महाराष्ट्र के संदर्भ में हरिवंश राय बच्चन की कविता: नंगा नाचे चोर बलैया, नंगा नाचे... 

महाराष्ट्र में राजनीति का जो खेल जारी है, उसमें दशकों पहले लिखी गई हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘खलयुग का कोरस’ अनायास ही युगदर्शन करा देती है। लंबी कविता है, लेकिन इसके कुछ छंद बहुत कुछ कहते दिखते हैं

फोटो : सोशल मीडिया
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तसलीम खान

दशकों पहले हरिवंश राय बच्चन ने एक कविता या यूं कहें की गीत लिखा था। उसकी पहली पंक्तियां हमारे दौर की राजनीति को सामने रखती प्रतीत होती हैं। सबसे पहले उन पंक्तियों को पढ़िए:

नंगा नाचे, चोर बलैया लेय
भैया नंगा नाचे

थोथा मोटी खाल मढ़े दमदार दमामे
कूट रहा दोनों हाथ मूसल थामे
झूठ प्रचारक अखबारों की कछनी कान्छे

नंगा नाचे ………..भैया ……..नाचे

सोमवार शाम को जैसे ही यह खबर सामने आई कि महाराष्ट्र भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एंटी करप्शन ब्यूरो) ने कथित सिंचाई घोटाले के कई मामलों में एनसीपी के अजित पवार को क्लीन चिट देकर फाइलें बंद कर दी हैं, अनायास ही युगदर्शन का आभास कराती हरिवंश राय बच्चन की यह कविता याद आ गई। इसी कविता में बच्चन जी आगे कहते हैं:

लायक, फ़ायक, नायक डर कर अन्दर बैठे

लंट, लफंगे, लुच्चे बाहर मूंछे ऐंठे
कूद रहे हैं, फांद रहे हैं मार कुलांचे

नंगा नाचे चोर ……….भैया नंगा नाचे

इस कविता को उस नाट्यक्रम में भी देखने की जरूरत है जिसकी पटकथा शुक्रवार-शनिवार की रात में लिखी गई और मंचन के पहले दृश्य में शनिवार तड़के महाराष्ट्र राजभवन ने बिना किसी तामझाम और शोर-शराबे के देश के एक बड़े राज्य की सरकार तय कर दी। लेकिन इस नाटक का पटाक्षेप तो अभी दूर है, सिर्फ दृश्यांतर ही हुआ है। शनिवार की सुबह से शुरु हुआ यह नाटक शाम होते-होते सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सर्वोच्च न्यायालय ने भी रविवार को अपने दरवाजे खोलते हुए इस नाट्यक्रम के अगले दृश्य के लिए अपनी भूमिका निभा दी। अगली कड़ी सोमवार के लिए तय हो गई, लेकिन रात तो अभी बाकी थी। ऐसी पटकथा जो लिखी ही स्याह रात में गई थी, तो दूसरे पक्ष ने भी सूर्य ढलते-ढलते सामने वाले की आंखों का काजल चुरा लिया।

राज्यपाल ने जिन विधायकों के दम पर महाराष्ट्र को मुख्यमंत्री और डिप्टी मुख्यमंत्री दे दिया, उनमें से ज्यादातर तो अपने घर लौट गए। जो इधर-उधर रह गए, उनकी खोजबीन हुई और सोमवार की पौ फटने से पहले ही डिप्टी सीएम के हाथ के तोते उड़ चुके थे। यहां बच्चन जी की इसी कविता की अगली पंक्तियां पढ़िए:

इन्द्राणी का नाच कहाँ देखोगे भैया

एक टिकट का बीस रुपैया

वहां दिखेंगे बे पैसे के तीन तमाशे

नंगा नाचे, थोथा बाजे चोर बलैया लेय

भैया नंगा नाचे


सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में बात पहुंची तो उस आधार को सामने रख दिया गया जिस पर राज्यपाल ने सरकार दी थी। दावा किया गया कि ‘हमारे पास तो 170 हैं...।’ कोर्ट ने सबकी सुनी, कुछ अपनी भी कही...और कह दिया कि अब मंगलवार तक इंतजार करो।

यानी नाटक का पटाक्षेप अभी नहीं हुआ है। सिर्फ दृश्यांतर है।

अब 24 घंटे का वक्त है, तो इस नाटक के अगले सीन का समय हो गया। डिप्टी सीएम के ओरिजनल खेमे ने अपने साथियों समेत ऐलान कर दिया कि ‘आओ, मिलो हमारे 162 से...’ यहीं पर बच्चन जी की कविता की अगली पंक्तियां पढ़िए...

शाह बड़े हो तो तुम अपने घर के होगे

बहुमत का है राज अकेले क्या कर लोगे

सब ठग अपने मौसेरों के परखे-जांचे

नंगा नाचे ………….नाचे

अब इन ‘162’ से मिलने के बाद, उस दावे का क्या होगा, कि ‘हमारे पास तो 170 हैं।’ इन 170 में से 55 तो चले गए। लेकिन ‘खलयुग का कोरस’ जारी है। वैसे बच्चन जी की कविता का शीर्षक यही है

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Published: 25 Nov 2019, 7:30 PM