मोदी सरकार के साढ़े चार साल बीत जाने के बाद आरएसएस ने की राम मंदिर के लिए कानून बनाने की मांग

पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि इस मामले की नियमित सुनवाई की तारीख वो जनवरी में तय करेगी। उसके बाद से लेकर बीजेपी-आरएसएस से जुड़े नेता इस मसले पर काफी उत्तेजक बयान दे रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने बुधवार को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के शीर्घ निर्माण के लिए अध्यादेश लाने या कानून बनाने की अपनी मांग को दोहराया है। आरएसएस के संयुक्त महासचिव मनमोहन वैद्य ने कहा कि अभी तक अयोध्या विवाद का हल अदालतों में नहीं निकला है।

वैद्य की यह टिप्पणी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल के दौरान आई है जिसका उद्घाटन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने किया था। थाणे के भयंदर में आरएसएस और इसके अनुषांगिक संगठनों के प्रमुख इसमें हिस्सा ले रहे हैं।

वैद्य ने कहा कि यह मुद्दा राष्ट्रीय और सामाजिक महत्व से संबंधित है, जिस पर सम्मेलन के दौरान विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।

राम मंदिर मुद्दे को लेकर एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि राम मंदिर राष्ट्रीय स्वाभिमान और गौरव का विषय है। उन्होंने कहा कि जैसे सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, उसी तरह सरकार को चाहिए कि वह मंदिर के लिए भूमि अधिग्रहीत कर उसे राम मंदिर निर्माण के लिए सौंप दे। इसके लिए सरकार कानून बनाए।

भागवत ने नागपुर में 18 अक्टूबर को अपनी वार्षिक दशहरा रैली में मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग पहली बार उठाई थी।

उधर राममंदिर निर्माण को लेकर देश भर के 3000 से अधिक साधु-संत दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में 3 और 4 नवंबर को जुटने वाले हैं। कहा जा रहा है कि वे सरकार को राममंदिर के निर्माण के लिए कानून बनाने का ‘धमार्देश’ देंगे।

साधु-संतों ने कहा कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने जैसा रुख अपनाया था, उससे उम्मीद बंधी थी कि मामले पर जल्द फैसला आ जाएगा। लेकिन 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में जजों ने तीन मिनट में ही सुनवाई की तारीख टाल दी। इससे लगता है कि यह विषय कोर्ट की प्राथमिकता में नहीं है। पर इसके लिए देश अनंतकाल तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता है।

स्वामी हंसदेवाचार्य ने कहा कि सरकार से उनका आग्रह है कि वह राममंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए कानून बनाए।

गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि इस मामले की नियमित सुनवाई की तारीख वो जनवरी में तय करेगी।

तब से लेकर बीजेपी-आरएसएस से जुड़े नेता इस मसले पर काफी उत्तेजक बयान दे रहे हैं। बिहार से सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद धमकी भरे लहजे में कहा था कि अगर हिंदुओं का सब्र टूटा तो मुश्किल हो जाएगी। खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी यह कहा कि समय पर मिला न्याय, उत्तम न्याय माना जाता है लेकिन न्याय में देरी कभी-कभी अन्याय के समान हो जाती है। इस मुद्दे पर सरकार द्वारा अध्यादेश लाने की खबरों पर उन्होंने कहा कि यह मामला विचाराधीन है, लेकिन सभी विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिए।

लेकिन असल मुद्दा यह है कि केंद्र सरकार को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि की रखवाली का जिम्मा मिला हुआ है। ऐसी हालत में वह जमीन का मालिकाना हक किसी को देने के लिए इस तरह का कानून नहीं ला सकती। उससे भी बड़ी बात यह है कि एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की सरकार राम मंदिर निर्माण जैसे धार्मिक काम के लिए क्या कोई ला सकती है?

लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के करीब आने पर ही राम मंदिर निर्माण को लेकर कानून बनाने की बात क्यों हो रही है? मोदी सरकार के पिछले साढ़े चार सालों में ऐसा क्यों नहीं हुआ? इन सवालों के जवाब बीजेपी-आरएसएस की असल मंशा को जाहिर करने के लिए काफी हैं।

(आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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