उद्धव ठाकरे की याचिका पर बुधवार को विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट, 'EC अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में रहा विफल'

याचिका में तर्क दिया गया है कि चुनाव आयोग अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा है और उसने अपनी संवैधानिक स्थिति को कम करने के तरीके से काम किया है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट उद्धव ठाकरे की उस याचिका पर बुधवार को सुनवाई करेगा करने पर सहमत हो गया, जिसमें भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) के एकनाथ शिंदे गुट को आधिकारिक शिवसेना के रूप में मान्यता देने के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। ठाकरे का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ से कहा कि अगर ईसीआई के आदेश पर रोक नहीं लगाई गई तो वे बैंक खाते और अन्य चीजें अपने कब्जे में ले लेंगे। सिब्बल ने कहा, मेरा एक ही अनुरोध है, इस मामले को कल सुबह संविधान पीठ के सामने उठाएं।

पीठ में न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि वे संविधान पीठ को बाधित नहीं करना चाहते हैं क्योंकि तीन न्यायाधीश प्रतीक्षा कर रहे हैं और उन्होंने कहा, हम संविधान पीठ में सुनवाई को जल्द समाप्त कर देंगे और कल याचिका पर सुनवाई करेंगे। सिब्बल ने बेंच से मंगलवार को ही इस मामले को उठाने का अनुरोध किया था।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हमने इसे अभी तक नहीं पढ़ा है। पीठ ने बुधवार को अपराह्न् 3.30 बजे मामले की सुनवाई करने का फैसला किया।

अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी के माध्यम से दायर याचिका में ठाकरे ने कहा कि, "चुनाव आयोग यह मानने में विफल रहा है कि याचिकाकर्ता को पार्टी का भारी समर्थन प्राप्त है। याचिकाकर्ता के पास प्रतिनिधि सभा में भारी बहुमत है, जो शीर्ष प्रतिनिधि निकाय है, जो प्राथमिक सदस्यों और पार्टी के अन्य हितधारकों की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करता है। प्रतिनिधि सभा पार्टी संविधान के अनुच्छेद 8 के तहत मान्यता प्राप्त शीर्ष निकाय है। याचिकाकर्ता को प्रतिनिधि सभा में लगभग 200 सदस्यों में से 160 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है।"


याचिका में तर्क दिया गया है कि चुनाव आयोग अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा है और उसने अपनी संवैधानिक स्थिति को कम करने के तरीके से काम किया है।

17 फरवरी को, चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को शिवसेना पार्टी का नाम और धनुष और तीर का चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिया था।

17 फरवरी को पारित ईसीआई के आदेश पर अंतरिम रोक लगाने की मांग वाली याचिका में कहा गया है, "ईसीआई ने 2018 के पार्टी संविधान की अवहेलना की है। इस आधार पर कि ऐसा संविधान अलोकतांत्रिक है और यह आयोग को सूचित नहीं किया गया था। ये टिप्पणियां पूरी तरह से गलत हैं क्योंकि संविधान में संशोधन स्पष्ट रूप से आयोग को 2018 में ही सूचित किए गए थे और याचिकाकर्ता इस संबंध में स्पष्ट सबूत पेश करेगा।"

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