चार हजार साल पुराना है ‘प्याज’ से इंसानों का ‘प्यार’, इतिहास के इन तथ्यों को जानकर दंग रह जाएंगे आप!

प्याज को तोहफे के तौर पर देना का इतिहास रहा है। यूरोप में मध्यकाल में प्याज उपहार में दिया जाता था। प्याज से उस दौर में किराया भी चुकाया जाता था। ईसा बाद पहली शताब्दी में योद्धा प्याज का रस अपने शरीर पर मलते थे, ताकि मांसपेशियां मजबूत हो सकें।

फोटो: सोशल मीडिया
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हैदर अली खान

प्याज अगर सब्जी में डालकर बनाई जाए तो खाने का स्वाद बढ़ा देती है, इसका दाम बढ़ जाए तो किचन का बजट बिगाड़ देती है, और अगर यह सियासी मुद्दा बन जाए तो सरकारें तक गिरा देती है। सत्ता का सुख भोग चुकीं सरकारें प्याज के इतिहास से बखूबी वाकिफ हैं। कम से कम उस इतिहास से तो जरूर, जिनसे उनका सत्ता का सुख भोगते समय पाला पड़ा। इस समय देश में प्याज के दाम आसमान पर है। यह आलम तब है जब भारत विश्‍व में प्‍याज का उत्‍पादन करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है।

प्याज का सदियों पुराना इतिहास रहा है। इंसान का प्याज से प्यार का रिश्ता 4 हजार साल पुराना है, आप यह कह सकते हैं यह रिश्ता इन सरकारों से भी पुराना है। मतलब यह कि प्याज का इस्तेमाल आज से 4 हजार साल पहले भी विभिन्न व्यंजनों में किया जाता था। यह बात तब पता चली जब मेसोपोटामिया काल का एक लेख सामने आया, जिसे सबसे पहले 1985 में एक फ्रेंच पुरातत्वविद ने पढ़ा। यह विश्वविद्यालय के बेबिलोनिया संग्रह में मिट्टी की पट्टी पर अंकित तीन लेख एक खास बात के लिए मशहूर हैं। उन्हें पाककला पर दुनिया की सबसे पुरानी किताब माना जाता है।


मेसोपोटामिया की सभ्यता, इतिहास और पुरातत्व के विशेषज्ञ और भोजन पकाने के शौकीन ज्यां बोटेरो को इनका मतलब समझाने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने बताया कि इस पट्टी पर बहुत ही परिष्कृत और कलात्मक व्यंजनों को पकाने की विधि लिखी हुई है। बोटेरो के मुताबिक, प्याज और सब्जियां उन लोगों को बेहद पसंद थीं।

चार हजार साल पुराना है ‘प्याज’ से इंसानों का ‘प्यार’, इतिहास के इन तथ्यों को जानकर दंग रह जाएंगे आप!

प्याज को सदियों से लगभग सभी धर्मों के लोग बड़े ही चाव से खाते आ रहे हैं। देश में फिलहाल प्याज आसमान पर है। ऐसे में ‘जमीन’ पर रह रहे लोगों के लिए आज के दिन इसे हासिल करना किसी बड़ी कामयाबी से कम नहीं। प्याज जिन लोगों की पहुंच में है आज वो लोग मजाहिया अंदाज में प्याज को तोहफे के तौर पर अपनों को देने की बात कर रहे हैं। लोग भले ही मजाहिया अंदाज में यह बात कह रहे हों, लेकिन प्याज को तोहफे के तौर पर देना का भी एक लंबा इतिहास रहा है। यूरोप में मध्यकाल में प्याज उपहार में दिया जाता था, इतना ही नहीं बल्कि प्याज से उस दौर में किराया भी चुकाया जाता था। ईसा बाद पहली शताब्दी में योद्धा प्याज का रस अपने शरीर पर मलते थे, ताकि उनकी मांसपेशियां मजबूत हो सकें। यही नहीं बल्कि उस दौर में एथलीट ओलिंपिक खेलों की तैयारी में प्याज का इस्तेमाल करते थे।


कल तक देश का गरीब तबका यह कहता था की वो रोटी, नमक और प्याज से अपनी भूख मिटा लेता है। लेकिन आज वो सिर्फ रोटी के साथ नमक खाकर प्याज के आंसू रोने को मजबूर है। आसमान छू रहा प्याज गरीबों की पहुंच से दूर है, और नमक गरीबों के रगों में घुलकर ब्लड प्रेशर बढ़ा रहा है। देश की जनता को प्याज के आंसू रुलाने वाली सरकारें कई बार प्याज के दाम आसमान छूने पर पसर चुकी हैं। बावजूद इसके आज देश की मोदी सरकार कुछ फौरी कदम उठाकर चैन की नींद सो रही है और महंगाई का आलम ये है की प्याज के दाम में 200 से 300 फीसदी का उछाल है।

दिल्ली में 2015 के बाद का यह पहला मौका है जब प्याज के दाम सबसे ऊंचे स्तर पर है। एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव (महाराष्ट्र) में भी प्याज 8 रुपए किलो बिक रहा है। नाशिक में यही भाव चल रहा है। इस भाव से आप अंदाज लगा सकते हैं कि देश के दूसरे हिस्सों में क्या हाल होगा। लगगभग हर साल सितंबर, अक्टूबर और नवंबर के महीने में प्याज के दाम में उछाल देखने को मिलता है। बिचौलियों पर लगाम कसने और आधुनिक स्टोरेज बानने की बात कहकर बीजेपी सरकार जनता से वाहवाही लूटती रही है, लेकिन धरातल पर कोई कदम नहीं उठाए गए। देश में प्याज की जरूरत साल भर लगभग स्थिर रहती है। ताजा प्याज की उपलब्धता 7 या 8 महीने तक सीमित होती है और एक वक्त ऐसा आता है, जब कीमतें अचानक बढ़ जाती है। जानकारों की मानें तो ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि प्याज का स्टोरज खराब तरीके से होता है।


प्याज का निर्यात करने वाले दुनिया भर के देशों में भारत कहीं आगे है। बंगलादेश, मलेशिया, श्रीलंका, यूएई, पाकिस्‍तान और नेपाल में भारत प्याज का निर्यात करता है। भारत और चीन दुनिया में कुल प्याज उत्पादन का 45 फीसदी प्याज उपजाते हैं, लेकिन खाने के मामले में यह दोनों दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार नहीं हैं। देश के किसान 1 रुपये किलो प्याज बेचने को मजबूर हो जाते हैं। इन्हीं किसानों को उनका हक दिलाने की बात करने वाली मोदी सरकार ‘56 इंच’ का सीना दिखाकर निर्यात के आंकड़े पेश करती है। न तो किसानों की तस्वीर बदलती है और न जनता की तकदीर जो हर साल सितंबर से लेकर नवंबर तक प्याज के आंसू रोनो को मजबूर हो जाते हैं। कई सालों से भारत में प्याज से जुड़ा यह भी एक शर्मनाक इतिहास है, जिसे बदले जाने का देश की जनता को इंतजार है।

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Published: 28 Sep 2019, 5:59 PM
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