राफेल सौदा: क्या सरकार के कहने पर वायु सेना अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोला? 

क्या वायु सेना अधिकारियों ने केंद्र सरकार के कहने पर सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोला? कोर्ट में वायुसेना अधिकारियों ने कहा था कि 1985 के बाद वायु सेना में लड़ाकू विमानों का कोई बेड़ा शामिल नहीं हुआ। जबकि सच्चाई यह है कि सुखोई विमान वायुसेना में 2004 में शामिल हुए।

फोटो : सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

वायुसेना अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के बताया कि 1985 के बाद एयरफोर्स में कोई लड़ाकू विमान शामिल नहीं हुआ

हकीकत: 1985 में तो सुखोई बने ही नहीं थे

हकीकत: सुखोई विमानों को पहली बार 2004 में वायुसेना में शामिल किया गया

हकीकत: वायुसेना के रिकॉर्ड के मुताबिक 42 सुखोई विमानों का बेड़ा 2012 में वायुसेना में शामिल हुआ

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को राफेल मामले की सुनवाई के दौरान वायुसेना के वाईस चीफ टी चलपति और डिप्टी एयर मार्शल वीआर चौधरी ने जानबूझकर गुमराह किया या तथ्यों को छिपाने की कोशिश की है? इस सवाल पर वायुसेना और रक्षा विशेषज्ञ सकते में हैं।

यह एक गंभीर चूक बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई प्रक्रिया में उस वक्त सामने आयी जब पीठ ने उपवायु सेनाध्यक्ष एयर मार्शल वीआर चौधरी और वाईस चीफ टी चलपति से पूछा, "अब तक कौन से विमान भारत में निर्मित हो रहे हैं?" इस सवाल के जवाब में कोर्ट में मौजूद वायुसेना अधिकारियों का जवाब था, "सुखोई 30 विमानों का बेड़ा सबसे ताजी खेप है जो 1985 में वायुसेना में शामिल की गई।"

यही वह बात है जिससे रक्षा विशेषज्ञ सकते में हैं। सच्चाई यह है कि 1985 में तो कोई सुखोई विमान बने हीं नहीं थे। सुखोई विमानों का डिजाईन ही 1995 में तैयार हो पाया था।

सुनवाई के दौरान चलपति ने सुखोई सीरीज़ को 3.5 पीढ़ी का लड़ाकू विमान बताया। राफेल डील की पूरी प्रक्रिया से अभिन्न तौर जुड़े एयर वाइस मार्शल टी चलपति ने बेंच को भारत की सुरक्षा जरूरतों के मद्देनजर इस पूरे करार की महत्ता से अवगत कराया। इसी क्रम में बेंच ने जिज्ञासा में सवाल पूछा, "इसका मतलब तो यह हुआ कि 1985 से कोई नए लड़ाकू विमान भारतीय वायु सेना में शामिल ही नहीं किए गए।" इस पर इन दोनों ही शीर्ष वायुसेना अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हामी भर दी।

तो क्या इन दोनों अधिकारियों ने जानबूझकर जजों के भ्रम या गलत आंकलन में संशोधन कराने की कोई जहमत नहीं उठाई?

सामरिक हलकों में सुप्रीम कोर्ट में वायु सेना के शीर्ष अधिकारियों की इस गलत बयानी को अत्यंत भ्रामक और गंभीर मामला माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर दोनों वायु सेना अधिकारियों की जिम्मेदारी थी कि वे बताते कि रूस निर्मित सुखोई-30 श्रेणी के लड़ाकू विमानों का 1996 यानी 22 साल पहले समझौता हुआ था।

ज्ञात रहे कि उस समय केंद्र में कांग्रेस के समर्थन से बनी संयुक्त मोर्चा सरकार थी। एचडी देवेगोड़ा प्रधानमंत्री थे। रक्षा मंत्री पद का दायित्व मुलायम सिंह यादव संभाले हुए थे। उसके बाद रूस से अक्तूबर 2000 में नया करार हुआ। इसमें तय हुआ था कि रूस भारत को टेक्नॉलजी ट्रासफ़र के जरिए 140 और आधुनिक सुखोई विमान देगा।

सुखोई विमानों को उस वक्त दुनिया का सबसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमान माना गया था। हवा से हवा में मारक क्षमता वाले, आधुनिक रडार सिस्टम और इससे भी आगे हवा में ही इंधन भरने की व्यवस्था से ये विमान अपग्रेड कर दिए गए थे।

सुखोई एविएशन द्वारा इन्हें भारत में ही हिंदुस्तान एयरोनॉटिक लिमिटेड (एचएएल) के जरिए निर्मित करना रूस के साथ करार की शर्तों में शामिल था। समझौते के बाद वर्ष 2000 के आखिर में ही भारत को टेक्नॉलजी हस्तांतरित हो गई। उसके बाद सुखोई को भारत निर्मित विमानों के पहले बेड़े में 2004 में वायु सेना में शामिल किया गया। भारतीय वायु सेना के अपने रिकॉर्ड के अनुसार दिसंबर 2012 में 42 और घरेलु निर्मित सुखोई विमानों का बेड़ा वायु सेना में शामिल किया गया।

वायुसेना अधिकारियों के बयान पर विवाद बढ़ने पर देर शाम वायुसेना की तरफ से सफाई आई कि अधिकारियों ने गलती से ऐसी बात कही थी।

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Published: 15 Nov 2018, 9:26 AM