CAA पर सुप्रीम कोर्ट का तुरंत रोक से इनकार, मोदी सरकार को जारी किया नोटिस, जवाब देने के लिए 4 हफ्ते का दिया समय

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 140 से ज्यादा दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने आदेश पारित करते हुए कहा कि सीएए से जुड़े मामले में अब किसी भी हाई कोर्ट में सुनवाई नहीं होगी।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

देश भर में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन जारी है। वहीं बुधवार को सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 140 से ज्यादा दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सीएए पर फिलहाल रोक से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने इन सभी याचिकाओं पर जवाब देने के लिए मोदी सरकार को 4 हफ्ते का वक्त दिया है और कहा कि पांच हफ्ते बाद अगली सुनवाई की जाएगी।

सुनवाई शुरू होते ही अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि उन्हें अभी तक 144 में से 60 याचिकाओं की ही कॉपी मिली है। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि मुद्दा अभी ये है कि क्या मामले को संवैधानिक बेंच को भेजना चाहिए। साथ ही उन्होंने एनपीआर की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए, जो कि अप्रैल में शुरू होगी। वही अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यूपी में 40 हजार लोगों को नागरिकता देने की बात कही जा रही है, अगर ऐसा हुआ तो फिर कानून वापस कैसे होगा। इस दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने सुनवाई से पहले कोर्ट रूम में एकत्रित भीड़ पर आपत्ति जताई और कहा कि इतनी भीड़ में हम वकीलों को भी सुन पा रहे हैं।


वहीं अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने कोर्ट में जमा हुई भीड़ पर चिंता व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि माहौल को शांत होना चाहिए विशेषकर सुप्रीम कोर्ट में। उन्‍होंने चीफ जस्‍टिस बोबडे से कहा कि कोर्ट को कुछ निर्देश जारी करने होंगे कि कौन कोर्ट में आ सकता है कौन नहीं।

कपिल सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा कि नागरिकता देकर वापस नहीं ली जा सकती है। उन्होंने दलील दी कि इसपर कोई अंतरिम आदेश जारी होना चाहिए। सिब्बल ने कहा कि हम कानून पर रोक की मांग नहीं कर रहे हैं बल्कि इसे तीन महीने के लिए निलंबित कर दें। कोर्ट में बहस के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि कई राज्यों में प्रकिया शुरू हो गई है। सिब्बल ने कहा कहा कि ऐसे में सीएए प्रक्रिया पर तीन महीने के लिए रोक लगे।


वहीं चीफ जस्टिस ने कहा कि वह केंद्र की पूरी बात सुने कोई एकतरफा आदेश नहीं दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि सभी याचिकाओं को केंद्र के पास पहुंचना जरूरी है। वहीं, अटॉर्नी जनरल ने अपील की है कि कोर्ट को यह आदेश जारी करना चाहिए कि अब कोई नई याचिका दायर नहीं होनी चाहिए।

वहीं सीएए पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में वकील वैद्यनाथन ने कहा है कि बाहर मुसलमानों और हिंदुओं में ऐसा डर है कि एनपीआर की प्रक्रिया होती है तो उनकी नागरिकता पर सवाल होगा। उन्होंने कहा कि फिलहाल एनपीआर को लेकर कोई साफ-साफ गाइडलाइंस नहीं हैं।

वहीं सुप्रीम कोर्ट में सीएए पर दायर याचिकाओं को अलग-अलग कैटेगरी में बांट दिया है। इसके तहत असम, नॉर्थईस्ट के मसले पर अलग सुनवाई की जाएगी। उत्तर प्रदेश में जो सीएए की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है उसको लेकर भी अलग से सुनवाई की जाएगी। अदालत ने सभी याचिकाओं की लिस्ट जोन के हिसाब से मांगी है, जो भी बाकी याचिकाएं हैं उनपर केंद्र को नोटिस जारी किया जाएगा।


क्या है नया नागरिकता कानून?

सीएए में मोदी सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक प्रताड़ना झेल रहे हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया है। इस कानून में इन पड़ोसी देशों के मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। 10 जनवरी से ये कानून लागू हो चुका है।

क्यों हो रहा है विरोध?

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि भारत में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। ये देश के संविधान का उल्लंघन हैं। इसलिए इस कानून को रद्द कर इसमें मुसलमानों को भी शामिल किया जाए। साथ ही कई अन्य देश में भी लोग प्रताड़ित है उन्हें भी भारत में जगह मिलनी चाहिए।


किसने दी चुनौती

बता दें कि इस कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में मुस्‍लिम लीग, कांग्रेस नेता जयराम रमेश, आरजेडी नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल असम स्‍टूडेंट्स यूनियन, पीस पार्टी, एसएफआई, और सीपीआई भी शामिल हैं।

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