श्रीनगर की फल-सब्जी मंडी में पसरा है सन्नाटा, सरकारी खरीद केंद्र पर सिर्फ मीडिया के लिए है हलचल

श्रीनगर के बाहरी इलाके पारिमपुरा में फलों की मंडी को एशिया की सबसे बड़ी फल-सब्जी मंडी के रूप में जाना जाता है। आम तौर पर यहां फलों से लदे ट्रक, ट्रेडर्स और खरीदारों का भारी भीड़ और जमावड़ा नजर आता है। लेकिन, 5 अगस्त के बाद से इस मार्केट में सन्नाटा पसरा है

फोटो : माजिद मकबूल
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माजिद मकबूल

इस मार्केट में करीब 400 दुकानें हैं, जो दिन भर फलों और सब्जियों का आयात-निर्यात करते थे। लेकिन मंडी के अंदर स्थित सभी फ्रूट एसोसिएशनों के दफ्तर बंद पड़े हैं। मंडी के प्रवेश स्थल पर सीआरपीएफ के जवान तैनात हैं, मंडी की खुली जगह में भी सीआरपीएफ जवान ही नजर आते हैं। हर ट्रेडर और दुकान पर 5 से 10 कर्मचारी काम करते थे, लेकिन 5 अगस्त के बाद से वे बेरोजगार हैं। कभी-कभार कुछेक दुकानदार मंडी आते हैं और दुकानों को देखकर वापस चले जाते हैं।

कश्मीर फ्रूट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अनिल रैना बताते हैं कि, “4 अगस्त तक सबकुछ आम दिनों की तरह था और राज्य के अलग-अलग इलाकों से फलों से भरे ट्रक ईद से पहले यहां आते थे। लेकिन 5 अगस्त के बाद सारा फ्रूट सड़ने के कगार पर है।” रैना की भी इस मंडी में एक दुकान है। इम्पोर्टेड फ्रूट का कारोबार करने वाले रैना बताते हैं कि, “हर दिन यहां से 50-60 ट्रक उतरते थे, फिर वह फल श्रीनगर और दूसरे इलाकों में जाता था। लेकिन 5 अगस्त के बाद से इस पर ब्रेक लग गया है।”

उनका कहना है कि सबसे बड़ा नुकसान संचार माध्यमों पर पाबंदी के कारण हुआ है, क्योंकि इससे वे दूसरी फल मंडियों, व्यापारियों और बाजारों से बात ही नहीं कर पा रहे हैं। रैना कहते हैं, “आमतौर पर मैं हर दिन अपने मोबाइल से 50-60 कॉल दूसरी मंडियों में करता था, ताकि बाजार में फलों का अच्छा दाम मिल सकते, लेकिन 5 अगस्त के बाद मैं एक कॉल तक नहीं कर पाया हूं।”

मंडी में दुकान वाले एक और ट्रेडर का कहना था कि औसतन हर दिन 30-35 ट्रक आते थे और पूरी घाटी में यहां से फलों की सप्लाई होती थी। उन्होंने बताया कि मंडी सुबह 7 बजे से दोपहर एक बजे तक एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का कारोबार होता था। उन्होंने बताया कि मंडी बंद होने से कम से कम 3000 लोगों का रोजगार खत्म हो गया है। इसके अलावा दुकानों पर काम करने वाले भी बेरोजगार हो गए हैं।

इस ट्रेडर ने बताया, “इन दिनों इक्का-दुक्का ट्रक ही नजर आता है जो दूसरे इलाकों से फल-सब्जी लेकर आता है, इनमें आया सामान मंडी के बाहर खुली सड़क पर बेच दिया जाता है। बाकी सारा कारोबार बंद पड़ा है।”


श्रीनगर की फल-सब्जी मंडी में पसरा है सन्नाटा, सरकारी खरीद केंद्र पर सिर्फ मीडिया के लिए है हलचल

एक और दुकानदार जो अपनी दुकान चेक करने आया था उसने बताया कि,”इस मंडी की हालत ऐसी होती थी कि आपको चलने तक की जगह नहीं मिलती, क्योंकि हजारों लोग इस मंडी में होते थे, लेकिन अब देखिए क्या हालत है।”

