आरएसएस ने 31 साल पहले किया था अयोध्या में मंदिर निर्माण का विरोध, लगाई थी अशोक सिंघल की डांट, किताब में खुलासा

आरएसएस का मकसद मंदिर निर्माण नहीं, बल्कि मंदिर के नाम पर माहौल बनाकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना था। इतना ही नहीं आरएसएस ने मंदिर निर्माण का विरोध तक किया था। यह खुलासा हुआ है वरिष्ठ पत्रकार और अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए बने अयोध्या विकास ट्रस्ट के संयोजक रहे शीतला सिंह की किताब में।

फोटो सौजन्य : satyahindi.com
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नवजीवन डेस्क

आरएसएस नहीं चाहता था कि मंदिर निर्माण हो, और संघ ने आज से 31 साल पहले मंदिर आंदोलन शुरु करने पर विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन महामंत्री अशोक सिंघल को डांट भी लगाई थी कि वे मंदिर निर्माण पर कैसे तैयार हो गए।

वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह ने अपनी किताब ‘रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद का सच’ में विस्तार से उन घटनाक्रमों को लिखा है, जो मंदिर निर्माण के शुरुआती आंदोलन के दौर में हो रहे थे।

शीतला सिंह ने अपनी किताब के पृष्ठ संख्या 110 में इस घटना का ज़िक्र किया है। उनकी जानकारी का स्रोत हैं के एम शुगर मिल्स के मालिक और प्रबंध संचालक लक्ष्मीकांत झुनझुनवाला। झुनझुनवाला उस वक्त विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता विष्णुहरि डालमिया के लिए कुछ काग़ज़ात लेने शीतला सिंह के पास आए थे और काग़ज़ लेकर दिल्ली लौट गए। अगले दिन जब वे वापस फ़ैज़ाबाद आए तो उन्होंने उन्हें कुछ बातें बताईं।

आरएसएस ने 31 साल पहले किया था अयोध्या में मंदिर निर्माण का विरोध, लगाई थी अशोक सिंघल की डांट, किताब में खुलासा

उन्होंने लिखा है कि, 1987 में आरएसएस के सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री अशोक सिंघल को इस बात पर डांट लगाई थी कि वे राम मंदिर निर्माण पर कैसे तैयार हो गए। उस वक़्त एक फ़ॉर्मूला बना था जिसके तहत विदेशी तकनीक का इस्तेमाल करके बाबरी मसजिद को बिना कोई नुक़सान पहुंचाए अपने स्थल से हटाया जाना था और राम चबूतरे से राम मंदिर का निर्माण शुरू हो जाना था। जब यह बात देवरस को पता चली तो उन्होंने सिंघल से कहा, ‘इस देश में 800 राम मंदिर विद्यमान हैं, एक और बन जाए, तो 801वाँ होगा। लेकिन यह आंदोलन जनता के बीच लोकप्रिय हो रहा था, उसका समर्थन बढ़ रहा था जिसके बल पर हम राजनीतिक रूप से दिल्ली में सरकार बनाने की स्थिति तक पहुँचते। तुमने इसका स्वागत करके वास्तव में आंदोलन की पीठ पर छूरा भोंका है।’ शीतला सिंह किताब में लिखते हैं कि, ‘वर्ष 1987 में दिसंबर का ही कड़कड़ाते जाड़े का महीना था जब देवरस की यह हैरान करने वाली बात सुन कर सिंघल ख़ुद चकित थे।‘

शीतला सिंह वरिष्ठ पत्रकार अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए बने अयोध्या विकास ट्रस्ट के संयोजक भी थे। वे फ़ैज़ाबाद से निकलने वाले अख़बार जन मोर्चा के संपादक हैं। उनका फ़ैज़ाबाद और आसपास के इलाक़ों में बहुत सम्मान है।

लक्ष्मीकांत झुनझुनवाला ने शीतला सिंह को जो बताया उसके मुताबिक, ‘27 दिसंबर 1987 को पांचजन्य और ऑर्गनाइज़र में यह ख़बर छपी थी कि राम मंदिर का निर्माण होने वाला है। इस ख़बर में लिखा था कि रामभक्तों की विजय हुई और कांग्रेस सरकार मंदिर बनाने के लिए विवश हो गई। ख़बर के अनुसार मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट भी बनेगा।‘ उनके मुताबिक़ जब यह ख़बर देवरस को मालूम हुई तो उन्होंने आरएसएस के दिल्ली कार्यालय केशव कुंज, झंडेवालान में अशोक सिंघल को तलब किया।

देवरस ने अशोक सिंघल से कहा, ‘तुम इतने पुराने स्वयंसेवक हो। तुमने इस योजना का समर्थन कैसे कर दिया?’ सिंघल ने कहा, ‘हमारा आंदोलन तो राम मंदिर के लिए ही था। यदि वह स्वीकार होता है तो उसका स्वागत करना चाहिए।’ इस पर देवरस उन पर बिफर गए और कहा, ‘तुम्हारी अकल क्या घास चरने चली गई है?’

