प्रबल यात्राः वृद्ध नागरिकों में उम्मीद जगा रहा एक कार्यक्रम
आज के समाज में अनेक स्तरों पर वृद्ध लोगों के लिए राहत और सहायता को बढ़ाना जरूरी हो गया है और इसके लिए नीति सुधार के साथ प्रबल यात्रा जैसे प्रयासों और कार्यक्रमों की आवश्यकता भी बढ़ रही है।

राजस्थान के उदयपुर जिले के बगडुंडा गांव के 80 वर्षीय आदिवासी भेरू सिंह आज भी अपने खेत में मेहनत करते हैं, पशुओं के लिए चारा लाते हैं। इस वृद्धावस्था में, 80 वर्ष की आयु में, यह सब करना निश्चय ही आसान नहीं है, पर कोई विकल्प उपलब्ध न होने पर वे कई बार बहुत थक जाने पर भी यह जिम्मेदारियां निभाए जा रहे हैं।
कुछ समय पहले उनके शरीर में जगह-जगह दर्द इतना बढ़ गया कि वे उठ नहीं पाए, इतनी मेहनत कर नहीं पाए। ऐसी स्थिति में पहले ही घर, खेत और पशुओं की कई जिम्मेदारियों को संभाल रही उनकी 78 वर्षीय पत्नी तुलसी बाई पर बहुत अधिक जिम्मेदारी आ गई जिसे संभालना उनके लिए कठिन हो गया और एक दिन खेत जाते हुए एक पत्थर से टकराकर वे बुरी तरह गिर गईं। उनके हाथ में प्लास्टर चढ़ गया।
अब तुलसी भी घर बैठ गईं और संभवतः मानसिक तनाव बहुत बढ़ जाने के कारण उन्हें एक स्ट्रोक सा हुआ जिससे शरीर का कुछ हिस्सा निष्क्रिय हो गया। पति-पत्नी दोनों ही असमर्थ हो गए तो यह परिवार कहां जाए? पड़ौसी जो कर सकते थे उन्होंने किया पर यह पर्याप्त नहीं था।
इस बहुत कठिन समय में इस परिवार के लिए वृद्ध गांववासियों के लिए चल रहे एक कार्यक्रम प्रबल यात्रा से प्राप्त सहायता बहुत उपयोगी सिद्ध हुई। यह कार्यक्रम दक्षिण राजस्थान के लगभग 100 गांवों में चल रहा है। इस कार्यक्रम की सामुदायिक समन्वयक रेखा ने बार-बार भेरू और तुलसी की खोज खबर ली और उनके इलाज की व्यवस्था की।
हाल ही में जब यह लेखक इस गांव में गया तो तुलसी और विशेषकर भेरू की स्थिति में पहले की अपेक्षा काफी सुधार आ गया था और वे तो अपनी लाठी की सहायता से पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था करने के लिए भी जाने को तैयार बैठे थे।
इसी तरह ऐसे अनेक अन्य संकटग्रस्त वृद्ध व्यक्तियों के लिए भी प्रबल यात्रा कार्यक्रम की उचित समय पर सहायता ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रेखा ने बताया कि कुछ समय पहले 70 वर्षीय वारी बाई की कूल्हे की हड्डी टूट जाने पर उनके इलाज में सहायता की गई और फिर उन्हें चलने में सहायता के लिए वाॅकर भी निशुल्क उपलब्ध करवाया गया।
एक अन्य सामुदायिक समन्वयक नानालाल गारिया ने बताया कि मोहिनी गांव में आंबिया और उनकी पत्नी वृद्ध होने के साथ विकलांग भी हैं। इसके बावजूद किसी कारण से उनका राशन और निशुल्क अनाज रुक गया था जिसे फिर से आरंभ करवाया गया। उन्हें छड़ी दी गई और उनके घर में सोलर लाईट की व्यवस्था की गई।
भेरू सिंह के पड़ौस में रहने वाली महिला कमला ने बताया कि प्रबल यात्रा की सहायता से मोतियाबिंद का ऑपरेशन से उसे बहुत राहत मिली और वह ठीक से देख पा रही है। इस कारण गिरने या चोट लगने की संभावना भी कम हो गई है।