इस मंडी में इन दिनो सिर्फ एक कोने में थोड़ी चहल-पहल दिखती है। यहां नेफेड (नेशनल एग्रीकल्चर कोआपरेटिव मार्केट फेडरेशन) और जम्मू-कशमीर के हार्टिकल्चर प्लानिंग एंड मार्केटिंग डिपार्टमेंट ने अपना केंद्र खोला है। इस केंद्र की स्थापना सरकार की नई योजना के तहत हुई जिसमें फसल उत्पादकों से सीधे माल खरीदा जाता है। इस खरीद केंद्र को 17 सितंबर को खोला गया है, और चौबीसों घंटे इसकी चौकसी सीआरपीएफ के जवान करते हैं।


जम्मू-कश्मीर सरकार ने सेब उत्पादकों के लिए 12 सितंबर को एक समर्थन योजना का ऐलान किया था। नेफेड के तहत इस योजना में 1.2 मिलियन टन सेब खरीदने का लक्ष्य रखा गया था। इसमें मार्केट के बिचौलियों की कोई भूमिका नहीं है।

करीब 8000 करोड़ के सालाना कारोबार वाला कश्मीर देश में सेब उत्पादन का सबसे बड़ा राज्य है। इससे कश्मीर के करीब 7 लाख परिवारों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है। 2017 के जम्मू-कश्मीर के आर्थिक सर्वे के मुताबिक 2016-17 में कश्मीर से करीब 6500 करोड़ के सेब का निर्यात हुआ था।

हार्टिकल्चर प्लानिंग एंड मार्केटिंग विभाग के एक अफसर ने बताया कि 17 सितंबर को केंद्र की स्थापना के बाद से करीब 300 सेब उत्पादकों का पंजीकरण किया गया है। इनमें पूरी घाटी के विभिन्न इलाकों के सेब उत्पादक हैं। लेकिन सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 17 से 23 सितंबर के बीच सेब की सिर्फ 7 खपत ही यहां पहुंची है, जिसमें कुल 637 डिब्बे सेब थे, जिनकी कीमत तकरीबन 4.57,052 रुपए है। वैसे तो यह योजना सेब उत्पादकों और खरीदारों के बीच सीधा सौदा कराती है और इसमें बिचौलिए नहीं होते, लेकिन छोटे वाहनों में अपनी फसल लेकर आए कुछ उत्पादकों को निराशा हाथ लगी। इन उत्पादको का कहना है कि उनकी फसल के लिए कोई खरीदार ही नहीं मिला, ऐसे में उन्हें फायदे के बजाय नुकसान उठाना पड़ा।

तंगमार से आए एक सेब उत्पादक ने बताया कि, “हम हर साल हजारों डिब्बे सेब पैदा करते हैं, लेकिन यहां तो सिर्फ 200 डिब्बे ही खरीदे गए और बाकी वापस कर दिए गए। ऐसे में हमें तो भारी नुकसान हुआ है। हम हमें खुद ही बाकी माल को वापस ले जाना पड़ेगा क्योंकि ट्रक तो चल नहीं रहे हैं।” इस सेब उत्पादक ने बताया कि फसल की लागत तक नहीं निकली है। इस तरह सेब उत्पादकों को करीब 60 फीसदी तक नुकसान उठाना पड़ रहा है।


इस मंडी में सब्जी का कारोबार करने वाले एक ट्रेडर ने बताया कि योजना की कुछ शर्ते ऐसी हैं जिन्हें पूरा करना हर उत्पादक के बस में नहीं है। इस ट्रेडर ने बताया कि सरकारी सेंटर को सिर्फ मीडिया को दिखाने के लिए खोला गया है, ताकि यह लगे कि सबकुछ सामान्य हो गया है। जबकि हकीकत यह है कि सबकुछ खत्म हो चुका है। तंगमार्ग का एक और उत्पादक अपनी फसल लेकर पारिमपुरा मंडी में सरकारी केंद्र पर आया था, लेकिन उसे भी निराशा ही हाथ लगी क्योंकि जैसा बताया जा रहा है वैसी खरीदारी इस केंद्र पर नहीं हो रही है।

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Published: 30 Sep 2019, 6:00 PM