जब तक नहीं सुनेगी सरकार, मोर्चे पर डटे रहेंगे किसान, 6 महीने की तैयारी करके आए हैं अन्नदाता

केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों और सरकार के बीच मंगलवार (पहील दिसंबर ) को हुई बातचीत बेनतीजा खत्म हो गई। लेकिन किसानों के हौसले बुंलद हैं। उनका कहना है कि वे 6 महीने की तैयारी करके आए हैं और जब तक सरकार नहीं सुनेगी वे डटे रहेंगे।

फोटो : ऐशलिन मैथ्यू
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ऐशलिन मैथ्यू

जसप्रीत सिंह पंजाब के किसान हैं, वे कहते हैं वे अनशन के लिए 6 महीने की तैयारी करके आए हैं। जब 26 नंवंबर को वे दिल्ली आए तो साथ में अनाज, सब्जियां और गद्दे आदि एक ट्रक में भरके लाए। उनके साथ मोगा जिले के गांव से करीब दो दर्जन लोग आए हैं। सिंघु बॉर्डर पर जमा हजारों ट्रकों में से एक उनका भी ट्रक है जिसे अब एक अस्थाई ठिकाना बना दिया गया है।

57 साल के जसप्रीत सिंह कहते हैं कि जब वे हरियाणा पार कर रहे थे तो सरकार तो जोर-जबरदस्ती पर उतर आई थी लेकिन लोग का रवैया बहुत अच्छा था। वे कहते हैं, “उन्होंने हमें इतना राशन दिया जो कम से कम एक महीने आराम से चल सकता है। हालांकि अभी हमें इस राशन की जरूरत नहीं पड़ी है।”

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जसप्रीत सिंह उन लाखों किसानों में शामिल हैं जो ट्रकों और ट्रैक्टर पर सवार होकर राजधानी पहुंचे हैं। सारे किसान आए तो थे सेंट्रल दिल्ली में रामलीला मैदान में जमा होने लेकिन उन्हें कई बॉर्डर चौकियों पर रोका गया। जीटी करनाल हाईवे से लगे उत्तरी दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर फिलहाल किसानों का डेरा है जिसे 26 नवंबर से ही घेर लिया गया है।

पंजाब और हरियाणा की 32 किसान यूनियनों के असंख्य किसान बीते दो महीने से तब सेही आंदोलन कर रहे हैं जब से सितंबर में मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून पास किए हैं। वे चाहते हैं कि बाजार को फायदा पहुंचाने वाले इन कानून को सरकार वापस ले, क्योंकि इसमें न सिर्फ एमएसपी को बाहर कर दिया गया है बल्कि पारंपरिक अनाज मंडियों की व्यवस्था को भी खत्म कर दिया गया है। इससे छोटे और मझोले किसानों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। नए कानूनों के तहत अगर कोई शिकायत होती है तो किसान सिर्फ एसडीएम या शिकायत बोर्ड के पास जा सकते हैं, अदालत के पास नहीं जा सकते। इतना ही नहीं नए कृषि कानून राज्यों के उस अधिकार को भी खत्म करते हैं जिससे उन्हें कृषि मंडियों पर नियंत्रण करने का अधिकार मिलता है।


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इस सबके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को जोर दिया कि कृषि कानून किसानों के फायदे के लिए हैं। उन्होंने कहा कि इन कानून से किसानों के आसपास बने अवरोधों को दूर किया जाएगा जिससे किसानों को नए अवसर मिलेंगे।

लेकिन न तो जसप्रीत सिंह और न ही हजारों दूसरे किसानों को प्रधानमंत्री की बातों पर विश्वास है। श्रीमुक्तसर साहिब के रंजोध सिंह कहते हैं कि “इन कानूनों से सिर्फ मुकेश अंबानी और गौतम अडानी” को फायदा होगा। 30 साल के रंजोध कहते हैं कि, “सरकार चाहती है कि हमारी जमीनों पर कार्पोरेट का कब्जा हो जाए और हम गरीबी में घिर जाएं। इन कानून से सिर्फ कार्पोरेट को ही फायदा होगा क्योंकि वे कभी भी फसल का वाजिब दाम नहीं देना चाहते। इससे हमें नुकसान ही होगा। हमने पिछले दो महीने में रिलायंस फ्रेश के एक भी शोरूम को पंजाब में नहीं खुलने दिया। उनके पेट्रोल पंप भी बंद करा दिए हैं। सरकार को हमारी बात सुननी चाहिए। सरकार को तो हमारी बात तभी सुननी चाहिए थी जब हम पंजाब में आंदोलन कर रहे थे। हमारे साथ यहां पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान के किसान हैं। ये सभी अपना घर छोड़ कर यहां आए हैं।”

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हरियाणा के मूर्थल के किसान रवींद्र सिंह ने दूसरे किसानों के साथ आंदोलन में हिस्सा ले रहे हैं। उनका कहना है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो उसने हमें बहुत सी चीजें मुफ्त में दी थीं। वे कहते हैं कि, “हर किसी को लगता था कि कांग्रेस सरकार भ्रष्ट थी, लेकिन बीजेपी सरकार तो क्रूर है। कांग्रेस ने हमें मुफ्त बिजली दी थी और हमें जनरेटर के लिए बहुत ही मामूली रकम देना पड़ती थी।”

