15 अगस्त की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का संदेश- '2047 तक हम आजादी के दिवानों के सपनों को पूरी तरह साकार कर लेंगे'

राष्ट्रपति ने कहा कि आज़ादी का अमृत महोत्सव बारत की जनता को समर्पित है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण का संकल्प भी इस उत्सव का हिस्सा है। यह भव्य महोत्सव अब ‘हर घर तिरंगा अभियान’ के साथ आगे बढ़ रहा है। आज देश के कोने-कोने में तिरंगा शान से लहरा रहा है।

फोटोः वीडियोग्रैब
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नवजीवन डेस्क

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्र को संबोधित किया। राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा कि 15 अगस्त 1947 के दिन हमने औपनिवेशिक शासन की बेड़ियों को काट दिया था। उस दिन हमने अपनी नियति को नया स्वरूप देने का निर्णय लिया था। उस शुभ-दिवस की वर्षगांठ मनाते हुए हम लोग सभी स्वाधीनता सेनानियों को सादर नमन करते हैं जिन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया ताकि हम सब एक स्वतंत्र भारत में सांस ले सकें।

उन्होंने संबोधन की शुरुआत करते हुए कहा कि 76वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश और विदेश में रहने वाले सभी भारतीयों को मेरी हार्दिक बधाई। मुझे इस महत्वपूर्ण अवसर पर आपको संबोधित करते हुए खुशी हो रही है। भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में 75 वर्ष पूरे कर रहा है। उन्होंने कहा कि 14 अगस्त के दिन को विभाजन-विभीषिका स्मृति-दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस स्मृति दिवस को मनाने का उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, मानव सशक्तीकरण और एकता को बढ़ावा देना है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत जब भारत आजाद हुआ था तो अनेक अंतरराष्ट्रीय नेताओं और विचारकों ने हमारी लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली की सफलता के विषय में आशंका व्यक्त की थी। उनकी इस आशंका के कई कारण भी थे। उन दिनों लोकतंत्र आर्थिक रूप से उन्नत राष्ट्रों तक ही सीमित था। विदेशी शासकों ने वर्षों तक भारत का शोषण किया था, जिस कारण भारत के लोग गरीबी और अशिक्षा से जूझ रहे थे। लेकिन देश के लोगों ने उन लोगों की आशंकाओं को गलत साबित कर दिया। भारत की मिट्टी में लोकतंत्र की जड़ें लगातार गहरी और मजबूत होती गईं।

राष्ट्रपति ने कहा कि अधिकांश लोकतान्त्रिक देशों में वोट देने का अधिकार प्राप्त करने के लिए महिलाओं को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा, लेकिन भारत ने गणतंत्र की शुरुआत से ही सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया। भारत को यह श्रेय जाता है कि उसने विश्व समुदाय को लोकतंत्र की वास्तविक क्षमता से परिचित कराया। महात्मा गांधी जैसे महानायकों के नेतृत्व में हुए स्वाधीनता संग्राम के दौरान हमारे प्राचीन जीवन-मूल्यों को आधुनिक युग में फिर से स्थापित किया गया। इसी कारण हमारे लोकतंत्र में भारतीयता के तत्व दिखाई देते हैं। गांधीजी सत्ता के विकेंद्रीकरण और जन-साधारण को अधिकार-सम्पन्न बनाने के पक्षधर थे।


राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले 75 सप्ताह से हमारे देश में स्वाधीनता आंदोलन के महान आदर्शों का स्मरण किया जा रहा है। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ मार्च 2021 में दांडी यात्रा की स्मृति को फिर से जीवंत रूप देकर शुरू किया गया। उस युगांतरकारी आंदोलन ने हमारे संघर्ष को विश्व-पटल पर स्थापित किया। यह महोत्सव भारत की जनता को समर्पित है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण का संकल्प भी इस उत्सव का हिस्सा है। यह भव्य महोत्सव अब ‘हर घर तिरंगा अभियान’ के साथ आगे बढ़ रहा है। आज देश के कोने-कोने में तिरंगा शान से लहरा रहा है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि हमारे गौरवशाली स्वाधीनता संग्राम में अनेक महान स्वाधीनता सेनानियों ने वीरता के उदाहरण प्रस्तुत किए और राष्ट्र-जागरण की मशाल अगली पीढ़ी को सौंपी। अनेक वीर योद्धाओं तथा उनके संघर्षों विशेषकर किसानों और आदिवासी समुदाय के वीरों का योगदान एक लंबे समय तक सामूहिक स्मृति से बाहर रहा। पिछले वर्ष से हर 15 नवंबर को ‘जन-जातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने का सरकार का निर्णय स्वागत-योग्य है। हमारे जन-जातीय महानायक केवल स्थानीय या क्षेत्रीय प्रतीक नहीं हैं बल्कि वे पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत जैसे प्राचीन देश के लंबे इतिहास में 75 वर्ष का समय बहुत छोटा प्रतीत होता है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर यह काल-खंड एक जीवन-यात्रा जैसा है। हमारे वरिष्ठ नागरिकों ने अपने जीवनकाल में अद्भुत परिवर्तन देखे हैं। वे गवाह हैं कि कैसे आजादी के बाद सभी पीढ़ियों ने कड़ी मेहनत की, विशाल चुनौतियों का सामना किया और स्वयं अपने भाग्य-विधाता बने। इस दौर में हमने जो कुछ सीखा है वह सब उपयोगी साबित होगा क्योंकि हम राष्ट्र की यात्रा में एक ऐतिहासिक पड़ाव की ओर आगे बढ़ रहे हैं। हम सब 2047 में स्वाधीनता के शताब्दी-उत्सव तक की 25 वर्ष की अवधि यानि भारत के अमृत-काल में प्रवेश कर रहे हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संकल्प है कि वर्ष 2047 तक हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों को पूरी तरह साकार कर लेंगे। इसी काल-खंड में हम बाबासाहब भीमराव आम्बेडकर के नेतृत्व में संविधान का निर्माण करने वाले महान लोगों की दृष्टि को साकार कर चुके होंगे। एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में हम पहले से ही तत्पर हैं।


राष्ट्रपति ने कहा कि भारत आज दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत के स्टार्टअप इको-सिस्टम का विश्व में ऊंचा स्थान है। हमारे देश में स्टार्टअप्स की सफलता, विशेषकर यूनिकॉर्नस की बढ़ती संख्या, हमारी औद्योगिक प्रगति का शानदार उदाहरण है। विश्व में चल रही आर्थिक कठिनाई के विपरीत, भारत की अर्थव्यवस्था को तेजी से आगे बढ़ाने का श्रेय सरकार और नीति-निर्माताओं को जाता है। पिछले कुछ साल के दौरान फिजिकल और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। प्रधानमंत्री गति-शक्ति योजना के द्वारा कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया जा रहा है। परिवहन के जल, थल, वायु आदि मार्गों पर आधारित सभी माध्यमों को भली-भांति एक दूसरे के साथ जोड़कर पूरे देश में आवागमन को सुगम बनाया जा रहा है। इसका श्रेय कड़ी मेहनत करने वाले हमारे किसान और मजदूर भाई-बहनों को भी जाता है। साथ ही हमारे उद्यमियों को भी जाता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सबसे खुशी की बात यह है कि देश का आर्थिक विकास और अधिक समावेशी होता जा रहा है और क्षेत्रीय विषमताएं भी कम हो रही हैं। लेकिन यह तो केवल शुरुआत है। दूरगामी सुधारों और नीतियों द्वारा इन परिवर्तनों की आधार-भूमि पहले से ही तैयार की जा रही थी। उदाहरण के लिए डिजीटल इंडिया अभियान द्वारा ज्ञान पर आधारित अर्थव्यवस्था की आधारशिला स्थापित की जा रही है। ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ का उद्देश्य भावी पीढ़ी को औद्योगिक क्रांति के अगले चरण के लिए तैयार करना और उन्हें हमारी विरासत के साथ फिर से जोड़ना भी है।

अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि आर्थिक प्रगति से देशवासियों का जीवन और सुगम होता जा रहा है। आर्थिक सुधारों के साथ जन-कल्याण के नए कदम भी उठाए जा रहे हैं। ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ की सहायता से गरीब के पास स्वयं का घर होना अब एक सपना नहीं रह गया, बल्कि सच्चाई का रूप ले चुका है। इसी तरह ‘जल जीवन मिशन’ के अंतर्गत ‘हर घर जल’ योजना पर काम चल रहा है। इन उपायों का और इसी तरह के अन्य प्रयासों का उद्देश्य सभी को विशेषकर गरीबों को, बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना है।

अतं में राष्ट्रपति ने कहा कि भारत में आज संवेदनशीलता और करुणा के जीवन-मूल्यों को प्रमुखता दी जा रही है। इन जीवन मूल्यों का मुख्य उद्देश्य हमारे वंचित, जरूरतमंद और समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों के कल्याण हेतु कार्य करना है। हमारे राष्ट्रीय मूल्यों को नागरिकों के मूल कर्तव्य के रूप में देश के संविधान में समाहित किया गया है। देश के प्रत्येक नागरिक से मेरा अनुरोध है कि वे अपने मूल कर्तव्यों के बारे में जानें और उनका पालन करें, ताकि हमारा राष्ट्र नई ऊंचाइयों को छू सके।

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