कमजोर हो चुके मोदी पर एनडीए सहयोगियों का बढ़ता दबाव, एक के बाद एक दे रहे हैं झटके 

उत्तर प्रदेश और बिहार के उपचुनाव में बीजेपी की हार के तुरंत बाद बिना वक्त गंवाए उसके नाराज और असंतुष्ट सहयोगी पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जान के पीछे पड़ गए थे।

फोटोः सोशल मीडिया
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लेसली एस्टेवेस

उपचुनाव के नतीजों के बाद एनडीए से दो सहयोगी बाहर निकल चुके हैं और उनमें से एक लोकसभा के 16 सांसदों वाली तेलुगु देशम पार्टी है। उससे भी ज्यादा बड़ी बात यह है कि नरेन्द्र मोदी को पहली बार उनके पूर्व सहयोगी टीडीपी के हाथों अविश्वास प्रस्ताव झेलना पड़ रहा है। लोकसभा में 274 सांसदों वाली बीजेपी को सहयोगी दलों के लगभग 40 सांसदों का समर्थन प्राप्त है, इसलिए अविश्वास प्रस्ताव का गिरना तय है लेकिन इससे भगवा दल शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है।

2014 के बाद से एनडीए काफी बड़ी हो चुकी है जब इसमें 29 पार्टियां थीं और इसने लोकसभा की 336 सीटें जीती थीं। आज एनडीए में 47 पार्टियां हैं लेकिन इसमें ज्यादातर पूर्वोतर की छोटी पार्टियों आकर जुड़ी हैं, जहां लोकसभा सीटें बहुत कम हैं और आमतौर पर उनका गठबंधन केन्द्र में सत्ताधारी दल से होता है और उनके पास कई विचारधारा भी नहीं होती। अब टीडीपी और कुछ छोटे दलों के निकलने के परिणामस्वरूप लोकसभा में एनडीए की संख्या 315 है।

राम विलास पासवान और ओमप्रकाश राजभर जैसे सहयोगी दलों के नेताओं द्वारा दिए गए बीजेपी को असहज करने वाले बयानों के बाद हम देखते हैं कि अलग-अलग राज्यों में एनडीए सहयोगियों का क्या मूड है।

कमजोर हो चुके मोदी पर एनडीए सहयोगियों का बढ़ता दबाव, एक के बाद एक दे रहे हैं झटके 

आंध्र प्रदेश

16 मार्च को आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए से अपनी पार्टी टीडीपी को उस वक्त निकाल लिया जब केन्द्र ने यह साफ कर दिया कि वह आंध्र को विशेष राज्य को दर्जा नहीं दे सकता। इतना ही नहीं, नायडू की टीडीपी ने नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव भी पेश कर दिया। आंध्र में बीजेपी के लिए किसी नए सहयोगी को ढूढ़ना भी संभव नहीं दिखता क्योंकि टीडीपी के विरोधी वाईएसआर कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ अपना ही अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया था और पवन कल्याण की पार्टी जन सेना राज्य में कोई बड़ी राजनीतिक शक्ति नहीं है।

बिहार

बिहार में एनडीए की सारे सहयोगी शिकायत कर रहे हैं और नाराज हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि सीटों के बंटवारे के मामले में यहां ‘हाउसफुल’ जैसी स्थिति है क्योंकि 2014 में एनडीए ने यहां 40 में 31 सीटें जीती थीं। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के गठबंधन का फिर से हिस्सा हो जाने के बाद से पहले से गठबंधन की सहयोगी रही पार्टियों को यह चिंता सता रही है कि अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें कम सीटें मिलेंगी। उन्हें हालिया उपचुनावों में महत्वपूर्ण सीटों पर बीजेपी की करारी हार को लेकर भी चिंता हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपनी पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा को 28 फरवरी को एनडीए से बाहर निकाल लिया और उसके तुरंत बाद विपक्षी आरजेडी-कांग्रेस के गठबंधन में शामिल हो गए।

