बाबरी विध्वंस की सुनवाई कर रहे जज से सुप्रीम कोर्ट का सवाल, कैसे पूरी करेंगे तय सीमा में ट्रायल

सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी विध्वंस मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई के स्पेशल जज एसके यादव की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। साथ में कोर्ट ने जज से भी पूछा कि वे किस तरीके से ट्रायल को तय वक्त में पूरा करेंगे?

फोटो: सोशल मीडिया 
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या के बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सोमवार को लखनऊ की एक कोर्ट से पूछा कि वह बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती से संबंधित मुकदमे की सुनवाई किस तरह अप्रैल, 2019 की समय सीमा के भीतर पूरी करना चाहती है। कोर्ट ने निचली अदालत से यह रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में मांगी है।

जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने निचली अदालत के जज एसके यादव की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से भी जवाब मांगा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जज एसके यादव की पदोन्नति पर इस आधार पर रोक लगा दी थी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले उन्हें इस मुकदमे की सुनवाई पूरा करने का निर्देश दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि जब तक मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तब तक जज की पदोन्नति भी रुकी रहेगी।

जज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि अयोध्या मामले का ट्रायल निपटने तक उनका स्थानांतरण न किए जाने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश उनकी प्रोन्नति में आड़े आ रहा है। उन्होंने कोर्ट से आदेश मे बदलाव करने और हाई कोर्ट को उन्हें जिला जज पद पर प्रोन्नति करने का आदेश देने की मांग की है।

जज ने कहा कि वह 8 जून, 1990 को मुंसिफ मजिस्ट्रेट नियुक्त हुए थे। 28 साल का उनका बेदाग करियर है। उन्होंने ईमानदारी और निष्ठा से काम किया। अब वह सेवानिवृत्ति के मुकाम पर पहुंचने वाले हैं। उनके साथ नियुक्त हुए सहयोगी और जूनियर भी जिला जज नियुक्त हो चुके हैं। लेकिन उन्हें प्रमोशन नहीं दिया गया है। वे अब भी अतिरिक्त जिला एवं सत्र जज (अयोध्या प्रकरण) के पद पर काम कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल, 2017 को कहा था कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता आडवाणी, जोशी और उमा भारती पर 1992 के राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में आपराधिक साजिश के गंभीर आरोप में मुकदमा चलेगा और रोजाना सुनवाई करके इसकी कार्यवाही 19 अप्रैल, 2019 तक पूरी की जायेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की कार्रवाई को ‘अपराध’ बताते हुए कहा था कि इसने संविधान के ‘धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने’ को हिला कर रख दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने बीजेपी के इन वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप बहाल करने का सीबीआई का अनुरोध स्वीकार कर लिया था।

अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे के विध्वंस की घटना से संबंधित दो मुकदमे हैं। पहले मुकदमे में अज्ञात ‘कारसेवकों’ के नाम हैं, जबकि दूसरे मामले में बीजेपी नेताओं पर मुकदमा चल रहा है।

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