सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग के जरिए चुनावों के लिए अद्भुत कहानी बुनी है श्री श्री रविशंकर ने...

ज्योतिर्लिंग के बहाने आध्यात्मिक ‘गुरु’ की राजनीतिक मंशा काफी लोगों को समझ आ रही है। बस देखना यह है कि इस बाबत संसद के मौजूदा सत्र में कोई सवाल उठाता है या नहीं और अगर उठाता है तो सरकार क्या जवाब देती है।

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पंकज चतुर्वेदी

“बिहार के लोग बहुत ही ‘मधुर और धार्मिक हैं। अगर बिहार सरकार ज़मीन मुहैया करा दे तो ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ एक ‘विश्व स्तरीय’ विश्वविद्यालय बनाएगा। ‘सनातन धर्म’ पर सवाल उठाने वाले मूर्ख हैं।“ ये कुछ ऐसे बयान हैं जो ‘आध्यात्मिक गुरु’ श्री श्री रविशंकर ने बिहार की अपनी यात्रा के दौरान सार्वजनिक मंचों से लोगों के सामने रखे। ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के संस्थापक 7 मार्च, 2025 से बिहार के पांच दिवसीय दौरे पर हैं।

इसी दौरान एक और विवादास्पद ‘गुरु’ बागेश्वर बाबा भी बिहार में प्रवचन कर रहे हैं। बस याद दिलादें कि बागेश्वर बाबा ने कैंसर के इलाज के लिए गोमूत्र की वकालत की थी और हाल ही में मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में उनके महत्वाकांक्षी कैंसर अस्पताल की आधारशिला पीएम मोदी ने रखी थी।

श्री श्री रविशंकर अपने भव्य और आकर्षक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने पटना के गांधी मैदान में एक विशेष रूप से बनाए गए मंच पर एक हज़ार महिलाओं को शामिल कर मिथिला के लोकनृत्य की प्रस्तुति की। वैसे गांधी मैदान राजनीतिक रैलियों का गवाह रहा है। लेकिन श्री श्री रविशंकर के कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा उनके द्वारा एक ऐसे शिवलिंग का अनावरण, जिसे लेकर उन्होंने दावा किया है कि इसे 1026 ईसवी में महमूद ग़ज़नी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर हमला कर लूट लिया था और मंदिर को अपवित्र कर दिया था। 

दावा है कि इस पवित्र शिवलिंग को दक्षिण भारतीय ब्राह्मण परिवार ने सुरक्षित रखा। बरसों तक यह परिवार इस शिवलिंग की गुप्त पूजा करता रहा, और आखिरकार 1924 में इस परिवार के एक सदस्य ने कांची के शंकराचार्य को इसके दर्शन कराए। शंकराचार्य ने इस ब्राह्मण को गोपनीयता की शपथ दिलाते हुए सलाह दी कि इसे 2024 तक तब तक रहस्य ही रखना है जब तक कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण नहीं हो जाता।

ऐसा बताया गया कि शंकराचार्य ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की भविष्यवाई 100 साल पहले कर दी थी। इसके बाद शंकराचार्य की सलाह के मुताबिक ही अयोध्या में मंदिर निर्माण होने के बाद वह ब्राह्मण परिवार इस शिवलिंग को बेंग्लुरु में एक आध्यात्मिक गुरु को सौंप दे। इस तरह यह पवित्र ज्योतिर्लिंग श्री श्री रविशंकर के पास पहुंचा है। यह सारी बातें आर्ट ऑफ लिविंग के प्रवक्ता ने पटना में मीडिया के सामने कहीं। ऐसी ही बातें दिल्ली में भी रविशंकर ने कही थीं।

कथित तौर पर प्रधानमंत्री मोदी से परामर्श के बाद योजना अब यह बनी है कि लुप्त हुए ज्योतिर्लिंग को पूरे देश में दर्शन के लिए अलग-अलग शहरों में ले जाया जाएगा और अंतत: इसे 2028 के आसपास सोमनाथ मंदिर में पुनर्स्थापित किया जाएगा। ध्यान रहे कि इसके अगले साल यानी 2029 में देश में आम चुनाव होने हैं।


लेकिन श्री श्री रविशंकर के इस अद्भुत और अचरज में डाल देने वाले दावे पर संदेह करने वालों ने सवाल उठाए हैं। वे याद करते हैं कि पुनर्निर्मित सोमनाथ मंदिर का औपचारिक उद्घाटन 11 मई, 1951 को हुआ था, जो सरदार वल्लभभाई पटेल के निधन के कारण दो महीने की देरी के बाद हुआ था। इस मौके पर अन्य लोगों के अलावा देश के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी शामिल हुए थे। सवाल यह भी उठ रहा है कि दक्षिण भारतीय ब्राह्मण पुजारी ने उस समय मंदिर में ज्योतिर्लिंग को फिर से स्थापित करना क्यों उचित नहीं समझा? क्या श्री श्री रविशंकर के पास इसका जवाब है। याद कीजिए शंकराचार्य ने पुजारी से 2024 तक इसे गुप्त रखने को कहा था?

एक और सवाल है कि क्या श्री श्री रविशंकर को ऐसी प्राचीन और पुरातात्विक महत्व की कोई भी वस्तु रखना वैध है? ‘प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम’ के अनुसार, कोई भी कलाकृति जो कम से कम 100 साल पुरानी हो, उसकी प्रामाणिकता स्थापित होने के बाद उसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में पंजीकृत होना अनिवार्य होता है। पुरावशेषों का कार्बन डेटिंग विधियों द्वारा भी परीक्षण किया जाता है और उनके किसी निजी कब्जे, प्रदर्शन और उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध हैं।

इससे भी ज़्यादा विवादास्पद यह दावा है कि ज्योतिर्लिंग को वापस आकार देने के लिए 2007 में उस काम किया गया था, यानी पुरातत्व महत्व की वस्तु से छेड़छाड़ की गई थी। इसका असर यह होगा कि इसकी प्रामाणिकता का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग की संभावना खत्म हो जाएगी। पुरातात्विक अवशेषों और कलाकृतियों के साथ छेड़छाड़ करना अधिनियम के तहत एक आपराधिक गुनाह है। यह भी साफ पता चलता है कि इसे वापस आकार देने से पहले कोई अनुमति नहीं ली गई और कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। इस अपराध के लिए कम से कम छह महीने से लेकर तीन साल तक की कैद हो सकती है।

यह पहली बार नहीं है जब श्री श्री रविशंकर ने विवाद खड़ा किया हो और कानून की अवहेलना की हो। 2016 में उन्होंने दिल्ली में यमुना के तट पर ‘सांस्कृतिक उत्सव’ आयोजित करने के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश का खुलेआम उल्लंघन किया था। ट्रिब्यूनल ने उन पर 5 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था लेकिन उन्होंने पहले तो जुर्माना भरने से इनकार कर दिया थाष लेकिन आखिरकार उन्हें जुर्माना भरना पड़ा।

इस बार ज्योतिर्लिंग के बहाने आध्यात्मिक ‘गुरु’ की राजनीतिक मंशा काफी लोगों को समझ आ रही है। बस देखना यह है कि इस बाबत संसद के मौजूदा सत्र में कोई सवाल उठाता है या नहीं और अगर उठाता है तो सरकार क्या जवाब देती है और क्या वह ज्योतिर्लिंग को अपने कब्जे में लेने और इसके राजनीतिक इस्तेमाल को रोकने का फैसला करती है।

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