कोरोना को 'उत्सव' की तरह मना रेलवे वसूल रहा दोगुना किराया, फेस्टिवल स्पेशल के नाम पर यात्रियों से लूट

पहले अलग-अलग श्रेणियों में यात्रियों को किराये में छूट दी जाती थी। वे सभी बंद हैं। वैसे, कुछ दिनों पहले दिव्यांगों और चुनिंदा गंभीर बीमारियों से जूझने वाले मरीजों को किराये में छूट शुरू की गई है। इन ट्रेनों के छोटे स्टेशनों पर ठहराव भी कम कर दिए गए हैं।

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पूजा

अभी कोई त्योहार नहीं है, तब भी फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों की बाढ़ आई हुई है। इनमें यात्रियों को ड्यौढ़े से लेकर दोगुना तक किराया चुकाना पड़ रहा है। वैसे, रेलवे सालों से त्योहारों के समय कुछ विशेष ट्रेनें चलाता है। ऐसी ट्रेनों के नंबर हमेशा शून्य से शुरू होते हैं। ऐसी ट्रेनें विशेष प्रावधान के तहत सीमित समय के लिए चलाई जाती है। इनमें किराये में छूट नहीं मिलती या शर्तों के साथ बहुत कम छूट दी जाती है। ट्रेनों के स्टॉपेज कम कर दिए जाते हैं। यह भी बंधन लगा देते हैं कि विशेष ट्रेनों में 500 किलोमीटर या उससे कम दूरी का टिकट नहीं मिलेगा।

लगता है, कोरोना महामारी को रेलवे ने ‘उत्सव’ मान लिया है, तब ही उसने पुरानी ट्रेनें तो शुरू नहीं कीं लेकिन दो तरह की ट्रेनें चला रही है- स्पेशल ट्रेनें और त्योहार स्पेशल ट्रेनें। स्पेशल ट्रेनें हैं तो पुरानी ही, सिर्फ ट्रेनों के नंबर का पहला अंक हटाकर उसमें जीरो जोड़ दिया गया है। साथ ही, ये ट्रेनें पूरी तरह आरक्षित कर दी गई हैं। इनमें बिना रिजर्वेशन बैठ नहीं सकते। पहले मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों में आगे और पीछे की तरफ जनरल डिब्बे लगते थे जिसमें यात्री टिकट लेकर सफर कर सकता था। लेकिन अब इसमें भी रिजर्वेशन जरूरी है। पहले करीब 50 से अधिक अलग-अलग श्रेणियों में पात्र यात्रियों को किराये में छूट दी जाती थी। वे सभी बंद हैं। वैसे, कुछ दिनों पहले ही दिव्यांगों और कैंसर समेत चुनिंदा गंभीर बीमारियों से जूझने वाले मरीजों को किराये में छूट शुरू की गई है। इन ट्रेनों के छोटे स्टेशनों पर ठहराव भी कम कर दिए गए हैं।

लेकिन, त्योहार स्पेशल के नाम पर शुरू की गई ट्रेनों में भी अलग-अलग श्रेणियों में पात्र यात्रियों को किराये में दी जाने वाली छूट तो बंद हैं ही, इनके किराये भी दोगुने तक हैं।

(देखें नीचे दी गई किरायों की सूची)

कोरोना को 'उत्सव' की तरह मना रेलवे वसूल रहा दोगुना किराया, फेस्टिवल स्पेशल के नाम पर यात्रियों से लूट
TASLEEM KHAN

इसे ऐसे समझें। अगर लखनऊ से कोई व्यक्ति वाराणसी जाना चाहता है, तो उसे श्रमजीवी एक्सप्रेस में थर्ड एसी के टिकट के लिए महज 585 रुपये देने पड़ेगे। लेकिन अब उसी यात्री को उसी रूट की बेगमपुरा फेस्टिवल स्पेशल से सफर करने पर थर्ड एसी के लिए 1,115 रुपये किराया देने पड़ रहे हैं। इन ट्रेनों का किराया इतना अधिक क्यों है, इस पर रेलवे बोर्ड से लेकर जोनल रेलवे तक के अफसर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं।


