मोदी-योगी राज में रामदेव ने कमाई के हर मौके पर डाला हाथ, खादी से मिड-डे मील तक के लिए कर चुके हैं कोशिश

कभी अपने उत्पाद या उद्योग को लेकर विवादों में रहे रामदेव जब से कारोबार में कूदे हैं, उनकी नजर कमाई के हर अवसर पर रही है और इसके लिए हर जुगाड़ लगाते रहे हैं। केंद्र में मोदी और यूपी में योगी के आने के बाद तो उन्होंने कमाई के हर मौके के लिए कोशिश की है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कोरोना वायरस के इलाज की दवा बनाने का दावा कर पतंजलि और बाबा रामदेव इस समय विवादों में हैं। फिलहाल पतंजलि की दवा कोरोनिल के विज्ञापन पर आयुष मंत्रालय ने रोक लगा दी है और जांच बिठा दी है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब रामदेव के किसी प्रोजेक्ट या उत्पाद पर सरकार की गाज गिरी हो। रामदेव पतंजलि की स्थापना के समय से ही लगातार कमाई के अवसर तलाशते रहे हैं। साल 2014 में मोदी सरकार आने के बाद स्थापित अपनी एफएमसीजी कंपनी के जरिये रामदेव ने तो हर कमाई के अवसर को हथियाने की कोशिश की है। फिर यूपी में योगी के आने पर तो पतंजलि लगातार कोशिशें करती रही है।

कभी अपने किसी खास उत्पाद या उद्योग के जमीन आवंटन को लेकर विवादों में रहे रामदेव योग के साथ-साथ जब से कारोबार में कूदे हैं, उनकी नजर कमाई के हर अवसर पर रही है और इसके लिए पूरा जुगाड़ लगाते रहे हैं। मोदी सरकार के आने के बाद 2015 में रामदेव ने खादी और ग्रामोद्योग आयोग को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव रखा था। पतंजलि ने इसके रिसर्च से मैनेजमेंट तक की पूरी ज़िम्मेदारी लेने की इच्छा जताई थी। लेकिन तत्कालीन एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्रा ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि खादी की अपनी अलग पहचान है, जिससे छेड़छाड़ नहीं किया जाना चाहिए।

इसी तरह साल 2017 में योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का सीएम बनने के बाद पतंजलि ने मिड-डे मील का ठेका लेने की कोशिश की थी। अपने प्रस्ताव में पतंजलि ने यूपी के 10 करोड़ से अधिक बच्चों को मिड-डे मील में पंजिरी (चीनी, घी और गेहूं का मिश्रण), फल और दूध देने का दावा किया था। लेकिन इस प्रस्ताव को योगी सरकार ने खारिज कर दिया था। हालांकि इसका कारण सामने नहीं आ सका, लेकिन रामदेव को सफलता नहीं मिली।

इसी तरह रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत सरकार को हरिद्वार के घाटों को गोद लेने का भी प्रस्ताव दिया था। लेकिन यहां भी पूरी सफलता नहीं मिली और उनके साथ कई अन्य गैर सरकारी संगठनों को नदी किनारे पौधे लगाने की जिम्मेदारी दी गई। इसी तरह पतंजलि की वैदिक ब्रॉडकास्टिंग ने दक्षिण भारत में वैदिक सामग्री के प्रसारण के लिए तीन चैनलों की अनुमति लेने की भी काफी कोशिशें की। उनका आवेदन पहले तीन साल तक अटका रहा, लेकिन पिछले साल जाकर लाइसेंस जारी कर दिया गया।

ऐसा नहीं है कि योगी-मोदी सरकार में रामदेव को सिर्फ असफलता मिली। इसका उदाहरण है पतंजलि का नोएडा में 2,000 करोड़ रुपये के फूड पार्क का एक प्रोजेक्ट, जो क्लियरेंस नहीं मिलने के कारण जब अटक गया था, तो बाबा की मदद के लिए योगी-मोदी सरकार ही आई थी। खबरों के अनुसार खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के अधिकारियों का कहना था कि कंपनी का आवेदन महत्वपूर्ण विवरणों के अभवा के चलते अटका है। रामदेव ने तब सीएम आदित्यनाथ से मदद ली, जिन्होंने सहयोग भी किया। इसके बाद यूपी सरकार के अधिकारियों ने केंद्रीय खाद्य मंत्रालय से बात कर दस्तावेज जमा करने की अंतिम तिथि बढ़वाई। फिर उसके बाद रामदेव के प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी गई और बाद में उन्हें सरकार द्वारा सब्सिडी भी दिया गया।

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