लोकसभा में प्रियंका गांधी ने किया आशा कार्यकर्ताओं से जुड़ा सवाल, कहा- सरकार दे रही है गोलमोल जवाब

प्रियंका गांधी ने कहा, ‘‘संसद में जब मैंने इस बारे में सवाल ​पूछा कि सरकार इनके लिए क्या करने जा रही है तो सरकार ने गोलमोल जवाब ​देकर मामला निपटा दिया। दिन-रात काम के बदले उन्हें न्यूनतम वेतन भी न देना उनके श्रम और उनकी काबिलियत का अपमान है।’’

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सोमवार को लोकसभा में सवाल किया कि क्या आशा कार्यकर्ताओं को ‘वेतन संहिता, 2019’ के तहत सुविधाएं देने का कोई प्रस्ताव है।

इस पर श्रम मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि ‘श्रम’ संविधान की समवर्ती सूची का विषय है, हालांकि आशा कर्मी कार्य आधारित प्रोत्साहन की हकदार होती है।

केरल के वायनाड से लोकसभा सदस्य ने लिखित प्रश्न किया, ‘‘क्या सरकार के पास ऐसा कोई प्रस्ताव है कि आशा कार्यकर्ताओं को वेतन संहिता, 2019 के तहत औपचारिक कर्मचारी के रूप में मान्यता दी जाए और उन्हें कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ), कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई), और मातृत्व अवकाश जैसी सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिले?’’

उन्होंने यह भी पूछा कि क्या सरकार के पास आशा, आंगनवाड़ी और मध्याह्न भोजन कार्यकर्ताओं के लिए समान वेतन और सुरक्षा की सिफारिश के लिए कोई राष्ट्रीय आयोग स्थापित करने का प्रस्ताव है?


लिखित जवाब में मांडविया ने कहा कि ‘श्रम’ संविधान की समवर्ती सूची में है तथा संहिता के प्रावधानों के तहत केंद्र और राज्य दोनों सरकारें अपने संबंधित क्षेत्रों में सशक्त होती हैं। मंत्री का कहना था, ‘‘आशा कर्मी सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवक हैं और वो कार्य/गतिविधि-आधारित प्रोत्साहन की हकदार होती हैं। उनको प्रति माह 3500 रुपये का मासिक प्रोत्साहन मिलता है।’’ मांडविया ने पांच लाख रुपये के बीमा कवरेज समेत कई दूसरी सुविधाओं का उल्लेख किया।

बाद में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट कर आरोप लगाया कि सरकार ने गोलमोल जवाब दिया जो आशाकर्मियों का अपमान है।

उन्होंने कहा, ‘‘दिन-रात मेहनत करने वाली हमारी आशा बहनें लंबे समय से अपने अधिकार के लिए लड़ रही हैं। उन्हें न्यूनतम वेतन और बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलतीं। वे अपने लिए सम्मानजनक मानदेय, सामाजिक सुरक्षा और गरिमापूर्ण पहचान चाहती हैं। आशा बहनें हमारे स्वास्थ्य तंत्र की रीढ़ हैं और वे अपनी पूरी क्षमता से लोगों की सेवा करती हैं, लेकिन मोदी जी की सरकार उन्हें स्थायी कर्मचारी नहीं मानती।’’


कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘संसद में जब मैंने इस बारे में सवाल ​पूछा कि सरकार इनके लिए क्या करने जा रही है तो सरकार ने गोलमोल जवाब ​देकर मामला निपटा दिया। दिन-रात काम के बदले उन्हें न्यूनतम वेतन भी न देना उनके श्रम और उनकी काबिलियत का अपमान है।’’

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