'सत्यम् शिवम् सुंदरम्' शीर्षक से राहुल गांधी ने बताया हिंदू होने का अर्थ, कहा- निर्बल की रक्षा ही उसका कर्तव्य

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक लेख में हिंदू धर्म पर विचार रखे हैं। राहुल लिखते हैं कि 'हर प्रकार के पूर्वाग्रह व भय से मुक्ति पाकर सत्य के समुंदर में समा जाना ही असली हिंदू धर्म है।'

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नवजीवन डेस्क

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 'सत्यम शिवम सुंदरम' शीर्षक से एक लेख आज के द इंडियन एक्सप्रेस अखबार में लिखा है। इस लेख में राहुल गांधी ने हिंदू धर्म की व्याख्या की है। उन्होंने समझाया है कि एक “हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है, क्योंकि वह जानता है कि जीवनरूपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं और निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है।“

राहुल गांधी ने लेख की शुरुआत करते हुए लिखा है, “कल्पना कीजिए, जिंदगी प्रेम और उल्लास का, भूख और भय का एक महासागर है, और हम सब उसमें तैर रहे हैं। इसकी खूबसूरती और भयावह, शक्तिशाली और सत परिवर्तनशील लहरों के बीचोबीच हम जीने का प्रयत्न करते हैं।“

उन्होंने आगे लिखा है कि, “इस महासागर में जहां प्रेम, उल्लास और अथाह आनंद है, वहीं भय भी है। मृत्यु का भय, भूख का भय, दुखों का भय, लाभ-हानि का भय, भीड़ में खो जाने और असफल रह जाने का भय। इस महासागर में सामूहिक और निरंतर यात्रा का नाम जीवन है, जिसकी भयावह, गहराइयों में हम सब तैरते हैं। भयावह इसलिए, क्योंकि इस महासागर से आज तक न तो कोई बच पाया है, न ही बच पाएगा।“

राहुल गांधी ने इस लेख को अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर भी शेयर किया है।


राहुल गांधी ने हिंदू धर्म का अर्थ भी इस लेख में समझाया है। उन्होंने लिखा है कि, “जिस व्यक्ति में अपने भय की तह में जाकर इस महासागर को सत्यनिष्ठा से देखने का साहस है, हिंदू वही है। यह कहना कि हिंदू धर्म केवल कुछ सांस्कृतिक मान्यताओं तक सीमित है, उसका अल्प पाठ होगा। किसी राष्ट्र या भूभाग विशेष से बांधना भी उसकी अवमानना है। भय के साथ अपने आत्म के संबंध को समझने के लिए मनुष्यता द्वारा खोजी गई पद्धति ही हिंदू धर्म है। यह सत्य को अंगीकार करने का एक मार्ग है। यह मार्ग किसी एक का नहीं है, मगर यह उस व्यक्ति के लिए सुलभ है जो इस पर चलना चाहता है।“

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने हिंदू धर्म का कर्तव्य भी इस लेख में समझाया है। उन्होंने लिखा, “एक हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है, क्योंकि वह जानता है जीवनरूपी इस महासागर में हम सब डूब उतर रहे हैं। अस्तित्व के लिए संघर्षरत सभी प्राणियों की रक्षा वह आगे बढ़कर करता है। सबसे निर्मल चिंताओं और बेआवाज कृंदन के प्रति सचेत रहा है। निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है। सत्य और अहिंसा की शक्ति से संसार की सबसे असहाय पुकारों को सुनना और उनका समाधान ढूंढना ही उसका धर्म है।“

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