तीन दशक के अलगाव के बाद शरद यादव एक बार फिर लालू के साथ, आरजेडी में 20 मार्च को विलय कर देंगे अपनी पार्टी

शरद यादव एक बार फिर लालू यादव के साथी होंगे। उन्होंने ऐलान किया है कि 20 मार्च को उनकी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का लालू यादव की आरजेडी में विलय हो जाएगा। उन्होंने कहा है कि देश की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में सबका साथ आना जरूरी है।

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विश्वदीपक

देश और विशेषतय: बिहार में विपक्ष को मजबूत करने के इरादे से वरिष्ठ समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने अपने पुराने दोस्त और साथी लालू यादव की पार्टी आरजेडी से जुड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने जनता दल के अपने पुराने सहयोगी से तीस साल पुराना बिछोह खत्म करते हुए अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल के लालू यादव की आरजेडी में विलय की घोषणा कर दी है। औपचारिकताएं 20 मार्च को सामने आएंगी।

कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए के अलावा विभिन्न गठबंधनों का हिस्सा रहे शरद यादवव ने 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल की स्थापना जेडीयू से निष्कासित होने के बाद की थी। बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के सर्वेसर्वा नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा से भी निष्कासित करा दिया था।

एक बयान में शरद यादव ने कहा, “विलय का यह कदम बिखरे हुए जनता दल परिवार को एकसाथ लाने की मेरी कोशिशों की हिस्सा है। देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति में ऐसा करना जरूरी है।” उन्होंने दावा किया कि बीजेपी सरकार नाकाम हो चुकी है और लोग अब एक मजबूत विपक्ष की तरफ देख रहे हैं।

बिहार के मधेपुरा से सांसद रह चुके शरद यादव ने रेखांकित किया कि एक समय 1989 में लोकसभा में अकेले जनता दल के 143 सासंद हुआ करते थे, लेकिन वक्त के साथ जनता दल में हुई एक के बाद एक टूट के कारण सामाजिक न्याय का एजेंडा कहीं खो गया है। रोचक बात यह है कि 2005 में शरद यादव ने नीतीश के साथ मिलकर ही बिहार में लालू राज को खत्म किया था।

मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में जन्मे और जबलपुर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले शरद यादव ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जबलपुर से ही की थी। 70 के दशक में जोपी आंदोलन के चरम के दौरान शरद यादव पहली बार लोकसभा के लिए जबलपुर से ही चुने गए थे। लालू यादव के साथ उनकी जोड़ी 70 के दशक से ही बनी हुई थी जब इमरजेंसी के बाद जनता दल का गठन हुआ था। 1977 के चुनावों में शानदार जीत के बावजूद जनता दल लंबे समय तक एक नहीं रह सका और एक के बाद एक कई धड़े इससे टूटते चले गए। इस टूट का मुख्य कारण निजी टकराव और वैचारिक संकल्प की कमी माना जाता रहा है।


शुरूआत के कुछ दिन तक शरद यादव जनता दल के चरण सिंह गुट के साथ रहे। लेकिन जब 1990 के दशक में जनता दल में फिर टूट हुई तो शरद यादव ने जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार के साथ मिलकर अपनी खुद की समता पार्टी बना ली।

जनतादल की पृष्ठभूमि से आए तीन दिग्गज राजनीतिज्ञों ने फिर इस पार्टी का नाम जनता दल यूनाइटेड कर दिया, जोकि आज बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का हिस्सा है औ बिहार में इसी गठबंधन की सरकार है।

शरद यादव और लालू यादव की दोस्ती और दुश्मनी बिहार में हमेशा चर्चा का विषय रही है। यादव राजनीतिक दोनों चैंपियन हैं, और एक दूसरे के खिलाफ मैदान कई बार उतर चुके हैं। कई बार साथ आए हैं और फिर से अलग होते रहे हैं।

शरद यादव बिहार के मधेपुरा से चार बार लोकसभा सांसद रहे, वहीं इसी सीट से लालू यादव ने उन्हें दो बार हराया है। और अब फिर वे साथ हैं, लेकिन खास बात यह है कि चुनावी हार के बावजूद शरद यादव की दिल्ली में सत्ता के गलियारों में अहमियत कभी कम नहीं हुई।

वे तीन बार राज्यसभा सांसद रहे। उनके नाम 7 बार सांसद रहने (4 बार लोकसभा और तीन बार राज्यसभा) का रिकॉर्ड है। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शरद यादव मंत्री भी रहे।

शरद यादव का कहना है कि, “समान विचारधारा वाले सभी दलों को एक साथ आकर एक मजबूत विपक्ष बनाना होगा और यह काम 2024 लोकसभा चुनाव से पहले करना होगा।”

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