ओबीसी आरक्षण पर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को लेकर अटकलों का बाजार गर्म

ओबीसी आरक्षण पर सरकार को सौंपी गई जस्टिस जी रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है या संसद के समक्ष पेश नहीं किया गया है। लेकिन अटकलें तेज हो गई हैं कि सरकार रिपोर्ट को तुरंत स्वीकार करने और उस पर कार्रवाई करने की योजना बना रही है।

फोटो : आईएएनएस
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नवजीवन डेस्क

बिहार में हुई जातीय जनगणना के नतीजे अभी सामने आने बाकी हैं और केंद्र सरकार समेत तमाम लोगों की आपत्तियों पर सुप्रीम कोर्ट अभी विचार ही कर रहा है, इस बीच केंद्र सरकार ओबीसी (पिछड़ा तबका) को 27 फीसदी आरक्षण देने पर पुनर्विचार कर रही है। इसके लिए गठित आयोग की रिपोर्ट सरकार के पास पहुंच चुकी है, और बताया जा रहा है कि यह कम से कम 1000 पन्नों की है। आयोग ने यह रिपोर्ट पहली अगस्त को सरकार को सौंप दी है।

इस आयोग का गठन 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस जी रोहिणी की अगुवाई में किया गया था और उसे 12 सप्ताह में अपनी सिफारिशें जमा करने को कहा गया था। लेकिन आयोग को 14 विस्तार और 6 साल लग गए अपनी रिपोर्ट तैयार कर सौंपने में। लेकिन इस रिपोर्ट में क्या सिफारिशें की गई हैं, यह अभी सार्वजनिक नहीं हुआ है।

अलबत्ता द हिंदुस्तान टाइम्स ने सूत्रों के हवाल से कहा है कि आयोग ने अपनी 1000 पन्नों की रिपोर्ट में कई ऐसी सिफारिशें की हैं जिनसे ओबीसी कोटे यानी उन्हें आरक्षण दिए जाने के पारंपरिक आधार बदल जाएंगे। सूत्रों के मुताबिक आयोग ने ओबीसी जातियों की नई सूची भी दी है जिसमें देश भर की 2.633 जातियों को शामिल किया गया है।

अखबार के मुताबिक आयोग ने विभिन्न समुदायों को मिलने वाले लाभों की मात्रा के आधार पर ओबीसी के वर्गीकरण की सिफारिश की है। सूत्रों का कहना है कि मौजूदा कोटे में कुछ 'अत्यंत पिछड़े समुदायों' का नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों दोनों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व पाया गया।

बताया जाता है कि आयोग ने अपनी रिपोर्ट के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाए जाने वाले शैक्षणिक संस्थानों और केंद्र सरकार की भर्तियों में कोटे की जांच की है। इसके तहत आयोग ने पाया कि 983 ओबीसी जातियों को कोटे के तहत कुछ भी हासिल नहीं हुआ है, जबकि 994 को सिर्फ 2.68 फीसदी लाभ ही मिला है।

आयोग को गठित करने के पीछे एक कारण यह पता लगाना भी था कि कहीं ओबीसी की कुछ प्रभावशाली जातियां ही तो आरक्षण का अधिकतम लाभ नहीं ले रही हैं। वैसे आम धारणा है कि ओबीसी के लिए निर्धारित 27 फीसदी आरक्षण कभी भी पूरा नहीं किया गया और वर्चस्व वाली ओबीसी जातियों ने इसका भरपूर फायदा उठाया और इनमें से भी क्रीमी लेयर को सर्वाधिक लाभ मिला।


हिंदुस्तान टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि आयोग ने ओबीसी जातियों की सूची का वर्तमान में मिलने वाले लाभों के आधार पर उप वर्गीकरण करने का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत जिन्हें कोई लाभ नहीं मिला है, उन्हें ओबीसी कोटे के कुल 27 फीसदी में से 10 फीसदी आरक्षण दिया जाए, 10 फीसदी उन जातियों को दिया जाए जिन्हें कुछ लाभ मिला है और बाकी 7 फीसदी उनके लिए रखा जाए जिन्होंने कोटे का अधिकतम लाभ उठाया है। अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह की व्यवस्था से किसी भी समुदाय को कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा।

गौरतलब है कि मार्च 2023 में केंद्र सरकार ने एक लिखित उत्तर में संसद में दावा किया था कि रोहिणी आयोग के साथ 2011 की जनगणना का कोई भी आर्थिक-सामाजिक डेटा शेयर नहीं किया था। ध्यान रहे कि 2011 जनगणना के सामाजिक-आर्थिक डेटा को सार्वजनिक नहीं किया गया है।

ऐसे कयास हैं कि केंद्र सरकार 18 सितंबर से शुरु होने वाले संसद के विशेष सत्र के दौरान रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को पेश कर सकती है।

आयोग में सेंटर फॉर पालिस स्टडीजड के डॉ डी के बजाज और एंथ्रोपेलिजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का प्रतिनिधित्व है।

रोहिणी आयोग ने जो आंकड़े जमा किए हैं, संभावना है उनसे विभिन्न ओबीसी जातियों की स्थिति का अनुमान लगेगा और उनके सामने आने से चुनावी गणित पर असर हो सकता है, क्योंकि इनमें से कई समुदाय राजनीतिक और चुनावी तौर पर प्रभावशाली माने जाते हैं।

वैसे अभी यह स्पष्ट नहीं है कि बीजेपी रोहिणी आयोग की सिफारिशों को लागू करने की जल्दी में है या नहीं, क्योंकि इस रिपोर्ट के सामने आने के अप्रत्याशित नतीजे भी हो सकते हैं। इसके अलावा इस रिपोर्ट को लागू करने में कई किस्म को जोखिम भी हैं।


बता दें कि लोकसभा में 2022 में डीएमके सांसद ए के पी चिनराज ने एक सवाल में पूछा था कि क्या सरकार ने 2011 जनगणना के आंकड़े रोहिणी आयोग के साथ साझा किए हैं, जिस पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने स्पष्ट जवाब दिया था कि नहीं और जस्टिस जी रोहिणी आयोग की तरफ से ऐसी कोई मांग भी नहीं की गई थी।

इस जवाब पर यूजीसी के पूर्व चेयरमैन और इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च प्रोफेसर सुखदेव थोराट ने कहा था कि, “शिक्षा, भूमि स्वामित्व, गरीबी जैसे सामाजिक-आर्थिक संकेतकों और इन जाति समूहों द्वारा सामना किए जाने वाले भेदभाव के स्तर पर भी एक अध्ययन होना चाहिए। इसके बिना ऐसा कोई भी काम संभव नहीं होगा।”

इसी प्रकार वाईएसआरसीपी के लवु श्रीकृष्ण देवरायालु के सवाल पर सामाजिक न्याय मंत्रालय की राज्यमंत्री प्रतिमा भौमिक ने जवाब दियाथा कि सरकार ने बीते पांच साल के दौरान गृह मंत्रालय से जनगणना में शामिल किए जाने के उद्देश्य से ओबीसी आबादी की जनगणना के लिए कोई अनुमति नहीं मांगी है।

आखिर ऐसा क्यों है, इसके जवाब में मंत्रालय ने कहा था कि, “जनगणना अधिनियम, 1948 में ओबीसी की गणना का प्रावधान नहीं है। इसके अलावा, ओबीसी डेटा की गणना प्रशासनिक रूप से जटिल है और जानकारी में पूर्णता और सटीकता का अभाव है क्योंकि ओबीसी की राज्य और केंद्रीय सूची अलग-अलग हैं।”

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