मोदी-शाह मुक्त बीजेपी के लिए संघ ने गडकरी के साथ बनाया ‘प्लान बी’, लेकिन चुनावी नतीजे इसकी भी निकाल सकते हैं हवा

संघ के प्लान बी की समय से पहले ही हवा वसंतराव नाइक शेती स्वावलंबन मिशन के चेयरमैन किशोर तिवारी ने निकाल दी है। वे कहते हैं, “बीजेपी को 2014 के मुकाबले 140 सीटें कम आने वाली हैं, ऐसे में नहीं लगता कि गडकरी पीएम बन पाएंगे।“

फोटो : सोशल मीडिया
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नवीन कुमार

लोकसभा चुनावों का आखिरी दौर अभी बाकी है, लेकिन जमीनी रिपोर्ट्स आ रहे संकेतों ने सत्तारुढ़ गठबंधन की नींद उड़ा दी है। ऐसे में एक नेता ऐसा है जो न सिर्फ आश्वस्त नजर आता है, बल्कि कुछ उत्साहित भी है। इस नेता का नाम है नितिन गडकरी, जो आरएसएस के प्लान बी के तहत अगली सरकार का मुखिया हो सकता है।

लोकसभा चुनाव संपन्न होने से पहले ही महाराष्ट्र बीजेपी में अंदरूनी गुटबाजी सामने आने लगी है। सूत्र बताते हैं कि इस गुटबाज़ी और भितरघात के चलते बीजेपी की सहयोगी शिवसेना को कई सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ सकता है। इतना ही नहीं बीजेपी के कुछ अहम उम्मीदवारों के भी चेहरे उतर सकते हैं। इन चेहरों में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी शामिल हैं।

सूत्रों के मुताबिक नितिन गडकरी आरएसएस के प्लान बी के तहत काम कर रहे हैं, और अंदरूनी तौर पर मेल-मुलाकातों और रणनीति बनाने में लगे हैं। यह बात आम है कि नितिन गडकरी संघ प्रमुख मोहन भागवत के प्रिय हैं। बताया जाता है कि आरएसएस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में नितिन गडकरी पर दांव लगा रखा है। हालांकि गडकरी इस बात से लगातार इनकार करते रहे हैं।

दरअसल संघ ने प्लान बी के तहत नितिन गडकरी को मोदी-शाह गुट के मुकाबले सामने खड़ा कर दिया है। भले ही गडकरी इससे इनकार करें, लेकिन बीजेपी के राम माधव और शिवसेना के संजय राऊत ने तो साफ कह दिया है कि बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने वाला है, ऐसे में प्रधानमंत्री पद एनडीए का होगा।


इन्हीं बयानों के चलते गडकरी के मन में लड्डू फूट रहे हैं। बताया जाता है कि गडकरी को संघ का साथ तो मिला ही हुआ है, उन्हें शिवसेना और नीतीश कुमार की जेडीयू का भी समर्थन मिल सकता है। ध्यान रहे कि गडकरी पिछले दरवाज़े से मिल रही इसी शह की वजह से मोदी-शाह समर्थक योगी आदित्यनाथ के विरोध में भी मुखर देखे गए हैं।

लेकिन, अगर ऐसी स्थिति बनी कि एनडीए सरकार ही न बना पाए, तो संघ का यह प्लान बी फेल हो जाएगा। गडकरी को भी इसका अंदाज़ा है, इसीलिए वे महाराष्ट्र बीजेपी में हलचल पैदा कर अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति पर काम कर सकते हैं।

लेकिन संघ के प्लान बी की समय से पहले ही हवा वसंतराव नाइक शेती स्वावलंबन मिशन के चेयरमैन किशोर तिवारी ने हवा निकाल दी है। यूं तो तिवारी नितिन गडकरी का नाम काफी समय से उछाल रहे हैं, लेकिन अब वे कहते हैं कि बीजेपी 2014 के मुकाबले आधी सीटें हार जाएगी तो किसी के भी पीएम बनने का सवाल कहां से आएगा। वे कहते हैं, “बीजेपी को 140 सीटें कम आने वाली हैं, ऐसे में नहीं लगता कि गडकरी पीएम बन पाएंगे।“


गौरतलब है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की करारी हार के बाद तिवारी ने आरएसएस प्रमुख भागवत और महासचिव भैय्याजी सुरेश जोशी को पत्र लिखकर मोदी की जगह गडकरी को लाने की बात कही थी। तिवारी का कहना है कि अगर गडकरी के नेतृत्व में लोकसभा के चुनाव लड़े जाते तो बीजेपी की स्थिति बेहतर होती। लेकिन मोदी और शाह ने बीजेपी को अपनी पार्टी बना लिया है और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करके चुनाव लड़े जा रहे हैं।

वे बताते हैं कि, “राजनाथ सिंह जैसे दिग्गज नेता भी लाचार हो गए हैं। पार्टी चापलूसी के दौर से गुजर रही है। आरएसएस की विचारधारा और मोदी-शाह की दबंग विचारधारा में तालमेल नहीं है। पार्टी के लिए मोदी-शाह के जोर से चिल्लाने का प्रयोग भी घातक सिद्ध हो रहा है। ग्रामीण भारत में मोदी का जनाधार कम हुआ है। मोदी-शाह ब्रांड बीजेपी को ले डूबेगा। फिलहाल जो स्थिति दिख रही है उसमें महागठबंधन की सरकार बन सकती है।“

उधर आरएसएस के सूत्रों का कहना है कि बीजेपी को मोदी-शाह के चंगुल से बाहर लाना है और इसके लिए जो विकल्प सोचे गए हैं उसके लिए काम किया जा रहा है। बीजेपी में गडकरी ही इकलौते नेता हैं जिनका नाम मोदी के विकल्प के तौर पर सामने आया है। और वो जिस तरह से मोदी और उनकी टीम पर कटाक्ष करते हैं और कांग्रेस की भी तारीफ कर देते हैं उससे उनके बारे में कहा जा रहा है कि गडकरी आरएसएस की ही स्क्रिप्ट पढ़ते हैं।

इस दौरान नागपुर संघ मुख्यालय गडकरी के अलावा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी हाजिरी लगाते देखा गया है। फडणवीस के बारे में कहा जाता है कि वो मोदी गुट के हैं। बावजूद इसके जब महाराष्ट्र लॉबी की बात होती है तो उनका झुकाव अपने प्रदेश की तरफ होता है। शायद उन्हें पता है कि सत्ता सुख लेना है तो प्रदेश और प्रदेश के नेताओं के अलावा आरएसएस के साथ भी रहना ही होगा।

इसके अलावा बीजेपी की सहयोगी शिवसेना भी नितिन गडकरी के लिए जोर लगा सकती है, क्योंकि इससे न सिर्फ शिवसेना का मराठी गौरव का हित सधता है, बल्कि मोदी-शाह के दौर में गुजराती टीम के हाथों हुए अपमान का बदला लेने का भी मौका उसे मिल जाएगा।

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