पंजाब: लुधियाना वेस्ट के उपचुनाव से क्या केजरीवाल के लिए खुलेगी राज्यसभा की राह!
फरवरी के बाद से अरविंद केजरीवाल पंजाब में डेरा डाले हुए हैं। वह वहां रैलियां कर रहे हैं, उद्घाटन समारोहों में शामिल हो रहे हैं। आप ने पार्टी के दूसरे बड़े नेता मनीष सिसोदिया को पंजाब का प्रभारी बनाया है, इसलिए वह भी लुधियाना में ही डेरा डाले हुए हैं।

उप चुनाव ऐसी राजनीतिक प्रक्रिया होती है जिसकी चर्चा स्थानीय तौर पर एक सीमित दायरे में ही होती है। लेकिन पंजाब में लुधियाना वेस्ट का विधानसभा उप चुनाव इस बार राष्ट्रीय चर्चा का विषय है। सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने इसे करो या मरो का सवाल बना लिया है और विरोधी दल भी उसे हर कीमत पर मात देने की कोशिश में जुटे दिखाई दे रहे हैं।
इस उपचुनाव को आम आदमी पार्टी की भावी राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। आप विधायक गुरप्रीत गोगी की गोली लगने से हुई संदेहास्पद मृत्यु के बाद खाली हुई इस सीट पर राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। माना जा रहा है कि अरोड़ा अगर जीतते हैं, तो अरविंद केजरीवाल के राज्यसभा पहुंचने का रास्ता साफ हो जाएगा। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अब संसद में पहुंच कर अपनी नई राजनीतिक पारी शुरू करना चाहते हैं। दिल्ली में पार्टी और अपनी हार के बाद अब उन्हें इसी रास्ते में संभावनाएं दिखाई दे रही हैं।
यही वजह है कि फरवरी के बाद से अरविंद केजरीवाल ज्यादातर समय पंजाब में ही गुजार रहे हैं। वह वहां रैलियों को संबोधित कर रहे हैं, उद्घाटन समारोहों में शामिल हो रहे हैं। आप ने पार्टी के दूसरे बड़े नेता मनीष सिसोदिया को पंजाब का प्रभारी बनाया है, इसलिए वह भी लुधियाना में ही डेरा डाले हुए हैं। आप के तीसरे बड़े नेता संत्येंद्र जैन को पंजाब का उप प्रभारी बनाया गया है, इसलिए वह भी पंजाब में ही जमे हुए हैं।
लंबे समय से आप सरकार की सारी नीतियां इस चुनाव के आस-पास ही चल रही हैं। लुधियाना पश्चिम वह विधानसभा क्षेत्र है जहां पंजाब के कई सारे उद्योगपति रहते हैं। मूल रूप से यह उच्च-मध्यवर्गीय इलाका है और उसमें भी 85 फीसदी आबादी गैर सिख है।
दिल्ली की हार के बाद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के साथ यहां के उद्योगपतियों के साथ एक बैठक की थी। उद्योगपतियों की शिकायत थी कि किसान आंदोलन और शंभू बार्डर पर धरने की वजह से उनके कारोबार पर काफी असर पड़ रहा है। इसके बाद ही रातों-रात किसानों के उस धरने को पुलिस ने जबरन हटा दिया जिसका समर्थन कभी खुद मान सरकार ने किया था।
कुछ समय पहले ही राज्य सरकार ने लुधियाना के पास 24,311 एकड़ जमीन पर नई रिहायशी बस्ती बसाने का फैसला किया। इस योजना के लिए जिन गांवों की जमीन ली जा रही है, वहां के किसानों में इसे लेकर काफी नाराजगी है। फिलहाल इस नाराजगी से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि वे किसान लुधियाना पश्चिम के मतदाता नहीं हैं।
अकाली दल ने इसे मुद्दा बनाते हुए अपना उम्मीदवार उतारा है। पिछले तीन साल में यह पहला उप चुनाव है जहां अकाली दल चुनाव मैदान में है। इसके पहले के उप चुनावों में उसने शिरकत नहीं की थी। लेकिन अकाली उम्मीदवार परोपकार सिंह घुम्मन को फिलहाल मुख्य मुकाबले में नहीं देखा जा रहा।
बीजेपी ने अपने उम्मीदवार जीवन गुप्ता का नाम एकदम आखिर में घोषित किया लेकिन वह इस सीट से बहुत उम्मीद बांध रही हैं। आम चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार रवनीत सिंह बिट्टू लुधियाना लोकसभा सीट से कांग्रेस के अमरिंदर सिंह राजा वॉरिंग से चुनाव हार गए थे। लेकिन लुधियाना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोट उस चुनाव में बीजेपी को ही मिले थे। बीजेपी उसी प्रदर्शन को फिर दोहराना चाहती है।
बीजेपी को इतने ज्यादा वोट मिलने का एक कारण यह भी माना जाता है कि इस क्षेत्र के सबसे बड़े नेता भारत भूषण आशु को उस समय एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट ने जेल में डाला हुआ था। आशु इस क्षेत्र से लगातार दो बार विधायक रहे हैं और राज्य सरकार में मंत्री भी रहे हैं। राज्य में आप सरकार बनने के बाद उनके खिलाफ विजिलेंस जांच बिठा दी गई थी लेकिन इसी बीच ईडी सक्रिय हुआ और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वह एक साल से ज्यादा समय तक जेल में रहे और उसके बाद हाईकोर्ट ने न सिर्फ उन्हें रिहा कर दिया, बल्कि उनके खिलाफ दायर की गई सभी एफआईआर भी रद्द कर दी गईं।
