शाहजहांपुर बॉर्डर: NH48 पर ही किसानों ने बसाया ‘बड़ा गांव’, बोले- या तो कानून वापस, या हम भगवान को वापस

दिल्ली-जयपुर के इस हाइवे पर 3 किमी की दूरी में 35 दिन से डटे हजारों किसानों ने हाईवे पर ही गांव बसा लिया है। रेवाड़ी और अलवर के आसपास के गांवों के किसानों की तादाद यहां लगातार बढ़ रही है। देखकर ऐसा लगता है कि टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर शहर बसा है और यहां गांव!

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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आस मोहम्मद कैफ

दिल्ली का सिंघु और टिकरी बॉर्डर लाखों की संख्या में बुलंद हौसलों के साथ डटे किसानों के लिए चर्चा में है तो गाजीपुर बॉर्डर 'टिकैत लैंड' बन चुका है। दिल्ली की इन सीमाओं पर किसान जहां 51 दिन से डटे हुए हैं, वहीं अब शाहजहांपुर बॉर्डर पर भी किसानों को 35 दिन हो गए हैं। यहां के आंदोलन का तरीका अन्य तीन सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर से अलग और विशेष है, हालांकि लड़ाई और मांग इनकी भी समान है।

शाहजहांपुर बॉर्डर से आप राजस्थान का अलवर और हरियाणा का रेवाड़ी बॉर्डर समझ सकते हैं। दिल्ली से यह बॉर्डर 110 किमी दूरी पर है। इसे देश का सबसे व्यस्त रहने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग भी कह सकते हैं और साफ-साफ ज़बान में समझें तो यह हरियाणा और राजस्थान का दिल्ली बॉर्डर है और मुम्बई जाने के लिए यहीं से बड़ी सड़क जाती है। यहां के निवासी जिसे 'बड़ी सड़क' कह रहे हैं वो राष्ट्रीय राजमार्ग-48 है। यह राजमार्ग देश के सबसे महत्वपूर्ण हाइवे में से एक है।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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दिल्ली-मुम्बई-जयपुर के इस हाइवे पर 3 किमी की दूरी में हजारों किसान 35 दिन से जुटे हुए हैं। ग्रामीणों ने हाईवे पर ही गांव बसा लिया है। रेवाड़ी और अलवर के आसपास के गांवों के किसानों की तादाद यहां लगातार बढ़ रही है। विदर्भ के किसानों की विधवाओं का एक समूह भी यहां पहुंचा है। यहां देखकर ऐसा लगता है कि टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर शहर बसा है और यहां गांव! मेवात के अपने एक इतिहास के चलते यहां बड़ी संख्या में फोर्स तैनात की गई है। बड़ी सड़क को कंटेनर से ब्लॉक किया गया हा और आरसीसी के बड़े-बड़े अवरोधक यहां खड़े किए गए हैं। एक निश्चित दूरी पर तीन अवरोधक हैं।

दरअसल मेवात के आसपास के इन गांवों में जो भी कुछ होता है, वो पंचायत से होता है। ग्रामीणों के यहां आने से पहले भी 35 गांव की पंचायत हुई। अब ऐसी पंचायतें गांव-गांव हो रही हैं और आंदोलन को बढ़ाने की बात हो रही है। यहां जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील बताते हैं कि बारिश तूफान सर्दी जैसे सारे बेरिकेड्स हम पार कर चुके हैं, पत्थर हमारा रास्ता नहीं रोक पाएंगे। राजाराम बताते हैं गांव बड़ा हो रहा है। रोज 10-12 नई झोपड़ियां बस जाती हैं।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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यहां सबसे बड़े आकर्षण का केंद्र राजस्थान के फुलेरा तहसील से आए दो किसान नारायण लाल और गोपाल जी मीणा की जोड़ी है। गोपाल और नारायण गहरे मित्र हैं। नारायण 68 के हैं और गौपाल 72 के। गोपाल गूंगे हैं और नारायण उनके इशारों को समझते हैं और पत्रकारों को समझाते हैं। गोपाल की बात नारायण कहते हैं, “ये कह रहा है कि घर कहकर आया है कि या तो कानून वापस, नहीं मैं भगवान के पास वापस। बीच में रण छोड़कर नही आऊंगा। हमारी फसलों में लगातार घाटा हो रहा है। किसान का दर्द जान कौन रहा है!”