सिंघु बॉर्डर के करीब 10 किलोमीटर लंबे इस इलाके में हर 750 मीटर पर लोगों को खाना बनाने जिम्मेदारी दी गई है। वहां मक्खन के पराठे, सब्जियां, छाछ सबकुछ तैयार होता है। वहीं नजदीक में कुछ युवा आंदोलनकारी एक स्टेज के आसपास मोदी विरोधी भाषण कर रहे होते हैं। थोड़ा दूर खड़े ट्रकों में महिलाएं, बच्चे कुछ आराम कर काम में जुटने की अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। सारे माहौल में पंजाबी संगीत गूंज रहा है। हालांकि पूरा इलाका ट्रकों और ट्रैक्टरों से भरा पड़ा है लेकिन लगातार ट्रक और ट्रैक्टर आते ही जा रहे हैं।


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शाम ढलते-ढलते स्टेज को पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली युवा संदीप कौर संभाल लेती हैं। वे कहती हैं, “मैं यहां कुछ दिन के लिए आई हूं क्योंकि मेरी क्लासेस चल रही हैं। मेरे माता-पिता सिर्फ किसानी की वजह से ही फीस भर पाए हैं। और अब सरकार हमसे यह छीन लेना चाहती है। यह कानून किसान विरोधी हैं। एक छात्र के नाते मैं अपनी आवाज उठाना चाहती हूं और हम इसे तब तक उठाते रहेंगे जब तक इसे सुना नहीं जाता।”

इन्हीं के बीच 15 साल के हरमिंदर सिंह हैं जो अपने चाचा और कज़िन के साथ यहां आए हैं। उनके पिता दूसरे बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं। हरमिंदर कहता है, “महामारी जब से शुरु हुई है, हमारी क्लासेस ऑनलाइन चल रही हैं। मैं कहीं से भी क्लास कर सकता हूं। लेकिन अभी सबसे अहम है कि हमारे खेत बचें जिसे कार्पोरेट को देने की कोशिश हो रही है। मोदी को हमारी बात सुननी ही होगी।”

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पटियाला की हरमीत कौर के लिए यह जिंदगी का सवाल है। वह बोलती हैं, “मैं एक किसान की बेटी और किसान की पत्नी हूं। मेरा फर्ज है कि मैं अनशन करूं। मेरे पति घर पर मेरी तीन बेटियों के साथ हैं। दो दिन बाद मैं चली जाऊंगी तो वह यहां आ जाएंगे, क्योंकि हम दोनों में से किसी एक का घर पर होना जरूरी है।” हरमिंदर कौर राजिंदर अस्पताल में लैब टैक्नीशियन के तौर पर काम करती हैं जबकि उनका परिवार गेहूं चावल और सब्जियों की खेती करता है।

37 वर्षीय कौर कहती हं कि मोदी कमीशन एजेंट को विलेन बता रहे हैं। लेकिन हर इंडस्ट्री में बिचौलिए होते हैं। कम से कम कमीशन एजेंट हमारी मदद तो करते हैं। हम जरूरत पर उनसे पैसा उधार लेते हैं और फसल कटने पर उन्हें वापस करते हैं। वह आदमी सुनिश्चित करता है कि हमारी फसल बिक जाए। लेकिन मोदी हमारी सुनने के बजाए सिर्फ वही कह रहे हैं जो उन्हें कहना है। वह सवाल करती हैं कि आखिर मोदी उनकी सुनते क्यों नहीं, “हम उन्हें खा तो नहीं जाएंगे।”


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क्रांतिकारी किसान यूनियन के प्रेस सचिव जितेंद्र छीना ने तो पहले ही आशंका जताई थी कि बातचीत बेनतीजा खत्म होगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कॉमर्स मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्यमंत्री सोम प्रकाश के साथ बातचीत में 32 किसान यूनियनों के नेता शामिल हुए थे। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और अब अगली बातचीत 3 दिसंबर को होगी।

छीना कहते हैं कि , “सरकार की दिलचस्पी मुद्दा सुलझाने में है ही नहीं। क्या आपने मोदी के मन की बात सुनी, उनका भाण सुना। जो सरकार समस्या सुलझाना चाहती हो वह कार्पोरेट की तारीफें करते हुए अपनी पीठ नहीं थपथपाएगी। अगर वाकई उनकी इच्छा होती तो वे कानून को स्थगित कर हमें बातचीत के लिए बुलाते। वे सिर्फ पंजाब के किसानों को बुलाकर हमारी एकता तोड़ना चाहते हैं। इसमें सभी यूनियनों को बुलाना चाहिए था। इसीलिए बहुत से संगठनों ने बातचीत का बहिष्कार किया है।”

पहली दिसंबर को हुई बैठक में भी सरकार ने यही दोहराया कि ये कानून किसानों के फायदे के लिए हैं। उन्होंने पांच सदस्यीय समिति बनाने की बात की है लेकिन किसान यूनियनों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

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