दिलचस्प बात यह है कि यह समाचार आरएसएस के मुखपत्रों ऑर्गनाइज़र और पांचजन्य के अलावा उस समय देश के अन्य किसी भी समाचार माध्यम में नहीं छपा था। ज़ाहिर है, इस ख़बर के स्रोत विश्व हिंदू परिषद के ही लोग थे।

महंत नृत्यगोपल दास अयोध्या विकास ट्रस्ट के अध्यक्ष थे और राम जन्मभूमि न्यास के अगुआ परमहंस रामचंद्र दास भी इसमें शामिल थे। ये दोनों विश्व हिंदू परिषद द्वारा चलाए जा रहे राम जन्मभूमि आंदोलन के शीर्ष नेताओं में थे।

तत्कालीन प्रमुख मुसलिम नेता सैयद शहाबुद्दीन ने भी शुरुआत में इस ट्रस्ट के प्रयासों पर एतराज़ जताया था। उन्हें लगता था कि यह आरएसएस की कोई चाल है। उन्होंने अपनी पत्रिका 'मुस्लिम इंडिया' में इसके विरोध में लेख भी लिखा था और मुस्लिम नेताओं से कहा था कि वे इन बैठकों से दूर रहें।

शीतला सिंह के हिसाब से जब उन्होंने पूरी बात शहाबुद्दीन को बताई तो वे उनकी राय से सहमत हुए और वे भी ट्रस्ट के सुझाए फ़ॉर्मूले पर तैयार हो गए। यहां तक कि अपने सहायक से फ़ोन मिलवा कर जामा मसजिद के इमाम अब्दुल्ला बुखारी से भी बात कराई और उन्हें भी राज़ी किया। शीतला सिंह की किताब के मुताबिक मुसलिम नेता बाबरी मसजिद को मौजूदा स्थान से आधुनिक तकनीक के द्वारा बिना तोड़े अयोध्या के परिक्रमा मार्ग पर ले जाने के लिए तैयार हो गए थे। मुस्लिम नेताओं ने धार्मिक सहमति प्राप्त करने के लिए पांच प्रमुख इस्लामी देशों के उलेमा (इस्लामी विद्वानों) को पत्र भी लिखे थे, जिनमें से तीन से सहमति भी आ गई थी। किताब के मुताबिक इस सारे मामले की जानकारी तत्कालीन गृह मंत्री बूटा सिंह और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों - पहले वीर बहादुर सिंह और फिर नारायण दत्त तिवारी को भी थी।

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मंदिर निर्माण के लिए स्थानीय ट्रस्ट के इस निर्णायक हस्तक्षेप के सबसे बड़े समर्थक बने महंत अवैद्यनाथ जो इस ट्रस्ट के सदस्य तो नहीं थे, लेकिन विश्व हिंदू परिषद के सबसे बड़े नेता थे। दरअसल, महंत परमंहस, नृत्यगोपाल दास, जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल, नारायणाचारी आदि विहिप नेता आरएसएस से अलग अवैद्यनाथ के गुट के थे। किताब के मुताबिक महंत अवैद्यनाथ ने इस दौरान एक भेंट में शीतला सिंह से कहा, ‘बच्चा मंदिर बनवाय देओ, इन सरवन (वीएचपी में आरएसएस नेताओं के बारे में) को तो केवल वोट और नोट चाही।’

देवरस की नाराज़गी के बाद वीएचपी नेताओं के हाथ-पैर फूल गए। पुस्तक में इस बात का ज़िक्र है कि देवरस ने साफ़ कहा कि वे इस योजना से अपने हाथ खींच लें। कुछ समय के बाद ऐसा ही ही हुआ जब विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने कहा कि इस योजना में यह तय नहीं है कि मंदिर का गर्भगृह कहां होगा।

दिलचस्प यह है कि जनवरी 1988 में संघ के मुखपत्र में छपा कि शीतला सिंह वामपंथी विचार के हैं इसलिए इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। पुस्तक में लिखा है कि इस तरह से पूरे प्रयासों का पटाक्षेप हो गया।

(यह लेख सबसे पहले satyahindi.com में प्रकाशित हुआ है। इस लेख में दी गई जानकारी , विचार और सूचनाएं लेख में उद्धत किताब के लेखक की हैं, और नवजीवन इनकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।)

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