इसी तरह विभिन्न तरह से अनेक संकटग्रस्त वृद्ध व्यक्तियों को प्रबल यात्रा कार्यक्रम से सहायता मिल रही है। यह कार्यक्रम अर्थ संस्था द्वारा उदयपुर और राजसमंद जिले के 7 विकास प्रखंडों में प्रयासरत है। इस कार्यक्रम के तहत आने वाले अनेक गांवों में बातचीत करने पर लेखक ने महसूस किया कि वृद्ध नागरिकों के लिए यह सहयोग और सहायता बहुमूल्य है, पर अभी उनके लिए और भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
काकड़माला गांव में झुमली बाई अकेली रहती हैं और वृद्वावस्था में खाना बना भी नहीं सकती हैं। इस स्थिति में वे भोजन के लिए पड़ौसियों की दया पर निर्भर हैं और कई बार भोजन के बिना ही दिन गुजर जाता है।
अंबावी और आसपास के अन्य गांवों में खनन की धूल से जुड़ी बीमारी जैसे एस्बेसटोतिस या सिलिकासिस से त्रस्त अनेक मजदूर हैं। हालांकि आक्यूपेशनल रोग से त्रस्त होने की पहचान होने से उनमें से कुछ को मुआवजा आदि का लाभ मिल गया है, पर अनेक स्वास्थ्य की तबाही से जूझ रहे मजदूरों को यह लाभ नहीं मिल सका है।
इस तरह अनेक गांवों में ऐसे कुछ अधिक असहाय वृद्ध व्यक्ति आपको मिलेंगे जिनकी स्थिति विशेष तौर पर चिंताजनक है और उनके लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। कुछ वर्ष पूर्व बुंदेलखंड के कुछ गांवों में ऐसा ही एक सर्वेक्षण करते समय मुझे ऐसे अनेक अधिक असहाय वृद्ध व्यक्तियों से मिलने का अवसर मिला था जिनके लिए अपने भोजन और स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था कर पाना संभव नहीं था। हालांकि यह सर्वेक्षण सूखे के समय किया गया था, पर लोगों ने बताया कि सामान्य समय में इन वृद्ध व्यक्तियों की स्थिति चिंताजनक ही रहती है।
अतः ऐसे अधिक असहाय वृद्ध व्यक्तियों की सहायता और राहत के लिए कोई विशेष कार्यक्रम सरकार को चलाना चाहिए। हालांकि, सरकार की अधिक कल्याणकारी भूमिका की आवश्यकता ऐसे संदर्भों में अवश्य ही महत्वपूर्ण है, पर इसके साथ वृद्ध नागरिकों के प्रति सामुदायिक और पारिवारिक जिम्मेदारी को भी बढ़ाना जरूरी है। हालांकि इस संदर्भ में भारतीय परिवारों और समुदायों में अच्छी परंपराएं रहीं हैं पर अनेक कारणों से यह परंपराएं दबाव में आई हैं और विभिन्न स्तरों पर इन्हें नए सिरे से मजबूत करना जरूरी हो गया है।
काकड़माला में एक सामूहिक चर्चा में प्रबल यात्रा से जुड़े वृद्ध गांववासियों से वार्ता करने पर यह स्पष्ट हुआ कि अलग रहने वाले वृद्ध दंपत्तियों की संख्या अधिक है और यदि इनमें से एक की मृत्यु हो जाए तो वृद्ध व्यक्ति को पूरी तरह अकेले ही रहना पड़ता है। इन वृद्ध व्यक्तियों के लिए परिवार के युवा सदस्यों की जिम्मेदारी की भावना कम हो रही है और प्रवासी मजदूर परिवारों में इस जिम्मेदारी को निभा पाना और कठिन हो रहा है। तिस पर शराब का उपयोग बहुत से लोगों में बढ़ रहा है और जहां परिवार के युवा सदस्य शराब का नशा करते हैं वहां उनकी परिवार के वृद्ध सदस्यों के प्रति जिम्मेदारी और कम हो जाती है।
अतः आज के समाज में अनेक स्तरों पर वृद्ध लोगों के लिए राहत और सहायता को बढ़ाना जरूरी हो गया है और इसके लिए नीति सुधार के साथ प्रबल यात्रा जैसे प्रयासों और कार्यक्रमों की आवश्यकता भी बढ़ रही है।
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