सहारनपुर: सचिन वालिया की मौत के बाद से दलित नौजवानों में पनप रहा है भारी आक्रोश

सहारनपुर में दलित युवाओं में अजीब तरह की बेचैनी फैल रही है। यहां भीम आर्मी की कार्यशैली अचानक से बदल गई है। इनके कार्यकर्ता अब मीडिया से बेहद विनम्रता से बात कर रहे हैं और पुलिस पर आक्रामक नहीं है।

फोटो: आस मोहम्मद कैफ
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आस मोहम्मद कैफ

सहारनपुर में हुई सचिन वालिया की हत्या के बाद दलित युवाओं में भारी उथल-पुथल चल रही है। मेरठ में दलितों के एक बदला लेने वाले गैंग की गिरफ़्तारी से यह बात सामने आई। शुक्रवार को मेरठ क्राइम ब्रांच ने 7 युवकों को गिरफ़्तार किया। पुलिस का कहना है कि वे सभी लोग सहारनपुर में सचिन वालिया की हत्या का बदला लेने के लिए युवाओं को इकट्ठा कर रहे थे। इसके लिए व्हाट्सएप पर एक ग्रुप बनाया गया था, जिसमें भीम आर्मी के भी कार्यकर्ता हैं। 250 से ज्यादा युवक इसमें जुड़ चुके हैं। पुलिस के अनुसार, यह सभी सहारनपुर जाकर राजपूतों से बदला लेने की योजना बना रहे थे। गिरफ्तार सभी 7 युवक दलित हैं और मेरठ के अलग-अलग इलाके से हैं। क्राइम ब्रांच के अनुसार, इन्हें मुखबिर की सूचना के आधार पर पकड़ा गया। उनमें ब्रह्मपूरी के रवि गौतम, अलीपुर के रविंद्र भारत, मोदीपुरम के नीरज, हस्तिनापुर के संदीप और नीवा के राहुल का नाम शामिल है। क्राइम ब्रांच के मुताबिक, वे सभी सहारनपुर जाकर हिंसा करना चाहते थे।

उधर सहारनपुर में दलित युवाओं में एक अजीब तरह की बेचैनी फैल रही है। यहां भीम आर्मी की कार्यशैली अचानक से बदल गई है। इनके कार्यकर्ता अब मीडिया से बेहद विनम्रता से बात कर रहे हैं और पुलिस पर आक्रामक नहीं है। दूसरी तरफ सचिन वालिया की मौत की गुत्थी उलझ गई है। पुलिस के अनुसार, पहली नजर में यह बात सामने आती है कि सचिन वालिया अपने घर की छत पर खड़ा था, वहां उसे गोली लगी और वह छत से नीचे गिर गया।

सहारनपुर: सचिन वालिया की  मौत के बाद से दलित नौजवानों में पनप रहा है भारी आक्रोश

सचिन के परिजनों का कहना है कि वह सुबह नाश्ता करने के लिए घर से बाहर गया था, जहां रामनगर चौक पर उसको गोली मार दी गई। पुलिस और परिजन दोनों एक दूसरे की कहानी को झूठा बताते हैं, मगर सच यह है कि सचिन वालिया मर चुका है और सहारनपुर में भीम आर्मी की रीढ़ अब टूट चुकी है।

भीम आर्मी से जुड़े जानकारों के मुताबिक, सचिन की पहचान सिर्फ सहारनपुर के जिलाध्यक्ष कमल वालिया के भाई के तौर पर नहीं थी, बल्कि वह भीम आर्मी का सबसे सक्रिय और महत्वपूर्ण कार्यकर्ता था। वह भीम आर्मी के फाइनेंशियल कंट्रोलर का कामकाज देखता था। भीम आर्मी के पिछले दो प्रदर्शनों में भारी भीड़ सचिन के मैनजेमेंट की ही देन थी। 8 महीने बाद जेल से लौटे अपने भाई कमल वालिया का इस बीच उसने कामकाज देखा और भीम आर्मी को जनपद में और अधिक मजबूती प्रदान की। सचिन ने अपने भाई की कमी भीम आर्मी को महसूस नहीं होने दी।

