आवारा कुत्तों पर 'सुप्रीम' सुनवाई, SG बोले- बच्चे मर रहे, सिब्बल ने की आदेश पर रोक की मांग, फैसला सुरक्षित

SG ने कुत्तों के काटने और रेबीज से मौत के बढ़ते आंकड़े पेश करते हुए आदेश को जरूरी बताया, जबकि कपिल सिब्बल और अन्य वकीलों ने इसे अव्यवहारिक और नियमों के खिलाफ बताया। अदालत ने फिलहाल आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा कि सभी पहलुओं पर सुनवाई के बाद ही अंतिम निर्णय होगा।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर शेल्टर होम में रखने के आदेश पर गुरुवार को एक बार फिर बहस हुई। सुनवाई के दौरान अदालत ने फिलहाल अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। आपको बता दें, इस मामले ने समाज को दो हिस्सों में बांट दिया है। एक ओर वे लोग हैं जो खुद को पीड़ित बताते हैं और आवारा कुत्तों से परेशान हैं, वहीं दूसरी ओर एनिमल लवर्स हैं जो इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि यह केवल असुविधा का मामला नहीं है बल्कि जानलेवा खतरा है। उन्होंने कहा कि 2024 में देशभर में कुत्तों के काटने के 37 लाख मामले दर्ज किए गए और रेबीज से 305 लोगों की मौत हुई, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मॉडल के अनुसार वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।

उनका कहना था कि नसबंदी से रेबीज पर रोक नहीं लगती, चाहे कुत्तों को टीका ही क्यों न लगाया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि कोई जानवरों से नफरत नहीं करता, लेकिन सभी घरों में उन्हें रखना संभव नहीं है। खुले में खेलने वाले बच्चे अक्सर इनका शिकार बन जाते हैं, और इस बात के सबूत वीडियो में मौजूद हैं।

वहीं वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बिना नोटिस स्वतः संज्ञान लेकर आदेश पारित करने को उचित नहीं बताया। उन्होंने कहा कि इस आदेश पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि फिलहाल पर्याप्त शेल्टर होम नहीं हैं। जहां शेल्टर हैं, वहां भी जगह की कमी के कारण कुत्ते और आक्रामक हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि वह प्रोजेक्ट काइंडनेस की ओर से पेश हो रहे हैं और मानते हैं कि बाध्यकरण एक उपाय हो सकता है, लेकिन इसे व्यवस्थित तरीके से लागू करना जरूरी है।

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों में रेबीज से मौत के दावे वास्तविकता से मेल नहीं खाते। संसद में दिए गए जवाब में साफ कहा गया है कि रेबीज से कोई मौत नहीं हुई। उन्होंने माना कि कुत्तों का काटना खतरनाक है, लेकिन हालात को जितना भयावह दिखाया जा रहा है, वास्तविकता उतनी नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस मुद्दे पर नियमों को खुलेआम नजरअंदाज किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि नियम लागू करने को लेकर उनका रुख क्या है। जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा कि यह समस्या नगर निगम की निष्क्रियता का नतीजा है और स्थानीय अधिकारी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि यहां हस्तक्षेप दर्ज कराने आए हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

अदालत ने साफ किया कि मामला अभी खत्म नहीं हुआ है और सभी पहलुओं पर सुनवाई की जाएगी। फिलहाल अंतरिम आदेश जल्द जारी किया जाएगा। इस बीच, वकील अमन लेखी, कॉलिन गोंसाल्विस और अन्य ने भी हालिया आदेश का विरोध जताया है, जबकि कुछ पक्षों ने आवारा कुत्तों के हमलों से बचाव के लिए इसे जरूरी बताया है।