बदतर होते जा रहे हैं बाहर पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों के हालात, पंजाब में सीएम अमरिंदर के आदेश से मिली राहत

सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कश्मीरी छात्रों की गुहार पर तत्काल आदेश जारी करते हुए कहा है कि पंजाब के निजी विश्वविद्यालय और कॉलेज फीस में देरी की वजह से किसी भी कश्मीरी छात्र को परेशान नहीं करेंगे। किसी कश्मीरी छात्र का साल बर्बाद नहीं होने दिया जाएगा।

फोटोः सोशल मीडिया
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अमरीक

जम्मू कश्मीर में धारा 370 निरस्त करने के बाद लगी पाबंदियों का चौथा महीना शुरू होने को है और केंद्र सरकार का दावा है कि वहां हालात 'सामान्य' हो रहे हैं। लोकसभा और राज्यसभा में कई बार किया गया यह दावा पंजाब के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों की मुश्किलों में होते इजाफे को देखते हुए सरासर झूठा साबित हो रहा है। हाल ही में विदेश से लौटे राज्य के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का कश्मीरी विद्यार्थियों की दिक्कतों को लेकर एक महत्वपूर्ण ट्वीट और अधिकारियों को दिए गए नए आदेश भी इस बात की पुष्टि करते हैं।

पंजाब के एक बड़े प्राइवेट शिक्षण संस्थान में पढ़ रहे एक कश्मीरी छात्र नसीर खुआमी ने ट्वीट करके मुख्यमंत्री को लिखा कि पंजाब, चंडीगढ़ और उत्तराखंड के प्राइवेट विश्वविद्यालय कश्मीरी छात्रों पर गैरजरूरी जुर्माने लगा रहे हैं, क्योंकि कश्मीर से यहां आकर पढ़ने वाले छात्र वक्त पर फीस का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। कश्मीर के बिगड़े हालात के मद्देनजर कश्मीरी छात्रों की शिक्षा संस्थानों में हाजिरी भी कम है। इसलिए भी शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन उन्हें परेशान कर रहे हैं। नसीर खुआमी के अलावा कई अन्य कश्मीरी छात्र-छात्राओं ने भी मुख्यमंत्री को इस बाबत शिकायत की है।

सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 28 नवंबर को जवाबी ट्वीट में कश्मीरी छात्रों की इन शिकायतों और मुश्किलों का गंभीर संज्ञान लेते हुए कहा है कि वह पंजाब में स्थित प्राइवेट विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में तत्काल यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी कश्मीरी छात्र को इसलिए परेशान न किया जाए कि उन्होंने देरी से फीस जमा करवाई है। एक भी कश्मीरी छात्र का साल बर्बाद नहीं होने दिया जाएगा। मुख्यमंत्री के ट्वीट के बाद कश्मीरी छात्र कुछ राहत में हैं।

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक आला अधिकारी ने 'नवजीवन' को बताया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कल ही फौरी आदेश दिए हैं कि पंजाब के तमाम सरकारी-गैरसरकारी शिक्षण संस्थानों को निर्देश दिए जाएं कि वे अपने यहां शिक्षारत कश्मीरी छात्रों के साथ अतिरिक्त नरमी बरतें क्योंकि कश्मीर के हालात अभी भी असामान्य हैं और अभिभावक छात्रों को समय से फीस तथा दूसरे खर्चों के लिए पैसे नहीं भेज पा रहे हैं। इसलिए उनके प्रति उदार और राहत भरा रुख अपनाया जाना चाहिए।


मुख्यमंत्री से लगाई गई गुहारें इस बात की निशानी हैं कि कश्मीर में अभी सब कुछ ठीक नहीं है। पंजाब में लगभग दस हजार कश्मीरी छात्र पढ़ रहे हैं। धारा 370 निरस्त होने के बाद शुरू हुईंं उनकी मुश्किले थमींं नहीं, बल्कि उनमें इजाफा ही हुआ है। इस संवाददाता ने कुछ कश्मीरी छात्रों से ताजा बातचीत में पाया कि उन्हें जिन समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है और कश्मीर से जो सूचनाएं उन तक आ रही हैं, वे केंद्र सरकार के इन दावों को खोखला साबित करती हैं कि कश्मीर में सब सामान्य है।

जालंधर के एक नामचीन प्राइवेट विश्वविद्यालय में पढ़ रहे बारामूला के रहने वाले छात्र अजमत खान ने बताया कि अगस्त के बाद उसके अभिभावक उसे एक पैसा भी नहीं भेज पाए। अजमत के पिता एक छोटे दुकानदार हैं। पहले ई-बैंकिंग के जरिए फीस और दूसरे खर्चों के लिए महीने के अंत तक जरूरी रकम भेज देते थे, पर यह सिलसिला स्थगित हो गया। फिर भोपाल के एक रिश्तेदार के जरिए पैसे आने लगे, लेकिन अब वहां से भी कुछ नहीं आ रहा। उधर बारामूला में उसके पिता का काम एकदम ठप्प है। भेजना चाहें भी तो उनके पास अब पैसे नहीं हैं।

