उत्तर प्रदेश में अवनीश अवस्थी का रिटायरमेंट इफेक्ट! बदली नौकरशाही की सूरत, कहीं खुशी, कहीं मायूसी

थोक में तबादलों के बीच सबसे बड़ा सवाल अब भी प्रशासनिक गलियारे में तैर रहा है कि अवनीश अवस्थी को बतौर अपर मुख्य सचिव गृह सेवा विस्तार क्यों नहीं मिला? एक वरिष्ठ नौकरशाह का कहना है कि सूबे के अफसरों के एक खेमे की लामबंदी उन पर भारी पड़ी है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

उत्तर प्रदेश के सबसे पावरफुल नौकरशाह माने जाने वाले आईएएस अवनीश अवस्थी इसी 31 अगस्त को रिटायर हुए और उसी दिन देर रात प्रदेश के दर्जन भर से ज्यादा सीनियर आईएएस अफसर ताश के पत्तों की तरह फेंटे गए। अवस्थी के रिटायरमेंट की राह देख रहे वह बड़े अफसर भी धराशायी कर दिए गए, जिनकी तमन्ना बड़े ओहदों पर जाने की थी।

एक सितम्बर की सुबह जब प्रदेश के दिग्गज नौकरशाहों की आंखे खुली तो बड़ा बदलाव सामने था। कोविड महामारी के वक्त गठित अफसरों की टीम 9 के कई अहम चेहरे बदल चुके थे। मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद इनमें सबसे ताकतवर अफसर बन कर उभरे। उन्हें गृह विभाग के साथ सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग का भी मुखिया बनाया गया।

बावजूद इसके तबादलों के बीच सबसे बड़ा सवाल अब भी प्रशासनिक गलियारे में तैर रहा है कि अवनीश अवस्थी को बतौर अपर मुख्य सचिव गृह सेवा विस्तार क्यों नहीं मिला? एक वरिष्ठ नौकरशाह का कहना है कि सूबे के अफसरों के एक खेमे की लामबंदी उन पर भारी पड़ी। वह उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवेज इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी (यूपीडा) के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) भी थे। बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे के लोकार्पण के दरम्यान अवस्थी के सेवा विस्तार की फाइल केंद्र सरकार को भेजी गई थी, जो बैरंग वापस लौट आई। पुनः सेवा विस्तार की फाइल दौड़ाई गई। सेवा विस्तार के आदेश का रिटायरमेंट के दिन तक इंतजार भी हो रहा था, नतीजा नकारात्मक निकला।

उनका कहना है कि सत्तासीनों तक यह संदेश भी पहुंचा था कि यदि अवनीश अवस्थी को सेवा विस्तार मिलता है तो प्रदेश के प्रशासनिक अमले में अच्छा संदेश नहीं जाएगा। बढते एंटी इंकम्बैंसी फैक्टर की वजह से सत्ताधारी दल के सामने 2024 चुनाव की चुनौती भी सामने है। ऐसे में अवनीश अवस्थी के समायोजन की राह चुनी गई। उनके अनुभवों का फायदा सरकार को मिल सके। इस बाबत नीति आयोग सरीखे संगठन में उनके एडजस्टमेंट (समायोजन) की गुंजाइश शेष रखी गई है।


एक अन्य अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केंद्र सरकार ने उनके सेवा विस्तार के अनुरोध को ठुकरा दिया तो अब यदि योगी सरकार उन्हें किसी अहम पद पर समायोजित करती है तो प्रदेश सरकार पर भी सवाल खड़ा होना लाजिमी है, इसलिए अवनीश अवस्थी की सेवानिवृत्ति के बाद उनको किसी अहम पद पर नियुक्त किया जाएगा या नहीं, इसमें संशय है। इन समीकरणों को देखते हुए कयास लगाए जा रहे हैं कि यह फैसला भी केंद्र सरकार की सहमति से ही लिया जाएगा।

बीते महीने उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने तबादलों को लेकर चिटठी लिखी थी और स्वास्थ्य महकमे के अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद पर सवाल उठाए थे। तब प्रसाद ने कहा था कि उप मुख्यमंत्री की सहमति के बाद ही तबादले किए गए हैं। उनका यह जवाब भी सरकार को नागवार गुजरा था। अफसरशाही के एक धड़े का यह भी मानना है कि वह सरकार में अपनी अहम पद पर तैनाती का इंतजार कर रहे थे, पर ऐन वक्त पर उन्हें हाशिये पर रख दिया गया। प्रसाद को अपर मुख्य सचिव, सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम एवं निर्यात प्रोत्साहन, हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग, खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग का प्रभार देकर किनारे लगाया गया।

