मणिपुर हिंसा का साइड इफेक्ट, पड़ोसी पूर्वोत्तर राज्यों में भी फिर से जातीय संघर्ष छिड़ने की आशंका

उग्रवाद के अलावा, नागा-कूकी, मेइती बनाम अन्य आदिवासी, चकमा बनाम अन्य आदिवासी और कई अन्य जातीय संघर्षो ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में पिछले कई दशकों के दौरान हजारों लोगों की जान ले ली है और बड़े पैमाने पर सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है।

मणिपुर के पड़ोसी पूर्वोत्तर राज्यों में भी फिर से जातीय संघर्ष छिड़ने की आशंका
मणिपुर के पड़ोसी पूर्वोत्तर राज्यों में भी फिर से जातीय संघर्ष छिड़ने की आशंका
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नवजीवन डेस्क

मणिपुर में एक बार फिर जातीय संघर्ष का भद्दा चेहरा सामने आया है। 3 मई को भड़की हिंसा में कई लोगों की मौत, कई घरों-दुकानों के राख होने के बाद से राज्य में चौतरफा अशांति की स्थिति है। इस बीच मणिपुर हिंसा का असर अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी महसूस किया जाने लगा है और एक बार फिर इन राज्यों में जातीय संघर्ष छिड़ने की आशंका बढ़ गई है, जो लंबे समय तक जारी रह सकता है।

मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद मेघालय की राजधानी शिलांग में कुकी और मेइती समुदाय के सदस्य गुरुवार रात आपस में भिड़ गए, जिसके बाद पुलिस ने इस घटना के संबंध में 16 लोगों को गिरफ्तार किया है। हालात को देखते हुए पहाड़ी शहर में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।
मिजोरम के दो जिले आइजल और सैतुअल मणिपुर के साथ लगभग 95 किमी की सीमा साझा करते हैं, जिसमें क्रमश: असम और नगालैंड के साथ 204 किमी और 225 किमी की अंतर-राज्यीय सीमाएं हैं।

मणिपुर में जारी अशांति के बीच अब तक 2000 से अधिक लोग असम के कछार जिले में सीमा पार कर गए हैं, जबकि 200 से अधिक ने, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं, मिजोरम के सैतुअल जिले में शरण ली है। दोनों राज्यों के अधिकारियों ने कुछ सरकारी स्कूलों में अस्थायी आश्रयों की व्यवस्था की है और उन्हें भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुएं प्रदान की गई हैं। इस बीच इन राज्यों में भी जातीय संघर्ष फैलने की आशंका है।

कई आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय विशेष रूप से मेइती, नागा, कुकी, मिजो, चकमा विभिन्न पूर्वोत्तर राज्यों में रह रहे हैं, जो 200 से अधिक बोलियों के साथ एक जटिल भाषाई मोजैक पेश करते हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र 4.558 करोड़ लोगों (2011 की जनगणना) का घर है। स्वदेशी आदिवासियों की आबादी लगभग 28 प्रतिशत है और वे ज्यादातर अपनी मातृभाषा बोलते हैं।


आदिवासी और गैर-आदिवासी विभिन्न जीवन शैली, संस्कृतियों, परंपराओं और भाषाओं के साथ हिंदू, ईसाई और मुस्लिम समुदायों से संबंधित हैं। किसी विशेष राज्य में एक या दो समुदायों को शामिल करने वाली किसी भी तरह की नकारात्मक घटना का अक्सर उस क्षेत्र के अन्य राज्यों में विपरीत प्रभाव पड़ता है, जिससे जातीय परेशानी पैदा होती है।

उग्रवाद के अलावा, नागा-कूकी, मेइती बनाम अन्य आदिवासी, चकमा बनाम अन्य आदिवासी, और कई अन्य जातीय संघर्षो ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में पिछले कई दशकों के दौरान हजारों लोगों की जान ले ली है और बड़ी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है। इस वर्ष की शुरुआत से कई कारणों से मणिपुर में अशांति फिर से शुरू हो गई। 3 मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (एटीएसयूएम) द्वारा बुलाए गए 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के दौरान विभिन्न स्थानों पर अभूतपूर्व हिंसक झड़पें, हमले और आगजनी की घटनाएं हुईं।

इस हिंसा का कारण मणिपुर हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम वी मुरलीधरन का 19 अप्रैल का वह आदेश है, जिसमें राज्य सरकार को केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने की सिफारिश करने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने आदेश में कहाः संविधान की अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने का मुद्दा लगभग दस वर्षो और उससे अधिक समय से लंबित है। प्रतिवादी राज्य की ओर से कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है।

इससे पहले संघ सचिव मुतुम चुरामणि मीतेई के नेतृत्व में मेइती जनजाति संघ के आठ सदस्यों द्वारा दायर एक सिविल रिट याचिका में पहले प्रतिवादी (मणिपुर सरकार) को संघ को जवाब में एक सिफारिश प्रस्तुत करने का निर्देश देते हुए परमादेश की रिट जारी करने की मांग की गई थी। मेइती और अन्य आंदोलनकारियों के अनुसार, म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश के लोगों सहित देश के अंदर और बाहर दोनों से बाहरी लोगों की आमद ने मणिपुर की पहचान, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, प्रशासन और पर्यावरण को काफी प्रभावित किया है।

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