लगभग ऐसी ही हालत मंजूर भट्ट की है। वह कहता है, “सरकार कहती है हालात ठीक हो रहे हैं पर कश्मीर से बाहर पढ़ने वाले छात्रों के लिए तो हालात लगातार बिगड़ते ही जा रहे हैं। हम उधार लेकर किसी तरह रोजमर्रा का गुजारा कर रहे हैं। अब तो उधार भी बहुत ज्यादा मुश्किल से मिल रहा है।” घर से पैसा न आने की सूरत में कश्मीरी छात्र मोटे ब्याज पर पैसा लेने को मजबूर हैं। एक छात्र नावेद ने बताया कि उसके शिक्षण संस्थान के करीब लगभग दस ऐसे तथाकथित फाइनेंसर अचानक से वजूद में आ गए हैं, जो कश्मीरी छात्रों को 12 से 15 फीसदी ब्याज पर पैसे दे रहे हैं। जमानत के तौर पर किसी के सरकारी दस्तावेज, प्रमाणपत्र और परिचय पत्र रख लिए जाते हैं तो किसी का सामान। कोरे कागजों पर हस्ताक्षर करवा कर पैसा दिया जा रहा है।

'नवजीवन' की जानकारी बताती है कि कई अन्य शहरों में भी, जहां के शिक्षण संस्थानों में कश्मीरी छात्र पढ़ते हैं, गुपचुप तौर पर ऐसा किया जा रहा है। मजबूरी में कश्मीरी छात्र दस्तावेज, प्रमाण पत्र, परिचय पत्र, शिक्षा संस्थान से जुड़े कागजात और अपना सामान रखकर मोटे ब्याज पर कर्ज ले रहे हैं। इसके अलावा ज्यादातर के पास कोई रास्ता नहीं है। कर्ज भी ब्याज काटकर और तयशुदा तारीख पर वापसी की गारंटी के साथ दिया जा रहा है।


कर्ज लेने वाले छात्र गहरे तनाव और अवसाद में हैं कि समय पर लिए गए पैसे न चुका पाए तो क्या होगा? उन पर शिक्षा संस्थानों के प्रबंधन का भी दबाव है कि वे अपनी बकाया फीस जमा करवाएं, तभी उन्हें परीक्षाओं में बैठने दिया जाएगा। कई जगह धमकीनुमा मौखिक चेतावनी दी जा रही है कि फीस न देने वालों को निकाल दिया जाएगा। अब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के हस्तक्षेप से हालात बदलने के आसार हैं।

वहीं कुछ कश्मीरी छात्र ऐसे भी मिले, जो परिवहन व्यवस्था शुरू होने के बाद घर गए थे। उनमें से कईयों ने बताया कि अगस्त के बाद कश्मीर में आर्थिकता समूचे तौर पर तबाह हो गई है। काम धंधे बंद हैं या एकदम मंद। सिर्फ अति जरूरी चीजों की खरीदारी हो रही है। सेब व्यापारियों को जरूर सरकार के जरिए पैसा मिला है लेकिन वह भी एकमुश्त नहीं। ज्यादा दिक्कत में छोटे दुकानदार, सीमित व्यापार करने वाले और श्रमिक हैं। उन्हीं के ज्यादातर बच्चे पंजाब में पढ़ रहे हैं।

श्रीनगर के एक छात्र आमिर मुस्तफा ने ‘नवजीवन’ से कहा, “घाटी के हालात सकते में डाल देने वाले हैं। ज्यादातर लोगों के पास पैसा नहीं है। तनाव भरे हालात ने उन्हें कंगाल कर के रख दिया है। मैंने सोचा था, घर जाऊंगा तो कुछ पैसा भी मिल जाएगा लेकिन मेरे पिता के पास फूटी कौड़ी भी नहीं। सुरक्षा बलों की इतनी दहशत है कि वह यह भी नहीं चाहते कि मैं घर आकर बैठ जाऊं और वापस भेजने की बेबसी भी उन्हें दुखी कर रही है।” घर वापसी से लौटे बहुतेरे कश्मीरी छात्रों का यह दर्द एक सरीखा है।

कुछ कश्मीरी छात्र इसलिए भी क्लासों में नहीं जाते कि प्रबंधन और मेस वाले फीस के लिए तकाजा करेंगे। सो उनकी अटेंडेंस पर भी नागवार असर पड़ रहा है। छात्र रहमान जावेद कहते हैं, “अब तो पीजी वाले भी अपमानित करने की हद तक पैसे के लिए दबाव डाल रहे हैं। समझ नहीं आता क्या करें, कहां जाएं?” आर्थिक तंगी छात्रों को मानसिक और शारीरिक रूप से भी बीमार कर रही है। बहुत से छात्र अपने बाइक, लैपटॉप और मोबाइल आदि बेच चुके हैं। सोपोर के रहने वाले और जालंधर के एक विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे इस्माइल गनी के मुताबिक, “अब मजदूरी करके पैसे हासिल करने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है! इसमें हमें संकोच भी नहीं लेकिन आशंका है कि हमें मजदूरी का काम भी कौन देगा?”

खैर, सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों को दरपेश दिक्कतों पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करवाकर केंद्र को भेजना चाहते हैं और इससे यह भी जगजाहिर करना चाहते हैं कि कश्मीर के हालात केंद्र के दावों के विपरीत हैं और पंजाब में पढ़ रहे कश्मीरी छात्र इसका पुख्ता सुबूत हैं। फिलहाल तो कैप्टन के इस बयान ने कश्मीरी छात्रों को गहरी राहत दी है कि फीस या हाजिरी के कारण उन्हें राज्य के किसी भी शिक्षण संस्थान में परेशान नहीं किया जाएग। कैप्टन ने यह आश्वासन भी दिया है कि पंजाब सरकार हर कश्मीरी छात्र के हितों का ध्यान बखूबी रखेगी।

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