किसान यहां भी दबने और झुकने के लिए तैयार नहीं हैं। फोर्स ने जो 'थ्री लेयर प्रोटेक्शन' की है उसे उखाड़ने के लिए किसानों ने जेसीबी मंगवा ली है। राजाराम मील बताते हैं, “जेसीबी और क्रेन तो किसानों के घर-घर में है। यहां तो शादियों में कुछ लड़कों को दहेज में कार की जगह किसान ट्रैक्टर और जेसीबी देते हैं। हमें कौन सा किराया देना है! मशीनें हमारे किसान भाई ले आए हैं! जब दिल्ली जाने का ऐलान होगा सब पत्थर-केंटर उठाकर फेंक देंगे। फोर्स हमें क्या कहेगी सब हमारे ही तो बच्चे हैं। अभी हमारे कुछ किसान भाई जज्बाती होकर 35 किमी तक चले गए थे। वहां उनपर आंसू गैस और पानी की बौछार हुई तो वहीं बैठ गए। उस जगह का नाम धारूहेड़ा है। पीछे नहीं हटेंगे। चाहे चलें एक कोस ही।”

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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हजारों किसान के बीच यहां एक मेवाती कैम्प भी है, जिसका संचालन मुफ़्ती सलीम साकरस कर रहे हैं। यहां हर एक गांव से रोजाना 500 लीटर दूध आ रहा है। यह कैम्प 24 घंटे आंदोलनकारियों को चाय-नाश्ता करा रहा है। मुफ़्ती सलीम कहते हैं, "हम भी किसान हैं, सब साथ लड़ेंगे साथी।" जाट महासभा के बलबीर छिल्लर यहीं चाय पी रहे हैं। वो कहते हैं, "हां हम लड़ेंगे साथी"।

फोटोः आस मोहम्मद कैफ
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धारूहेड़ा में इसी हाइवे पर 4 हजार किसान बैठे हैं। 15 दिन पहले यह दिल्ली की और बढ़ चले तो इन पर बल प्रयोग हुआ। यहां ग्रामीण किसान मजदूर समिति के प्रवक्ता सतवीर सिंह बताते हैं कि 30 दिसंबर को यहां किसानों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दी। हमारे किसान भाइयों पर पानी फेंका, टियर गैस चलाई और स्मोक बम फेंके। सतवीर बताते हैं कि वो ऐसे बम थे जो पैर में आकर गिरते थे और पैरों को जख्मी कर देते थे। हमारे बहुत से किसान भाई के पैर जख्मी हो गए। आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश हो रही है। हम किसान हैं, आतंकवादी नहीं।

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स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव भी इन किसानों के बीच लगातार जुटे हैं। वो लगातार किसानों के बीच घूमते रहते हैं और यहां मदद लेकर आने वालों का धन्यवाद जताते रहते हैं। खास बात यह भी है कि यहां 800 से ज्यादा बड़ी इंडस्ट्रीज का दफ्तर है, जिनमें कई तो मल्टीनेशनल हैं। हाइवे के बंद होने के कारण कारोबार भी बंद है। कई किमी तक ट्रकों की लंबी लाइन इसकी गवाह है, जो यहीं फंसकर रह गए हैं।

कड़ाके की इस ठंड में इन किसानों का सबसे बड़ा सहारा अलाव है। अलाव इन्हें ताकत देता है। रात भर यहां बैठने वाले जितेंद्र सिंह कहते हैं, "हमारी सुबह कभी तो आएगी।”

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Published: 15 Jan 2021, 7:11 PM