राजस्थानः अब बाल न्याय कानून की आड़ में मिशनरी स्कूलों पर निशाना साध रही है वसुंधरा सरकार

राजस्थान हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक विवादास्पद फैसले के तहत देखभाल की आवश्यकता वाले बच्चों की परिभाषा बदल देते हुए छात्रावासों को बाल कल्याण समिति के निरीक्षण के अधीन कर दिया है, जिसके बहाने वसुंधरा सरकार राज्य के मिशनरी संस्थाओं पर निशाना साध रही है।

फोटोः सोशल मीडिया
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ऐशलिन मैथ्यू

ज्योती का भाई भैरव एक राशन कार्ड दिखाते हुए, जिसमें उन दोनों भाई-बहन के नाम दर्ज हैं, कहता है, “वह यहां तब आयी थी, जब वह महज 7 वर्ष की थी। अब वह 11वीं कक्षा में पहुंच गई है। लेकिन एक महीने पहले कोटा की बाल कल्याण समिति उसे छीन कर ले गयी और ये भी नहीं बताया कि वह कहां है।”

उनके मां-बाप की मौत टीबी की वजह से हो गई थी और शुरुआत में मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा उनकी देखभाल की गई थी। उन्होंने उसे ज्योति को कोटा के इमैनुएल मिशन भेजने की सलाह दी थी। भैरव ने बताया, “उसकी देखभाल कर पाना मेरे लिये संभव नहीं था। मैं जहां रहता हूं, वह जगह उसके लिये सुरक्षित नहीं है। लेकिन, हर छुट्टी में हम मिल सकते थे और जब भी उसे समय मिलेगा वह मुझसे मिलने आ सकेगी।”

इमैनुएल मिशन के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि एक महीने पहले 5 मई को हरीश गुरुबक्षणी के नेतृत्व में बाल कल्याण समिति की एक टीम आयी था, जिसने ज्योति के बारे में पूछा और उसे लेकर चली गई। इसका कोई कारण नहीं बताया गया, कोई स्पष्टीकरण नहीं मांगा गया और ना ही कोई नाटिस जारी किया गया।

19 मई को ये टीम फिर वापस आई और रायपुरा के जीवन आशा होस्टल से 72 बच्चों को एक बस से लेकर चली गयी, जिनमें सभी नाबालिग थे। इन 72 बच्चों में से 17 लड़कियां थीं और उन सभी को ज्योति के साथ नारी निकेतन में रखा गया था, जिसके बारे में उन्हें बाद में पता चला। उन्हें साथ के लड़कों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जिनमें से चार भाग गये थे। उन लड़कों का अभी तक कोई पता नहीं चला है।

ये सभी बच्चे स्कूल में नामांकित 611 छात्रों में से थे जो छात्रावास में रह रहे थे। उनमें से ज्यादातर बच्चे गर्मी की छुट्टियों के लिए घर के लिये चले गए थे। वंचित तबके के गरीब परिवारों से आने वाले इन बच्चों के अभिभावक इनसे मिलने तभी आ पाते हैं जब वे कुछ पैसे बचा पाने में कामयाब होते हैं और उन्हें काम से छुट्टी मिल जाती है।

अपने बच्चों को घर ले जाने के लिये 5 अभिभावक 19 मई को आए थे। लेकिन बाल कल्याण समिति ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। मारिया डेमरी अपनी आठ वर्षीय बेटी इवानिया को घर ले जाने के लिए आयी थीं। डेमरी घरेलू कामगार के तौर पर काम करती हैं जबकि उनके पति असम में चाय बागान में काम करते हैं। उन्होंने बताया, "लेकिन जब मैं दस्तावेजों के साथ बाल कल्याण समिति गयी, तो उन्होंने यह मानने से इनकार कर दिया कि वह मेरी बेटी है। मुझे बताया गया कि मैं एक ईसाई हूं,इसलिये मेरी बेटी को मुझे वापस नहीं दिया जाएगा। उन्होंने हमसे हिंदू धर्म अपनाने के लिए भी कहा।”

कल्लू भैरव ने 8 मई को राजस्थान उच्च न्यायालय में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। अदालत ने इस याचिका पर 27 मई को सुनवाई की और इसे 4 जून तक के लिये टाल दिया। अगली सुनवाई में मामले को जुलाई तक के लिये स्थगित कर दिया गया।

इमानुअल मिशन में एचईईएएल (स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और कृषि जीवन शैली) परियोजना के निदेशक सुसैन राज ने बताया कि बाल कल्याण समिति, कोटा ने 9 मई को उच्च न्यायालय से एक आदेश हासिल कर लिया था, जिसमें कहा गया है कि 18 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों के सभी आवासीय विद्यालय किशोर न्याय अधिनियम के दायरे में आते हैं, जो बाल कल्याण समिति को बच्चों का निरीक्षण और 'बचाव' करने की अनुमति देता है।