रेलवे बोर्ड और आईआरसीटीसी के कुछ अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कोरोना संक्रमण के कारण टिकट बिक्री शुरू में कम थी लेकिन जून, 2021 से यह लगातार बढ़ रही है। फिर भी, यह संख्या कोरोना महामारी से पहले की तुलना में कम है। लेकिन दोनों ही तरह की ट्रेनों में वरिष्ठ नागरिकों को जो दिक्कतें हो रही हैं, उसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है। 60 साल या उससे अधिक उम्र के पुरुष को हर श्रेणी के किराये में 40 प्रतिशत और 58 साल या उससे अधिक उम्र की महिला को किराये में 50 प्रतिशत की छूट मिलती थी।

इसे ऐसे समझें कि पुरूष यात्रीको 100 रुपये के किराये पर 60 रुपये और महिला यात्री को 100 रुपये के किराये पर 50 रुपये ही देने पड़ते थे। यह छूट सभी श्रेणियों में मिलती थी। लेकिन बीते डेढ़ साल से उन्हें कोई छूट नहीं मिल रही और पूरे पैसे देने पड़ रहे हैं। इसी तरह 53 अलग-अलग श्रेणियों में दी जाने वाली अलग-अलग छूट खत्म कर दी गई है। इन स्पेशल ट्रेनों के किराये सामान्य मे ल-एक्सप्रेस से दोगुने तक हो गए हैं ,वह अलग है ।

इस कोरोना काल में निम्न आय वर्ग के लोग वैसे ही परेशान हैं, तब भी जनरल डिब्बों में यात्रा करने वालों को भी अतिरिक्त पैसे देने पड़ रहे हैं। छिंदवाड़ा के बिरजू धुर्वे बताते हैं कि वह नासिक काम करने जाते थे। पहले आराम से जनरल टिकट पर 150 से 200 रुपये में यात्रा हो जाती थी। अब इसके लिए भी रिजर्वेशन कराना पड़ रहा हैं जिससे टिकट महंगा हो गया है। अकेले इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन (आईआरसीटीसी) 24 घंटे में लगभग 9 लाख ऑनलाइन टिकट बेचता है जिनमें करीब 50 हजार जनरल के टिकट होते हैं। मतलब, इन पर भी 15 रुपये रिजर्वेशन शुल्क लिया जा रहा है।

कम दूरी की यात्रा करने वालों और दैनिक यात्रियों का हाल और भी बुरा है। सेंट्रल रेलवे, ईस्टर्नरे लवे, वेस्टर्न रेलवे और साउथ ईस्टर्न रेलवे ने तो पैसेंजर ट्रेनें शुरू भी कर दी हैं, उत्तर रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे और उत्तर मध्य रेलवे ने यह सुविधा शुरू ही नहीं की है। रेलवे मुख्यालय और रेलवे बोर्ड के अफसर इन ट्रेनों के चलाने के लिए राज्य सरकार से अनुमति न मिलने का बहाना बना रहे हैं जबकि मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों को लेकर संबंधित राज्य सरकारों की अनुमति ली ही नहीं गई।


प्लेटफॉर्म टिकटों के दाम अलग बढ़ा दिए गए हैं। देश भर में लगभग सभी प्रमुख स्टेशनों पर ये टिकट 50 रुपये में बेचे जा रहे हैं। यह वैसे लोगों की जेब पर डाके की तरह है जिनके लिए महिलाओं और बुजुर्गों को प्लेटफार्म तक विदा करने जाना मजबूरी है। कोरोना की आड़ लेकर रेलवे ने अधिकांश ट्रेनों में खानपान व्यवस्था बंद की है। इससे लंबी दूरी के यात्रियों को जो दिक्कतें हो रही हैं, वह तो समझा ही जा सकता है, ट्रेनों की कैटरिंग सर्विस में ठेके पर काम करने वाले लाखों वेंडरों के लिए रोजगार की समस्या अलग से बनी ही हुई है। चूंकि ट्रेनों की संख्या सीमित है इसलिए रेलवे स्टेशनों पर कुली का काम करने वाले लोगों की आमदनी भी जाती रही है। रोजाना कम-से-कम 400 रुपये तक कमा लेने वाले ऐसे लोग इन दिनों 50-100 रुपये भी कमा लें, तो बहुत है।

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