सीएम नीतीश कुमार की हालत उस वक्त से खराब है जब से उन्होंने आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन से अपनी पार्टी जेडीयू को अलग कर लिया और 2017 में बीजेपी को साथ लेकर सरकार बनाई। बीजेपी से ज्यादा सीटें होने के बावजूद नीतीश इस सरकार में छोटे सहयोगी नजर आते हैं। जिस आदमी ने कथित आरजेडी नेताओं के भ्रष्टाचार के सवाल पर लालू यादव को धोखा दिया, वह बीजेपी नेताओं पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों पर लगातार चुप हैं। वे तब भी चुप थे जब उनके बीजेपी सहयोगियों ने हालिया उपचुनावों के पहले और बाद में खतरनाक साम्प्रदायिक मुद्दों को हवा दी।

बीजेपी के केन्द्रीय मंत्री गिरिराज ने दरभंगा में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के खिलाफ कथित तौर पर भीड़ को उकसाया और यह कैमरे में भी कैद हुआ। इसके साथ-साथ कई अन्य साम्प्रदायिक घटनाओं से व्यथित होकर नीतीश कुमार ने अपनी चुप्पी तोड़ी, “न मैंने भ्रष्टाचार से समझौता किया है और न ही समाज को विभाजित करने वाले लोगों से करूंगा। मेरा मकसद संपूर्ण साम्प्रदायिक और सामाजिक शांति बनाए रखना है।” उन्होंने राम विलास पासवान के बयान का भी समर्थन किया और कहा, “मैं पासवान जी को अच्छी तरह जानता हूं, वे बिना सोचे-समझे इन मुद्दों पर कुछ नहीं बोलेंगे।”

नीतीश ने यह बोलकर बीजेपी को भी शर्मिन्दा किया कि जेडीयू जहानाबाद उपचुनाव में उम्मीदवार उतारना नहीं चाहता था, लेकिन बीजेपी के दबाव के कारण उसने ऐसा किया। वे यह भी जानते थे कि इसका परिणाम क्या होने वाला है, इसलिए परिणाम आने के बाद आरोपों से बचने के लिए वह ऐसा नहीं करना चाहता था। नीतीश ने यह भी संकेत दिया कि बीजेपी एक हारी हुई लड़ाई नहीं लड़ना चाहती थी और इसलिए उसने जेडीयू को उम्मीदवार उतारने के लिए मजबूर किया।

17 मार्च को बीजेपी के लिए एक और मुश्किल तब खड़ी हो गई जब इसके सहयोगी और लोजपा नेता राम विलास पासवान ने अचानक कांग्रेस की प्रशंसा करना शुरू कर दी। पासवान 1996 से केन्द्र की सभी सरकारों के साथ रहे हैं और उनके बयानों को राजनीतिक मौसम के संकेत के तौर पर देखा जाता है। पासवान ने कहा, “एनडीए को समाज के सारे समुदायों को साथ लेकर चलने की जरूरत है। कांग्रेस ने समावेशी समाज बनाए रखते हुए कई दशकों तक शासन किया है। 18 मार्च को पासवान ने जोड़ा, “उन्हें (बीजेपी) दलितों, अल्पसंख्यकों को लेकर समाज में उनके बारे में जो राय है उसे बदलना चाहिए। क्या बीजेपी में सेकुलर नेता नहीं है?

उसी दिन नवजीवन को बिहार से जुड़े सूत्रों ने बताया कि उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी फिलवक्त एनडीए के साथ है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं जबरदस्त नाराजगी है और वह कभी भी एनडीए का दामन छोड़ सकती है। इन सूत्रों का कहना है कि यूपी विधानसभा चुनाव के बाद से ही कुशवाहा नाराज हैं क्योंकि बीजेपी के उभार ने वहां कुशवाहा के पार्टी को आगे बढ़ाने की महत्वाकांक्षा पर विराम लगा दिया।

कोयरी नेता कुशवाहा नीतीश कुमार के वापस एनडीए में आने से भी नाराज हैं। 19 मार्च को आरएलएसपी के प्रवक्ता फजल इमाम मल्लिक ने नवजीवन को बताया, “चूंकि यह कई पार्टियों का गठबंधन है तो कई असहमतियां हैं और रहेंगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं हुआ कि हम गठबंधन से अलग हो जाएंगे।” लेकिन मल्लिक ने यह बताने से इंकार कर दिया कि आरएलएसपी अगला लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ेगी या नहीं। उन्होंने कहा, “इस समय हमें इसके बारे में नहीं बताना चाहिए।”

