जोशीमठ को 'भूसमाधि' की ओर बढ़ता देख टूटी मोदी सरकार की नींद! PMO ने बुलाई हाई लेवल बैठक, बहुत देर कर दी हुजूर आते-आते!

फिलहाल आलम यह है कि दर्जनों घर तबाह ह गए हैं और कई तबाही की कगार पर खड़े हैं। इन घरों में रह रहे 66 से ज्यादा परिवार जोशीमठ छोड़कर पलायन कर चुके हैं। कई परिवार अभी भी पलायन करने की तैयारी में हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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हैदर अली खान

उत्तराखंड का जोशीमठ पल-पल अपनी 'भूसमाधि' की ओर बढ़ रहा है। घरों में पड़ी दरारों के बढ़ने और भूधंसवा का सिलसिला जारी है। जोशीमठ के लेगों के लिए समय और उनके सपने मुट्ठी में रेत की तरफ फिसलते जा रहे हैं। यहां के लोग अपनी आंखों के सामने अपने आशियाने को तबाह होता देख रहे हैं। खुद को हिंदुओं का हितैषी बताने वाली मोदी सरकार की अब नींद टूटी है। पीएमओं के मुताबिक, जोशीमठ भू-धंसाव पर प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी. के. मिश्रा आज पीएमओ में कैबिनेट सचिव और केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्यों के साथ उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक करेंगे। जोशीमठ के जिला पदाधिकारी और उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारी भी इस मुद्दे पर वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से मौजूद रहेंगे। सवाल यह है कि हिंदुओं के आस्था के प्रतीक जोशीमठ को बचाने के लिए कदम उठाने में आखिर मोदी सरकार ने इतनी देरी क्यों की?  

जोशीमठ करोड़ों हिंदुओं के लिए एक प्रतीक के रूप में जाना जाता है। गौर करने वाली बात यह है कि जोशीमठ में पहली बार एक घर में करीब डेढ़ साल पहले दरारें पड़ी थीं। उसके बाद से दरारें बढ़ने लगीं। पिछले कुछ हफ्तों में दरारों के बढ़ने का सिलसिला लगातार बढ़ा है। करीब डेढ़ साल पहले जोशीमठ में पहली बार जिस घर में दरारें पड़ी थीं, उसके मालिक का कहना है कि जब दरारें पड़ी तो उन्होंने इस संबंध में प्रशासन को जानकारी दी। लेकिन प्रशासन ने यह कहते हुए उनकी बात को अनसुना कर दिया कि उनकी घर की बुनियाद कमजोर है। यही नहीं जब हालात बिगड़े और मकान मालिक ने प्रशासन से मुआजवे की मांग की तो उन्हें कहा गया कि घर गिरने के बाद ही मुआवजा दिया जाएगा। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रशासन ने किस हद तक लापरवाही बरती है।


समय बीतने के साथ जोशीमठ के 500 से ज्यादा घरों में दरारें आ गईं। अब यह दरारें लगातार चौड़ी होती जा रही हैं। सड़कों में दरारें पड़ गई हैं। ऐसा लग रहा जैसे सारी चीजें जमीन में धंसती चली जा रह हैं। जोशीमठ 'भूमसमाधि' की ओर बढ़ रहा है। यहां के लाचार लोग पथराई हुई आंखों से यह सारा मंजर देखने को मजबूर हैं।

जिस तरह की शिकायतें लोग कर रहे हैं उससे साफ है कि करीब ढाई हजार साल पहले आदि शंकराचार्य द्वारा बसाए गए इस शहर के उजड़ने के पीछे काफी हद तक राज्य सरकार और प्रशासन जिम्मेदार है। सवाल यह पूछा जा रहा है कि आखिर समय रहते यहां रह रहे लोगों की शिकायतें क्यों नहीं सुनी गईं? आखिर क्यों हालात बद से बदतर होने के बाद सरकार और प्रशासन की नींद टूटी है?


यहां के पहाड़ बेहद कम उम्र के हैं। इन पहाड़ों में सुरंग बनाए जा रहे थे। सड़कों के लिए बड़े स्तर पर निर्माण कार्य चल रहा था। तबाही को द्वारा पर खड़ा देख निर्माण कार्यों को अब बंद कर दिया गया है। निर्माण कार्यों के शुरू करने से पहले और इसके जारी रखने तक कई विषेशज्ञों ने इस पर सवाल खड़े किए थे। इसे बंद करने की नसीहतें दी थीं, लेकिन बंद नहीं की गई। स्थानीय लोग भी सैकड़ों बार निर्माण कार्यों के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके थे। अब जबकि सबकुछ हाथ से फिलता देख निर्माण कार्यों को बंद कर दिया गया। ऐसा अनुमान है कि निर्माण कार्यों की वजह से जोशीमठ में ऐसी तबाही आई है। हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी अभी पुष्टि नहीं हुई है।

फिलहाल आलम यह है कि दर्जनों घर तबाह ह गए हैं और कई तबाही की कगार पर खड़े हैं। इन घरों में रह रहे 66 से ज्यादा परिवार जोशीमठ छोड़कर पलायन कर चुके हैं। कई परिवार अभी भी पलायन करने की तैयारी में हैं। यहां रह रहे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। कुछ परिवार इस तबाही के बीच अभी भी अपने घरों में रह रहे हैं, जहां कभी कोई भी अनहोनी हो सकती है। इकना कहना है कि जिस घर और सामान को बनाने के लिए उनकी पूरी उम्र निकल गई। जिस जमीन से उनके पूर्वजों का नाता है उसे आखिर एक पल में कैसे छोड़कर चले जाएं? आंखों के सामने ओझल होते जोशीमठ के बीच यहां के लोगों के सैकड़ों सवाल है, जिसका कोई जवाब न तो सरकार के पास और और न प्रशासन के पास।

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Published: 08 Jan 2023, 1:45 PM