सुजैन राज कहते हैं, "उस फैसले के आधार पर कोटा के सभी कोचिंग सेंटर और राजस्थान के अन्य आवासीय विद्यालयों का निरीक्षण किया जाना चाहिए और संभवतः बंद कर दिया जाना चाहिए।" वह आगे बताते हैं कि कोटा के कोचिंग संस्थानों में से एक में पिछले कुछ वर्षों के दौरान 65 में बच्चों के द्वारा आत्महत्या करने की खबर है, लेकिन बाल कल्याण समिति ने इस बात की पूरी जानकारी होने के बावजूद उस कोचिंग को एक नोटिस भी नहीं भेजा है, जो बाल कल्याण समिति के इरादे को संदिग्ध बनाती है। सामाजिक कार्यकर्ता ने उल्लेख किया कि “हमारे छात्रों में से एक पद्माश्री लिंबा राम ओलिंपियन हैं और एक अन्य छात्र थांग बोयी मणिपुर में एसडीएम हैं।”

बाल कल्याण समिति का कहना है कि इमानुएल मिशन के परिसर में बच्चों खतरा था, क्योंकि वहां पर तस्करी और बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के बारे में संदेह जाहीर किये गए थे।

मिशन के एक प्रवक्ता ने इस सफाई पर कहा, अगर यह सच होता, तो बाल कल्याण समिति, कोटा के अध्यक्ष गुरुबक्षनी भी अब तक ईसाई हो गये होते, क्योंकि उन्होंने कोटा के सेंट जॉन सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ाई की थी।"

राजस्थान उच्च न्यायालय की एक जज की एकल पीठ ने 9 मई को फैसला दिया: "सुप्रीम कोर्ट के अनुसार दी गयी देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों की परिभाषा संपूर्ण नहीं है, बल्कि केवल समावेशी है, इसलिये 18 साल से कम उम्र के सभी बच्चों को देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता होगी। इसलिये इसके तहत वे सभी छात्रावास आते हैं जिनमें बच्चे अनाथों के तौर पर रहे हैं.."

मिशन के प्रवक्ता बताते हैं कि इमानुएल मिशन में रहने वाले बच्चे अनाथ नहीं हैं; और इस फैसले से पहले तक, राजस्थान में किसी भी आवासीय विद्यालय को किशोर न्याय अधिनियम के तहत पंजीकृत होने की आवश्यक नहीं थी।

लेकिन, यह कोई नयी बात नहीं है। राज्य सरकार के समन्वय से की गई कार्रवाई के तहत 11 जनवरी, 2018 के हाईकोर्ट के आदेश के साथ संघ परिवार से जुड़े गुरुबक्षनी ने 15 जनवरी, 2018 को ईमानुएल मिशन सोसाइटी के परिसर में छापा मारा था। वह पुलिस और चाइल्ड हेल्पलाइन के सदस्यों के साथ आए थे, कि अगर वहां ऐसे बच्चे हों जिन्हें 'आजाद कराने की जरूरत हो। इसमें आश्ट्रय की कोई बात नहीं कि इस संबंध में कोई आदेश मिशन को नहीं मिला था। वहां इसलिये छापेमारी की गयी, क्योंकि मिशन की वेबसाइट अपडेट नहीं किये जाने के आधार पर बाल कल्याण समिति का मानना था कि मिशन अब तक अनाथालय चला रहा था, जिसे उन्होंने 2016 में बंद कर दिया था।

सूत्रों के मुताबिक, छापेमारी सोसाइटी के दस्तावेजों की जांच करने के इरादे से की गयी थी, ताकि यह देखा जा सके कि क्या मिशन के प्रबंधन को मानव तस्करी कानून के तहत आरोपित किया जा सकता है या नहीं, क्योंकि यह एक गैर-जमानती अपराध होता।

हालांकि, गुरुबक्षनी इस बात पर दृढ़ थे कि वह सिर्फ 9 मई के राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश को लागू कर रहे थे और वह इस संवाददाता को बार-बार आदेश को पढ़ने के लिये जोर दे रहे थे। उन्होंने जोर देकर कहा, "अगर अदालत एक आदेश देती है, तो मैं इसे लागू करूंगा। यह बच्चों के हित में है। जब उनसे पूछा गया कि क्या कोटा और राजस्थान में अन्य छात्रावासों पर भी छापा मारा गया था, तो गुरुबक्षनी ने कहा, "मेरे पास आपके सवाल का जवाब नहीं है। लोग जैसे चाहें इसकी व्याख्या कर सकते हैं। लेकिन, यह मामला केवल इमानुएल मिशन से संबंधित है।"

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से सुनवाई की उम्मीद लिये राजधानी दिल्ली आए इमानुएल मिशन के अधिकारियों और गुमशुदा हुए लड़कों के अभिभावकों को यहां भी निराशा हाथ लगी। एनएचआरसी प्रमुख राजेश किशोर ने उनसे मुलाकात नहीं की। सिर्फ आयोग के सहायक रजिस्ट्रार केके श्रीवास्तव ने उनसे मुलाकात की। उन्होंने उनसे राज्य मानवाधिकार आयोग से संपर्क करने के लिए कहा क्योंकि मामला उनके अधिकार क्षेत्र में पड़ेगा। एनएचआरसी का ये रवैया तब है, जब आयोग देश भर में मानवाधिकार हनन की कई घटनाओं पर स्वतः संज्ञान ले रहा है।

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