उत्तर प्रदेश

उतर प्रदेश की बीजेपी सरकार में वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने बीजेपी पर जमकर बरसते हुए अपने सहयागियों का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाया। बीजेपी के बुरे दिन की शुरुआत की भविष्यवाणी करते हुए राजभर ने आरोप लगाया कि यूपी विधानसभा में मिले विकराल बहुमत के कारण सत्ताधारी पार्टी ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है।" राजभर की ये टिप्पणी उस दिन आई जिस दिन योगी सरकार ने अपने कार्यकाल का एक साल पूरा किया और जिसके उपलक्ष्य में विशाल समारोहों का आयोजन किया गया था। राजभर ने ये ऐलान करके भी राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी कि राज्यसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को उनका समर्थन अभी निश्चित नहीं है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को 30000 अतिरिक्त वोट दिला सकती थी, लेकिन उन्हें प्रचार करने के लिए भी किसी ने नहीं कहा।

पंजाब

बीजेपी की एक अन्य भरोसेमंद सहयोगी और एनडीए सरकTर में शामिल शिरोमणी अकाली दल भी मिश्रित संकेत दे रही है। दिसंबर 2017 में एनडीटीवी से बात करते हुए शिरोमणी अकाली दल के वरिष्ठ नेता नरेश गुजराल ने यह कहते हुए तीखा हमला किया, “किसी भी हाल में बीजेपी अगले चुनाव में 272 सीट नहीं जीत सकती है, ये हाल की परिस्थियों से साफ दिखता है।”

उन्होंने ये भी कहा कि गठबंधन के साथ बुरा बर्ताव करने के लिए पीएम और अमित शाह दोनों जिम्मेदार हैं। इससे पहले अप्रैल 2015 में भी गुजराल ने बीजेपी पर इसी तरह का तीखा हमला किया था। हालांकि, केंद्रीय प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव में उनकी पार्टी सरकार का समर्थन करेगी, क्योंकि "अकाली दल बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगियों में से है और हमलोग अच्छे और बुरे दिनों में साथ रहे हैं। शिरोमणी अकाली दल के एक अन्य सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कौर के समर्थन की बात को दोहराते हुए कहा कि हम आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के पक्ष में हैं।

जम्मू और कश्मीर

महबूबा मुफ्ती की पिपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के एनडीए का अंग बने रहने के बावजूद हाल ही में मुफ्ती ने अपनी सरकार से जिस तरह वित्त मंत्री अरुण जेटली और बीजेपी नेता राम माधव के करीबी माने जाने वाले अपने वित्त मंत्री हसीब द्राबू को हटाया, वह दिखाता है कि बीजेपी के तिकड़मों की वजह से पीडीपी भी अत्यधिक संदिग्ध है।

द्राबू की बर्खास्तगी को गठबंधन साझेदारों पीडीपी और बीजेपी के बीच बढ़ती खाई के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। दोनों दलों के मंत्री विभिन्न मुद्दों पर अपने मतभेदों को खुलकर जाहिर कर रहे हैं। ये उस समय भी दिखता है जब मुफ्ती जम्मू-कश्मीर में शांति सुनिश्चित करने के लिए मोदी सरकार से पाकिस्तान के साथ वार्ता शुरू करने के का आग्रह करती हैं।

19 मार्च को अटल बिहारी वाजपेयी के रिकॉर्ड से पीएम मोदी के रिकॉर्ड की तुलना करते हुए उन्होंने कहा, “शांति स्थापित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए, जैसा 2003 में वाजपेयी जी ने किया और संघर्ष विराम का उल्लंघन होने पर पाकिस्तान गए थे। पीएम मोदी भी पाकिस्तान गए, लेकिन दुर्भाग्य से उसके बाद पठानकोट की घटना हुई।”

महाराष्ट्र

एक विपक्षी पार्टी की तरह व्यवहार करने वाली और केंद्र और राज्य में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने 23 जनवरी को ऐलान किया कि वह अगला आम चुनाव अकेले लड़ेगी। एनडीए में खुद के साथ किए जा रहे व्यवहार को लेकर नाराज बताए जा रहे शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे लगातार मोदी-शाह की जोड़ी पर निशाना साध रहे हैं और उन्होंने उपचुनाव के नतीजों पर भी खुशी का इजहार किया था। उपचुनाव नतीजों के थोड़ी ही देर बाद शिवसेना ने अगले आम चुनाव में बीजेपी के 200 सीट आने की भविष्वाणी कर दी। इसके सांसद भी

अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन, एनडीए सरकार को समर्थन देने या गैरहाजिर रहने के सवालों पर इसी तरह का जवाब देते हैं। एक अन्य सहयोगी महाराष्ट्र की राजू शेट्टी की पार्टी स्वाभिमानी शेचकारी संगठन ने सितंबर 2017 में एनडीए को छोड़ दिया था और 19 मार्च 2018 को यूपीए में शामिल हो गई। भीमा-कोरेगांव दंगों के बाद रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के अध्यक्ष रामदास अठावले ने कहा कि वे महाराष्ट्र में दलित दलों की एकता के जरिये, जिसमें प्रकाश अंबेडकर का भारिप-बहुजन महासंघ भी शामिल है, दलित वोटों के एकीकरण के पक्ष में हैं। केंद्रीय मंत्री अठावले ने कहा कि इसके लिए अगर ये दलित मोर्चा अगर कांग्रेस के साथ जाने का चुनाव करता है तो वह एनडीए छोड़ने के लिए भी तैयार हैं।

गोवा

पैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के इलाज के लिए अमेरिका रवाना होने के बाद एक हफ्ता पूरा होने से भी पहले बीजेपी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार डांवाडोल नजडर आ रही है और विरोध के स्वर उभरने लगे हैं। विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले गठबंधन के सहयोगी दल सिर्फ इस बात पर साथ आए थे कि मनोहर पर्रिकर मुख्यमंत्री बनेंगे। वे दल अब गठबंधन के भविष्य पर, विशेषकर पर्रिकर की बीमारी की गंभीर प्रकृति के कारण सवाल खड़े कर रहे हैं। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के अध्यक्ष दीपक धवलिकर ने एमजीपी की केंद्रीय समिति की बैठक के बाद कहा, “जब तक पर्रिकर मुख्यमंत्री हैं, तब तक हम इस सरकार के साथ हैं।" गोवा फारवर्ड पार्टी के विजय सरदेसाई ने भी सरकार बनाते वक्त राज्यपाल को सौंपे गए समर्थन पत्र के शब्दों की तरफ इशारा करते हुए स्पष्ट कर दिया कि उनकी पार्टी का समर्थन पर्रिकर के लिए है, ना कि बीजेपी के लिए।

केरल

बीजेपी को केरल से उसी दिन एक झटका लगा जिस दिन उपचुनाव के परिणामों की घोषणा हुई। इसकी सहयोगी भारत धर्म जन सेना ने 14 मार्च को एनडीए से अलग होने का ऐलान करते हुए साफ कर दिया कि वह चेनगन्नूर विधानसभा सीट के आगामी उपचुनाव में बीजेपी को समर्थन नहीं देगी।

तमिलनाडु

तमिलनाडु में एनडीए की आधिकारिक सहयोगी एक सीट वाली पार्टी पट्टली मक्कल कच्छी है, जबकि संसद में बीजेपी की पिछलग्गू और राज्य की सत्ताधारी एआईएडीएमके को नरेंद्र मोदी की अनौपचारिक सहयोगी के रूप में देखा जाता है। वर्तमान में, यह कावेरी प्रबंधन बोर्ड के गठन के मुद्दे पर लोकसभा को बाधित कर रही है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि एआईडीएमके का यह कदम लोकसभा अध्यक्ष को सदन स्थगित करने और अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर करने से बचने में मदद करता है। हालांकि, एक बीजेपी नेता के तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति के अंत की भविष्यवाणी करने वाले बयान और पेरियार की मूर्ति के साथ तोड़फोड़ ने एआईएडीएमके को नाराज किया है।

उपमुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम ने 16 मार्च को तमिलनाडु विधानसभा में झिड़कने वाले अंदाज में कहा, “अल्पदृष्टी से पीड़ित कुछ राजनीतिक आलोचक द्रविड़ शासन के खिलाफ भ्रष्ट दुष्प्रचार में शामिल हैं। वे लोग द्रविड़ आंदोलन को ध्वस्त करने का भ्रम पाले हुए दिन में ख्वाब देख रहे हैं।”

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Published: 20 Mar 2018, 3:53 PM