शंभू बार्डरः बीजेपी की भाषा बोलती नजर आई पुलिस, अन्नदाताओं से कहा- तुम किसान नहीं, जत्था किसानों का नहीं

पुलिस ने साफ कहा कि ये जत्था किसानों का नहीं है। आप किसान नहीं हो। आप गलत आदमी हो। यह वही भाषा थी, जो केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री लंबे वक्त से किसानों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें हरियाणा के पुर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर का नाम भी शामिल हैं।

शंभू बार्डरः बीजेपी की भाषा बोलती नजर आई पुलिस, अन्नदाताओं से कहा- तुम किसान नहीं, जत्था किसानों का नहीं
शंभू बार्डरः बीजेपी की भाषा बोलती नजर आई पुलिस, अन्नदाताओं से कहा- तुम किसान नहीं, जत्था किसानों का नहीं
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धीरेन्द्र अवस्थी

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ताकत के दम पर किसान आंदोलन कुचलने का इरादा बना लिया है। शंभू बार्डर में आज उस वक्त एक बार फिर इस बात की तस्दीक हो गई जब देश के अन्नदाताओं का मजाक उड़ाया गया। दिल्ली पैदल कूच के लिए निकले 101 किसानों के जत्थे से बीजेपी सरकार की पुलिस कह रही थी ये जत्था किसानों का नहीं है। आप किसान नहीं हो। आप गलत आदमी हो। ये वही भाषा है, जो केंद्र के दिग्गज मंत्री लंबे वक्त से बोल रहे हैं। जाहिर था कि हरियाणा पुलिस की जुबान से बीजेपी के शब्द निकल रहे थे। किसानों पर आंसू गैस के गोले और मिर्च स्प्रे भी चलाया गया। बूंदाबादी और ठंडी हवाओं से सिहरन भरे सर्द मौसम में भी ठंडे पानी की बौछारें अन्नदाता पर की गईं। इसमें तकरीबन आधा दर्जन किसान घायल हुए, जिसमें एक किसान को पीजीआई रेफर करना पड़ा।

फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य और कर्ज मुक्ति की मुख्य मांग को लेकर हरियाणा-पंजाब की सीमा पर चल रहे तकरीबन 300 दिन पूरे कर चुके किसान आंदोलन-2 में 8 दिसंबर यानि रविवार को 101 किसानों का दूसरा जत्था पैदल दिल्ली रवाना होना था। इससे पहले 6 दिसंबर को 101 किसानों का पहला जत्था दिल्ली कूच के लिए निकला था, लेकिन पुलिस से संघर्ष और सरकार की इजाजत न मिलने के कारण वापस बुला लिया गया था। आज फिर केंद्र और राज्य के सुरक्षा बलों की किसानों को रोकने की तैयारियां 6 दिसंबर जैसी ही थी। मतलब साफ था दिल्ली से इशारा स्पष्ट है।

लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि 101 पैदल किसान यदि चले भी जाते हैं तो कैसे दिल्ली की इतनी ताकतवर सत्ता के लिए खतरा हो सकते हैं। शांतिपूर्ण तरीके से वाहे गुरु का जाप करते हुए अपने देश की राजधानी जाना चाह रहे ये मुट्ठी भर किसान राज्य और केंद्र की सरकार के लिए कानून-व्यवस्था की समस्या कैसे पैदा कर सकते हैं। वह भी तब जब जत्थे में अधिकतर बुजुर्ग किसान शामिल थे। रविवार दोपहर 12 बजे शंभू बार्डर पर स्थित अपने कैंप से सतनाम वाहे गुरु का जाप करते हुए निकले 101 किसानों के जत्थे ने घग्घर नदी के बीच स्थित पुलिस के स्थायी मोर्चे पर पहुंचते ही हाथ जोड़कर दिल्ली जाने देने के लिए निवेदन किया। सबसे शर्मनाक बात यह हुई कि पुलिस ने अन्नादाता का भरपूर मजाक उड़ाया।

स्पष्ट था कि पुलिस नई रणनीति के साथ आई थी। निर्देश भी ऊपर से ही होगा। पुलिस ने साफ तौर पर कहा कि ये जत्था किसानों का नहीं है। आप किसान नहीं हो। आप गलत आदमी हो। यह वही भाषा थी, जो केंद्र की पीएम नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री लंबे वक्त से किसानों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें हरियाणा के पुर्व सीएम और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर भी शामिल हैं। वह एक बार नहीं बल्कि कई बार कह चुके हैं कि ये किसान के भेष में कोई और हैं। वह यहां तक कह चुके हैं कि ये दिल्ली इस तरह जाना चाहते हैं जैसे कोई दुश्मन देश की सेना हो।


पुलिस भी आज यही काम कर रही थी। यही नहीं पुलिस जिस तरह मीडिया का इस्तेमाल करना चाह रही थी उससे लोकतंत्र के कथित चौथे स्तंभ की बेचारगी-लाचारगी भी बयां हो रही थी। मीडिया की हालत रसातल में पहुंचने की तस्दीक भी कर रही थी। पुलिस के पास किसान जत्थे के पहुंचने पर पहले लगा कि पुलिसिया तंत्र शायद आज मानवीय चेहरे के साथ पेश आने वाला है। किसानों को पुलिस चाय-पानी ऑफर कर रही थी, लेकिन शायद यह उसका वास्तविक चेहरा नहीं था।

