भ्रमित हैं उत्तराखंड के CM धामी? अब तक नहीं तय कर पाए अपनी टीम, सलाहकार से PRO तक पर सस्पेंस, विपक्ष ने उठाए सवाल

विपक्ष ने धामी पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि जो मुख्यमंत्री अपनी निजी टीम का ही गठन नहीं कर पा रहा है, वह प्रदेश के विकास को लेकर बड़े फैसले लेने में कैसे सक्षम हो सकता है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपना दूसरा कार्यकाल संभाले हुए तीन महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन वो अभी भी ना जाने किस बात को लेकर कन्फ्यूज नजर आ रहे हैं। इतने समय बाद भी अभी तक वो नई टीम का गठन नहीं कर पाए हैं।। इसे लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी लगातार सवाल उठा रही है।

वहीं, बीजेपी सीएम की नई टीम गठन में हो रही देरी को लेकर अपना तर्क दे रही है। उत्तराखंड में भाजपा सरकार अपने 100 दिनों का उत्सव भी मना चुकी है और आगामी योजनाओं का खाका भी रख चुकी है। लेकिन हैरत की बात ये है कि तीन महीने से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बावजूद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की टीम तय नहीं हो पाई है। अभी तक सीएम के सलाहकार, विशेष कार्याधिकारी और पीआरओ को लेकर कोई सूची जारी नहीं हुई है।

एक युवा मुख्यमंत्री के तौर पर धामी ने वापसी की है। उनके छोटे-छोटे कुछ ऐसे फैसले भी हैं, जिनको लेकर मुख्यमंत्री धामी विपक्ष की निगाहों में कमजोर दिखने लगे हैं। जानकारों का मानना है कि बतौर मुख्यमंत्री धामी को बेहतर समन्वय और अलग-अलग कामों की जिम्मेदारी के लिए सलाहकार से लेकर विशेष कार्याधिकारी और पीआरओ की टीम का गठन कर लेना चाहिए था।

वहीं, विपक्ष ने इसको लेकर धामी पर सवाल खड़े किए हैं कि जो मुख्यमंत्री अपनी निजी टीम का ही गठन नहीं कर पा रहा है, वह प्रदेश के विकास को लेकर बड़े फैसले लेने में कैसे सक्षम हो सकता है।

कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट ने कहा कि जो सरकार दिल्ली से चलती है, उसके लिए छोटे-छोटे निर्णय लेने के लिए भी दिल्ली से ही इजाजत लेनी होती है। इसीलिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने सलाहकारों और स्टाफ की नियुक्ति नहीं कर पा रहे हैं।

खबरों की मानें तो धामी अपनी पुरानी टीम के कई सदस्यों को रिपीट करने के मूड में नहीं हैं। हालांकि, पुरानी टीम से जुड़े कई लोगों द्वारा मुख्यमंत्री की नई टीम में भी शामिल होने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इस बीच विपक्ष का मुख्यमंत्री धामी की निर्णय क्षमता पर सवाल उठाना बेहद गंभीर माना जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि मुख्यमंत्री की टीम का कई मामलों में बेहद अहम रोल होता है और महीनों तक इन नामों पर भी कोई अंतिम फैसला ना हो पाना कई इशारे भी करता है।

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