कमल वालिया भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर रावण के बाद भीम आर्मी में सबसे ज्यादा भीड़ जुटाने के लिए जाने जाते हैं और वे चन्द्रशेखर के सबसे विश्वसनीय साथी भी हैं। कमल वालिया का घर सहारनपुर से बिल्कुल सटे गांव रामनगर में है। यह बड़गांव मार्ग पर है। शब्बीरपुर जाने के लिए यहां से ही गुजरना पड़ता है। भीम आर्मी के तमाम प्रदर्शनों और आयोजनों में सचिन वालिया सबसे आगे रहा है। पिछले साल 9 मई को जब सहारनपुर में भारी बवाल हुआ तो सबसे अधिक हिंसा रामनगर में हुई थी। उस वक्त एसपी सिटी को जान बचाकर भागना पड़ा था। तब भीम आर्मी के अग्रिमपंक्ति के कार्यकर्ताओं में सचिन भी था। यहीं से 100 मीटर दूर एक महाराणा प्रताप भवन है, तब उसमें आग लगा दी गई थी।

पिछले दिनों जब इस महाराणा प्रताप भवन में राजपूतों ने जयंती मनाने की अनुमति मांगी तो रामनगर के दलितों ने इसका विरोध किया। रामनगर एक दलित बहुल इलाका है और यह भवन एकदम गांव के करीब है। यहां राजपूतों के आवागमन से दलित और राजपूतों में संघर्ष की संभावना थी। इस आग में घी डालने का काम उपदेश राणा नाम के एक विवादित युवक के वीडियो ने किया, जिसमें भीम आर्मी को ‘ठोंकने’ की बात कही गई थी। पहले तो स्थानीय प्रशासन ने इस बात की गंभीरता को समझते हुए अनुमति नहीं दी, मगर बाद में देवबंद विधायक बृजेश सिंह के कहने पर अनुमति दे दी गई। बृजेश सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के काफी करीबी है, इसलिए प्रशासन उन्हें इंकार करने की हिम्मत नही जुटा पाया। इसके बाद 200 लोगों को जयंती मनाने की अनुमति दे दी गई और वहां 800 पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगा दी गई।

सहारनपुर: सचिन वालिया की  मौत के बाद से दलित नौजवानों में पनप रहा है भारी आक्रोश

नाम न छापने की शर्त पर रामनगर के एक युवक हमें बताते हैं कि उसके बाद दलित नौजवानों में अत्यधिक तनाव था। उस दिन दलितों ने काम पर जाना मुनासिब नहीं समझा। उन्हें डर था कि कहीं शब्बीरपुर की तरह राजपूत भीड़ गांव पर हमला न कर दे, इसलिए ज्यादातर युवा अपने घरों की छत पर खड़े थे और राजपूतों पर नजर रखे हुए थे। सचिन भी उनमें से एक था। अचानक से गोली की आवाज़ आई और सचिन गिर गया। अब जाहिर है कि अगर सभा की अनुमति न दी जाती तो यह घटना टल सकती थी, इसलिए दलितों का सारा गुस्सा प्रशासन पर है। सचिन वालिया की 53 साल की मां कांति देवी कहती हैं, "यही तो चाहते थे वे और वह हो गया। प्रशासन को परमिशन नही देनी चाहिए थी।"

सचिन की यह मौत भीम आर्मी के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना साबित होने वाली है। इसके संकेत मिलने लगे हैं। शुक्रवार को गांव के अम्बेडकर भवन में सचिन के लिए श्रंद्धाजलि सभा थी। भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर रावण और राष्ट्रीय अध्यक्ष विनय रतन सिंह को इसमें शामिल होने की अनुमति नही दी गई। भीम आर्मी के लोग चाहते थे कि इस दिन कोई भाषण न दिया जाए, मगर सभा मे मौजूद लोगों ने कमल वालिया को बोलने के लिए खड़ा कर दिया। कमल वालिया ने अपने भाई को समाज के लिए शहीद बताया और समाज के युवाओं को शहीद उधम सिंह से प्रेरणा लेने को कहा। कमल ने कहा कि उन्हें सरकार से इंसाफ की कोई उम्मीद नहीं है। पुलिस हत्या की कहानी को डाइवर्ट कर रही है। इसके बाद कमल ने 27 मई को दलित स्वाभिमान के लिए बड़े स्तर पर इकट्ठा होने का ऐलान भी कर दिया। भावना में बहते हुए कमल ने कहा कि कुछ लोग उनके भाई की मौत पर जश्न मना रहे हैं। सोशल मीडिया पर हमारा मज़ाक उड़ा रहे है। वे लकीर खींच लें, हम पीछे नही हटेंगे। भीम आर्मी की अगली रणनीति के बारे में कोई अनुमान नही लग पा रहा है, मगर इतना तय है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दलित नौजवानों के माथे की त्योरियां चढ़ी हुई हैं।

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