दूसरे उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी अपने विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) मनोज कुमार सिंह से खुश नहीं थे। एसीएस सिंह मौजूदा समय में कृषि उत्पादन आयुक्त भी हैं और सीएम योगी के भरोसेमंद अफसरों में गिने जाते हैं। उनसे भी ग्राम्य विकास विभाग की जिम्मेदारी छीन ली गई, पर उन्हें उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के अपर मुख्य सचिव की जिम्मेदारी सौंप कर उनका रूतबा बरकरार रखा गया और उनकी जगह बेहतर छवि के तेजतर्रार अफसर हिमांशु कुमार को प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास की जिम्मेदारी दी गई।

पावर कारीडोर (प्रशासनिक गलियारे) में चर्चा है कि अफसरों के खेमों में धींगामुश्ती के संदेह की कीमत अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल को चुकानी पड़ी। उन्हें खादी एवं ग्रामोद्योग, सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम एवं निर्यात प्रोत्साहन, सूचना एवं जनसम्पर्क, रेशम तथा हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग विभाग से हटाकर अपर मुख्य सचिव खेलकूद बना दिया गया।


प्रदेश और केंद्र सरकार में अच्छा काम करने का इनाम आइएएस पार्थ सारथी सेन शर्मा को मिला। उन्हें प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य बनाया गया। पूर्व की अखिलेश सरकार में वह मुख्यमंत्री के सचिव थे। वर्ष 2007 की मुलायम सरकार में आईएएस डा हरिओम गोरखपुर के डीएम थे। उस समय योगी आदित्यनाथ को गिरफ्तार किया गया था और पुलिसिया उत्पीड़न की वजह से वह लोकसभा में रोए भी थे। योगी सरकार के पिछले पांच साल के कार्यकाल में हरिओम हाशिये पर रहे। योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्होंने मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से मुलाकात की थी। तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि उन्हें बेहतर जिम्मेदारी मिल सकती है। अब उन्हें प्रमुख सचिव, समाज कल्याण विभाग एवं निदेशक जनजाति विकास की जिम्मेदारी दी गई है।

बीजेपी सरकार में मंत्रियों और उनके विभागीय अधिकारियों के बीच अनबन की खबरें आम हैं। उच्च शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा विभाग के मंत्रियों और अफसरों के बीच सामंजस्य को लेकर असहज स्थिति बन रही थी। नतीजतन, मोनिका एस गर्ग, अपर मुख्य सचिव, उच्च शिक्षा विभाग को अपर मुख्य सचिव, अल्पसंख्यक कल्याण एवं मुस्लिम वक्फ विभाग और आराधना शुक्ला को माध्यमिक शिक्षा विभाग से हटाकर आयुष विभाग का अपर मुख्य सचिव बनाया गया और प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा का कार्यभार प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा दीपक कुमार को सौंपा गया।

आईएएस कल्पना अवस्थी राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की पंसदीदा अफसरों में से हैं। उन्हें प्रमुख सचिव राज्यपाल की जिम्मेदारी दी गई है। आइएएस सुधीर महादेव बोबड़े और राजेश सिंह को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नजदीकी का फायदा मिला। बोबड़े को प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा और राजेश को प्रमुख सचिव कारागार प्रशासन एवं सुधार सेवायें और महानिदेशक कारागार बनाकर उनका कद बढाया गया।

बीएसपी सरकार के नवरत्नों में शुमार आईएएस महेश गुप्ता अब तक अपर मुख्य सचिव राज्यपाल थे। उन्हें राज्यपाल की नजदीकी का फायदा भी मिला। महेश को अपर मुख्य सचिव ऊर्जा व अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत की जिम्मेदारी दी गयी। अरविन्द कुमार, अपर मुख्य सचिव, अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास बेहतर काम करने वाले औ सुलझे हुए अफसरों में गिने जाते हैं। एक्सप्रेसवेज के निर्माण में लगे अफसरों की टीम में वह भी शामिल थे, उन्हें इसका फायदा मिला, अब वर्तमान पद के साथ मुख्य कार्यपालक अधिकारी यूपीडा और उपशा का अतिरिक्त प्रभार दिया गया और धर्मार्थ कार्य विभाग का अतिरिक्त प्रभार मुकेश कुमार मेश्राम, प्रमुख सचिव, पर्यटन को सौंपा गया है।

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