दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने भारत विरोधी हिंसा को बताया साजिश, कहा- ऐसे लोगों को छोड़ेंगे नहीं

यह हिंसा तब शुरू हुई, जब पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा को अदालत की अवमानना के आरोप में जेल भेजा गया। इसके खिलाफ आंदोलन तेजी से लूट में बदल गया और भीड़ ने शॉपिंग मॉल और गोदामों को लूट लिया। फिर अचानक से भीड़ ने भारतीय मूल के लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया।

फोटोः IANS
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नवजीवन डेस्क

दक्षिण अफ्रीका में पिछले एक हफ्ते में भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ हुई हिंसा और लूट की योजना बनाई गई थी। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने इसका खुलासा करते हुए कहा कि भारतीय मूल के लोगों का बचाव किया जाएगा। हम अपने देश में अराजकता और तबाही नहीं होने देंगे। पिछले एक हफ्ते में देश में रंगभेद के बाद की सबसे भीषण हिंसा में अब तक 121 लोगों की मौत हुई है, जिनमें ज्यादातर भारतीय मूल के हैं।

हिंसा से सबसे बुरी तरह प्रभावित क्वाजलु-नताल प्रांत की शुक्रवार को अपनी पहली यात्रा के दौरान राष्ट्रपति रामफोसा ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि अशांति और लूटपाट की इन सभी घटनाओं को उकसाया गया था और ऐसे लोग हैं, जिन्होंने इसकी योजना बनाई और इसे समन्वित किया। हालांकि, उन्होंने विशेष रूप से किसी पार्टी या समूह को दोष नहीं दिया, केवल यह कहा कि उनकी सरकार ने कई भड़काने वाले लोगों सहित 2,200 से अधिक उपद्रवियों को गिरफ्तार किया है।

रामफोसा ने मीडियाकर्मियों से कहा कि हम उनका पीछा कर रहे हैं। हमने उनमें से एक अच्छी संख्या की पहचान की है और हम अपने देश में अराजकता और तबाही नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय मूल के लोग देश, इसकी अर्थव्यवस्था और समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
राष्ट्रपति ने कहा, उनका बचाव किया जाएगा, उनके पास चिंता करने का कोई कारण नहीं है।

दक्षिण अफ्रीका सरकार ने गुरुवार को कहा था कि दंगा भड़काने वालों में से एक को गिरफ्तार कर लिया गया है और 11 निगरानी में हैं। चोरी सहित विभिन्न अपराधों के लिए अशांति के दौरान कुल 2,203 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। हालांकि, रामाफोसा ने स्वीकार किया कि उनकी सरकार अशांति को रोकने के लिए तेज कार्रवाई कर सकती थी। उन्होंने साथ ही क्वाजुलु-नताल में बढ़ते नस्लीय तनाव पर चिंता व्यक्त की।

यह हिंसा तब शुरू हुई, जब पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा को अदालत की अवमानना के आरोप में जेल भेजा गया। उन्हें भ्रष्टाचार की जांच की गवाही देने से इनकार करने के लिए 15 महीने की जेल की सजा भुगतनी होगी। आंदोलन तेजी से लूट में बदल गया और भीड़ ने शॉपिंग मॉल और गोदामों को लूट लिया। पुलिस के खड़े होने पर भी लोग दुकानों से सामान लूटकर ले जाते दिखे, जिसके बाद पुलिस एवं प्रशासन एकदम शक्तिहीन प्रतीत हो रहा था।

दक्षिण अफ्रीका ने अशांति को दबाने में पुलिस की सहायता के लिए 20,000 से अधिक रक्षा कर्मियों को तैनात किया है। 1994 में श्वेत अल्पसंख्यक शासन की समाप्ति के बाद से सबसे बड़ी सैन्य तैनाती में से एक के बाद सरकार ने कहा कि गुरुवार सुबह तक 10,000 सैनिक सड़कों पर थे और दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रीय रक्षा बल ने भी 12,000 सैनिकों के अपने सभी आरक्षित बलों को बुलाया है। विदेश मंत्री नलदी पंडोर ने कहा कि जिन इलाकों से लूटपाट और दंगों की खबरें आई हैं, उन अधिकांश इलाकों पर अब सरकार ने बेहतर नियंत्रण स्थापित कर लिया है।

बता दें कि देश में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 14 लाख है और इनमें से 70 प्रतिशत के करीब लोग डरबन में रहते हैं। यहां भारतीय मूल के लोगों को टारगेट करते हुए हमले किए जाने के बाद उनके बीच भय का माहौल देखने को मिला है।

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