शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे: SC ने कोश्यारी की भूमिका पर उठाए सवाल, 'आखिर गवर्नर राजनीति में कैसे दखल दे सकते हैं?'

सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे गुट की याचिका पर सुनवाई के दौरान यहा कहा कि “आखिर गवर्नर राजनीति में कैसे दखल दे सकते हैं।”

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

महाराष्ट्र के शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट के दौरान राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की भूमिका पर सवाल उठाए। कोर्ट ने उद्धव ठाकरे गुट की याचिका पर सुनवाई के दौरान यहा कहा कि “आखिर गवर्नर राजनीति में कैसे दखल दे सकते हैं।”

कोर्ट ने कहा कि उन्हें पता होना चाहिए है कि विश्वास मत बुलाने से सरकार गिर सकती है। ऐसे में किसी भी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए गर्वनर को सभी बातों को ध्यान रखना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर सवाल उठाया कि अगर शिंदे कैंप के विधायकों को उद्धव का कांग्रेस-एनसीपी से गठबंधन पसंद नहीं था तो वे 3 साल तक सरकार के साथ क्यों रहे?

कोर्ट ने कहा, राज्यपाल सिर्फ इसलिए विश्वास मत साबित करने को नहीं कह सकते क्योंकि किसी पार्टी के अंदर मतभेद है। पीठ ने कहा, जब तक गठबंधन में संख्या समान है, राज्यपाल का वहां कोई काम नहीं बनता है।

सुुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं, क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन-संपत्ति को खतरा है? क्या विश्वास मत बुलाने के लिए कोई संवैधानिक संकट था? 


पीठ ने कहा, “लोग सत्ताधारी दल को धोखा देना शुरू कर देंगे और राज्यपालों के इच्छुक सहयोगी सत्ताधारी दल को गिरा देंगे। यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद तमाशा होगा।” पीठ ने कहा कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी ) एक ठोस गुट बने हुए हैं और केवल शिवसेना ही थी, जहां असंतोष था और मेहता से सवाल किया, क्या यह असंतोष मुख्यमंत्री को शक्ति परीक्षण का सामना करने के लिए कहने के लिए पर्याप्त हो सकता है। यह हमारी चिंता है और यह लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मान लीजिए कि विधायकों के एक समूह को लगता है कि उनका नेता पार्टी के अनुशासन से भटक गया है, तो वे हमेशा पार्टी के भीतर एक मंच पर नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर सकते हैं, लेकिन राज्यपाल के पास मतभेद के आधार पर फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने की गुंजाइश कहां है।

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