सावरकर न ‘वीर’ थे न देशभक्त, अंग्रेज़ों से माफी मांगने वाले को भारत रत्न देना दुर्भाग्यपूर्ण: भूपेश बघेल

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मानना है कि हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर को “वीर” कहना उचित नहीं। “नवजीवन” से खास बातचीत में बघेल ने कहा कि सावरकर जैसे इंसान को, जिसका गांधी जी की हत्या में सीधा हाथ है, भारत रत्न देने की पेशकश करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

फोटो: प्रमोद पुष्कर्णा
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विश्वदीपक

मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा सावरकर को “वीर” कहकर संबोधित किए जाने की भी, बघेल ने आलोचना की। बघेल के मुताबिक सावरकर को “वीर” कहना और फिर भारत रत्न देने की पेशकश करना सांप्रदायिकता के गंदले इतिहास को मिटाने की कोशिश करने जैसा है।

उन्होंने कहा कि, “आरएसएस-बीजेपी द्वारा प्रायोजित अभियान है ये। जिस सावरकर ने उस वक्त अंग्रज़ों से माफ़ी मांगी जब पूरा देश महात्मा गांधी के नेतृत्व में ब्रिटिश साम्राज्यवाद से संघर्ष कर रहा था, उस सावरकर को वीर कैसे कहा जा सकता है?”

गौरतलब है कि अंडमान निकोबार की सेल्युलर जेल में बंद सावरकर ने 1911 से लेकर 1920 के बीच चार बार अंग्रेजों से लिखित में माफी मांगी थी। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक सेल्युलर जेल में पहुंचने के ठीक एक महीने बाद ही सावरकर ने 30 अगस्त 1911 को अंग्रेज़ों को पहला माफ़ीनामा लिखा था, जिसे चार दिन बाद ही 3 सितंबर को ब्रिटिश सरकार ने खारिज कर दिया था। इसके दो साल बाद 1913 में सावरकर ने फिर से एक बार अंग्रेज़ों को माफ़ीनामा लिखा। सावरकर ने खुद अपने हाथों से गवर्नर जनल काउंसिल के सदस्य सर रेनाल्ड क्राडोक को अपना माफ़ीनामा सौंपा था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

हैरानी की बात ये है कि इस माफ़ीनामे में सावरकर ने खुद को अंग्रेज़ी हुकूमत की संतान बताया था। इसके चार साल बाद 1917 में सावरकर ने एक बार फिर कैदियों को दिए जाने वाले माफ़ीनामे के आधार पर दया याचिका पेश की थी। चौथी बार मार्च 1920 में सावरकर ने अतीत की क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए अंग्रेजों से माफी मांगते हुए रिहाई की अपील की थी।

यह बात कम ही लोगों को पता है कि सावरकर की चौथी याचिका के खारिज होने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समेत महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने सावरकर की “बिना शर्त रिहाई” की मांग की थी।


इतिहास का हवाला देते हुए बघेल ने कहा कि हिंदू महासभा और सावरकर जैसे लोगों ने शुरु से ही सांप्रदायिकता के बीज बोने शुरु कर दिए थे जिसका प्रतिफलन आगे चलकर यह हुआ कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग उठाई और अंतत 1947 में देश का विभाजन हुआ। हिंदू महासभा और सावरकर को “टू नेशन थियरी” का असली जनक बताते हुए बघेल ने कहा – “आरएसएस और सावरकर जैसों के चलते न केवल देश का विभाजन हुआ बल्कि महात्मा गांधी की हत्या भी हुई। गांधी जी की हत्या में सावरकर का हाथ था। ऐसे सावरकर को भारत रत्न देने की पेशकश करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”

गांधी और सावरकर के बहाने कांग्रेस और बीजेपी की सोच का फर्क रेखांकित करते हुए बघेल ने कहा कि कांग्रेस गांधी को अपना आदर्श मानती है, जबकि बीजेपी के आदर्श सावरकर और गोडसे हैं। इसी से पता चलता है कि बीजेपी कितनी देशभक्त है।

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Published: 19 Oct 2019, 3:00 PM