचारिक रूप से काम करते हैं। लेकिन लॉकडाउन की वजह से देश का 7 फीसदी कामगार बेरोजगार हो चुके हैं।

एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में करीब 200 करोड़ लोगों पर गरीबी का खतरा मंडरा रहा है। वायरस का सबसे ज्यादा असर कमजोर वर्ग पर पड़ा है। यही वजह है कि गरीबी बढ़ने का सबसे ज्यादा अनुमान लगाया गया है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक 1998 के बाद पहली बार गरीबी दर बढ़ सकती है। दुनियाभर की बात की जाए तो महामारी के कारण इस साल यानी 2020 के अंत तक दुनियाभर में 50 करोड़ लोग और गरीब हो सकते हैं। इस बात का अनुमान संयुक्त राष्ट्र ने भी लगाया है। अगर ये अनुमान सही हुआ तो दुनिया की 8 फीसदी आबादी गरीब हो जाएगी।


गरीबी के आंकड़ों में हुआ था सुधार

आपको बता दें, 1990 में दुनिया की 36 फीसदी यानी 190 करोड़ आबादी करीब 143 रुपए प्रतिदिन की कमाई के साथ जी रही थी। लेकिन दक्षिण एशिया और चीन में लगातार विकास के कारण 2016 में यह आंकड़ा 73.4 करोड़ लोगों तक आ गया। यूएन के मुताबिक भारत में 2006 से 2016 के बीच 21 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले थे। बांग्लादेश में शिक्षा, साक्षरता जैसे कार्यक्रमों के कारण साल 2000 से अब तक 3.3 करोड़ लोग गरीबी से उबर गए थे।

हालांकि अब एक्सपर्ट्स ने चिंता जताई है कि कोरोना से हालात विपरीत हो सकते हैं। सरकारें आर्थिक बढ़त के लिए कोशिश कर रही हैं। लेकिन ऐसे में गरीबी के खिलाफ चलाए जा रहे कार्यक्रमों में दिए जाने वाले फंड में कटौती भी कर सकती हैं। 2030 तक संयुक्त राष्ट्र ने गरीबी-भूख हटाने और सभी के लिए शिक्षा का जो सपना देखा है, वो अब केवल सपना ही रह जाएगा।

भारत में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए प्रवासी मजदूर

कोरोना वायरस से बचने के लिए भारत में रातों-रात किए गए लॉकडाउन के बाद लाखों प्रवासी मजदूर बेघर और बेरोजगार हो गए हैं। अफ्रीका में भी कुछ हिस्सों में काम पर जाने और लॉकडाउन के कारण लाखों लोग भूख का शिकार हो गए हैं। वहीं, दूसरे देशों से कमाकर घर पैसा भेजने वाले बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। ऐसे में मैक्सिको और फिलीपींस जैसे देशों के कई परिवारों की हालत तो बहुत खराब है।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के फ्रांस्वा-जेवियर बैगनॉड सेंटर फॉर हेल्थ एंड ह्यूमन राइट्स के कार्यकारी निदेशक नतालिया लिनोस बताती हैं कि यह त्रासदी चक्रीय है। गरीबी बीमारी की बहुत बड़ी चालक है और बीमारी परिवारों को हमेशा गरीबी में रखती है। नतालिया के मुताबिक जब कोरोनावायरस जैसी महामारी की बात आती है तो गरीब, साधन वालों की तुलना में ज्यादा प्रभावित होते हैं। वे खाने का स्टॉक नहीं कर सकते, जिसका मतलब है उन्हें बार-बार बाहर जाना पड़ेगा और अगर उनके पास काम है तो भी वे उसे घर से नहीं कर सकते।

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