जत्थे में दिल्ली जाने वाले किसानों की लिस्ट किसान नेताओं ने पुलिस को पहले ही उपलब्ध करवा दी थी। बावजूद इसके पुलिस किसानों से उनके नाम वेरिफाई करना चाह रही थी। पुलिस कह रही थी कि पहले अपनी पहचान बताओ। फिर हम इसे ऊपर भेजेंगे। उसके बाद तय होगा कि आगे क्या करना है। इस पर किसानों का कहना था कि जब जत्थे में शामिल किसानों की लिस्ट पहले ही पुलिस को दी जा चुकी है। किसानों की पूरी पहचान बताई जा चुकी है। फिर ये अब किस बात की शिनाख्त करना चाह रहे हैं। ट्रेनों-बसों से लाखों लोग रोजाना दिल्ली जा रहे हैं तो क्या पुलिस उनका पहचान पत्र देख कर जाने दे रही है।

पुलिस मीडिया से कह रही थी कि वह किसानों से अलग हट जाए। इससे एक दिन पहले पुलिस एक पत्र के जरिये मीडिया से कह चुकी थी कि वह किसानों से 1 किलोमीटर दूर रहें। 6 दिसंबर को दिल्ली कूच के लिए निकले किसानों के साथ शंभू बार्डर पर हुई पुलिसिया बर्बरता से सरकार की किरकिरी के बाद शायद पुलिस की रणनीति का यह हिस्सा था। इससे किसानों को वह अलग-थलग कर देना चाह रही थी। यह जब नहीं हुआ तो पुलिस अपने असली रूप में आ गई। कमाल की बात यह थी कि एक तरफ पुलिस किसानों और मीडिया को चाय-पानी ऑफर कर रही थी दूसरी तरफ मिर्च स्प्रे और आंसू गैस के गोले दाग रही थी। हवा का रुख विपरीत होने के चलते किसानों के साथ भारी मात्रा में मीडिया के लोग आंसू गैस के शिकार हुए।

पुलिस कह रही थी कि यह हरियाणा-पंजाब का बार्डर है। कोई भारत-पाकिस्तान का बार्डर नहीं है। इस पर किसान कह रहे थे कि हम भी तो यही कह रहे हैं कि सरकार ने इसे भारत-पाकिस्तान का बार्डर बना दिया है। दिल्ली हमारे देश की राजधानी है। फिर हमें जाने से क्यों रोका जा रहा है। फिर पुलिस कहने लगी कि अब आप हरियाणा की सीमा में हो। यदि हरियाणा आना चाहते हो तो पहले अपनी पहचान बताओ। पुलिस किसानों से इसके लिए लाईन में लगने के लिए कह रही थी। आश्चर्य इस बात का है कि पुलिस मीडिया से कह रही थी कि इनसे कहो कि अपनी पहचान बताएं। लेकिन किसान पुलिस की मंशा बखूबी समझ रहे थे। उनका कहना था कि पुलिस का मकसद सिर्फ बहाने बनाना है। किसान बीच-बीच में जय जवान, जय किसान और एमएसपी लेकर रहेंगे जैसे नारे लगा रहे थे।


हैरानी की बात है कि पुलिस मीडिया को इस तरह कवर करने के लिए निर्देश दे रही थी जैसे मीडिया कोई उसका अधीनस्थ विभाग हो। यहां तक कि आंसू गैस के गोलों से बचने के लिए गीली बोरियां ला रहे किसानों को वह कह रही थी कि हथियार छिपा कर ला रहे हैं। मीडिया इसे कवर करे। पुलिस ने किसानों का इतना मजाक बनाया, जो कल्पना से परे था। कभी वह गुरुवाणी बजाने लगती औैर कहती आओ थोड़ी देर परमात्मा का नाम लें। दूसरे ही पल मिर्च स्प्रे और आंसू गैस के गोले दागने लगती। एक नजारा ऐसा भी आया कि पुलिस किसानों पर अचानक फूल बरसाने लगी, लेकिन फूल खत्म भी नहीं हुए थे और वह आंसू गैस के गोले बरसाने लगी। बूंदाबादी और ठिठुरन भरी हवाओं के बीच ठंडे पानी की बौछारें भी किसानों पर उसने कीं। घग्धर नदी के बीचोबीच सर्द वातावरण का भी उसने ख्याल नहीं रखा।

हद तो तब हो गई जब आंसू गैस के गोलों से घायल एक बुजुर्ग किसान के लिए सम्मानित शब्द का इस्तेमाल करना उसे नहीं आया। पुलिस कह रही थी कि क्या ये यहां शहीद होने आया है। मीडिया के प्रश्न पूछने पर पुलिस कह रही थी कि सवाल-जवाब करना मीडिया का काम नहीं है। शायद वह यह कह कर मीडिया को आईना दिखा रही थी कि आज तुम्हारी यही हैसियत बची है। आखिर में तकरीबन पौने चार घंटे की जद्दोजहद के बाद किसानों का पैदल दिल्ली कूच स्थगित कर दिया गया। 9 दिसंबर को बैठक कर किसान अब अपनी अगली रणनीति का ऐलान करेंगे।

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