अब आशु फिर से कांग्रेस के टिकट पर यहां ताल ठोंक रहे हैं। भारत भूषण आशु जब नामांकन भरने गए, तो वहां मौजूद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और स्थानीय सांसद राजा वॉरिंग ने यह दावा किया कि इस बार लुधियाना पश्चिम से आप और बीजेपी दोनों की ही जमानत जब् होगी। हालांकि जीत हार से ज्यादा लोगों की नजर इस पर है कि लुधियाना पश्चिम से केजरीवाल के राज्यसभा जाने का रास्ता तैयार होता है या नहीं।
जातिवादी तनाव न होते हुए भी आम्बेडकर पर हमला
घोर जातिवादी लोगों द्वारा भीमराव आम्बेडकर की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाने की खबरें पूरे देश से कभी-कभार सुनाई देती रहती हैं। लेकिन पंजाब में जिस तरह से यह हो रहा है, वह परेशान करने वाला है। पिछले पांच महीने में ऐसी तीन घटनाएं हो चुकी हैं।
पहली घटना 26 जनवरी को अमृतसर की हैरिटेज स्ट्रीट पर लगी आम्बेडकर की प्रतिमा पर हुई। उस दिन एक युवक ने हथौड़ा लेकर उस प्रतिमा को तोड़ना शुरू कर दिया। उस युवक को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया गया और उस मुद्दे पर पंजाब से लेकर दिल्ली तक खासा हंगामा भी हुआ। जांच में पता चला कि ऐसा करने वाला युवक खुद दलित था और कुछ ही महीने पहले दुबई से लौटा था जहां वह डेढ़ साल तक काम करता रहा। इस घटना के पीछे कौन था, इसका खुलासा अब तक नहीं हो सका।
दूसरी घटना पंजाब के फिल्लौर में दो महीने पहले हुई। वहां भी आम्बेडकर प्रतिमा को क्षति पहुंचाने की कोशिश हुई। तब भी इसके पीछे का कारण सामने नहीं आया।
तीसरी घटना फिल्लौर के नंगल गांव में दो जून को हुई और इसने पूरे मामले को एक नया मोड़ दिया। उस दिन इस गांव में लगी आम्बेडकर प्रतिमा के चेहरे पर एक व्यक्ति ने काले रंग का पेंट स्प्रे कर दिया। इस घटना का वीडियो भी सामने आ चुका है जिसमें रुमाल से चेहरा ढंके हुए और बेसबाॅल कैप पहने हुए एक व्यक्ति प्रतिमा पर काला रंग स्प्रे कर रहा है।
इस घटना के बाद जो हुआ, उसने पंजाब पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों के कान खड़े कर दिए। अमेरिका में रहने वाले अलगाववादी संगठन सिख फाॅर जस्टिस के गुरपतवंत सिंह पन्नू ने एक वीडियो जारी किया और इस घटना की जिम्मेदारी ली। उसने इसे ऑपरेशन ब्लू स्टार के 41 साल पूरे होने से भी जोड़ा।
यह पहला मौका है जब पंजाब के किसी अलगाववादी संगठन ने इस तरह से आम्बेडकर के खिलाफ कोई दावा किया हो। यह भी माना जा रहा है कि पन्नू भारतीय संविधान का विरोध करते रहे हैं और इसके प्रतीक के रूप में ही शायद आम्बेडकर की प्रतिमा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई। हालांकि कुछ लोग यह मानते हैं कि पन्नू का पंजाब में कोई आधार नहीं है और घटनाएं हो जाने के बाद वह दावे करते हैं कि यह उन्होंने ही करवाया।
आंकड़े बताते हैं कि पंजाब की 32 फीसद आबादी दलित है। पूरे देश में दलितों की सबसे घनी आबादी यहीं है। पूरे प्रदेश में दलितों की संस्कृति अलग-अलग जगह अलग है लेकिन उनमें एक बात समान है कि भीमराव आम्बेडकर सभी के बीच सर्वमान्य सम्मानित नाम हैं। यही वजह है कि पंजाब में कोई भी राजनीतिक दल कभी भी आम्बेडकर के खिलाफ कुछ भी बोलने की नहीं सोच सकता है।
पंजाब में आम्बेडकर का क्या महत्व है, इसे एक और उदाहरण से समझ सकते हैं। वहां एक पंजाबी गायिका हैं गिनी माही जिन्होंने ज्यादातर गीत आम्बेडकर को लेकर ही गाए हैं। पिछले कुछ साल में गिनी माही उसी तरह लोकप्रिय हो गई हैं जैसी लोकप्रियता किसी पाॅप स्टार को मिलती है।
आमतौर पर देश भर में आम्बेडकर की प्रतिमाओं को नुकसान पहुंचाने की खबरें वहां से आती हैं, जहां कोई जातिवादी संघर्ष या तनाव हो। लेकिन पंजाब में उस तरह का कोई बड़ा संघर्ष या तनाव कभी नहीं रहा। इसके बाद भी यह कौन कर रहा है और किस मकसद से किया जा रहा है, यह एक बड़ी पहेली है।
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