सुप्रीम कोर्ट ने ट्रेनिंग के दौरान दिव्यांग हुए कैडेटों का लिया संज्ञान, केंद्र और तीनों सेनाओं को नोटिस जारी

कमीशन से पहले दिव्यांग होने वाले कैडेट्स पूर्व सैनिकों को मिलने वाली सुविधाओं के हकदार नहीं होते। इस वजह से वे पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ईसीएचएस) के तहत मिलने वाली सैन्य सुविधाओं और सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त इलाज के लिए भी पात्र नहीं हो पाते।

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रेनिंग के दौरान दिव्यांग हुए कैडेटों का लिया संज्ञान, केंद्र और तीनों सेनाओं को नोटिस जारी
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नवजीवन डेस्क

सैन्य प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांगता के चलते बाहर किए गए कैडेटों की स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार के साथ-साथ वायुसेना, थल सेना और नौसेना प्रमुखों को नोटिस जारी किया है। नियमानुसार कमीशन से पहले दिव्यांग होने वाले कैडेट्स पूर्व सैनिकों को मिलने वाली सुविधाओं के हकदार नहीं होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर उठाया है। रिपोर्ट में बताया गया था कि 1985 से अब तक करीब 500 अधिकारी कैडेटों को प्रशिक्षण के दौरान हुई विभिन्न प्रकार की दिव्यांगताओं के चलते मेडिकल आधार पर संस्थानों से छुट्टी दे दी गई है। ये कैडेट कभी एनडीए (नेशनल डिफेंस एकेडमी) और आईएमए (इंडियन मिलिट्री एकेडमी) जैसे प्रतिष्ठित सैन्य संस्थानों में प्रशिक्षण ले रहे थे।


सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने सवाल किया कि क्या ट्रेनी कैडेट्स के लिए कोई बीमा पॉलिसी है? हम चाहते हैं कि बहादुर लोग सेना में शामिल हों, लेकिन अगर जरूरत पड़ने पर उन्हें कोई आर्थिक लाभ ही नहीं मिलेगा, तो यह उनके मनोबल को कमजोर करेगा। इसके साथ ही बेंच ने सरकार से यह भी पूछा कि प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांग हुए कैडेट्स को सेना में किसी अन्य पद पर नौकरी देने की संभावना पर क्या विचार किया जा सकता है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 4 सितंबर को होगी।

पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि वे प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान दिव्यांगता का शिकार होने वाले कैडेट्स को चिकित्सा खर्चों को पूरा करने के लिए दी जाने वाली 40,000 रुपये की अनुग्रह राशि को बढ़ाने का निर्देश प्राप्त करें। शीर्ष अदालत ने केंद्र से इन दिव्यांग उम्मीदवारों के पुनर्वास के लिए एक योजना पर भी विचार करने को कहा, ताकि उनका इलाज पूरा होने के बाद उन्हें ‘डेस्क जॉब’ या रक्षा सेवाओं से संबंधित किसी अन्य कार्य में वापस लिया जा सके।


नियमों के अनुसार दिव्यांग कैडेट्स पूर्व सैनिक (ईएसएम) का दर्जा पाने के हकदार नहीं हैं, इसी वजह से वे पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ईसीएचएस) के तहत मिलने वाली सैन्य सुविधाओं और सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त इलाज के लिए पात्र भी नहीं हो पाते। ऐसा इसलिए क्योंकि वे अधिकारी के रूप में कमीशन प्राप्त करने से पहले प्रशिक्षण के दौरान ही दिव्यांग हो चुके थे।

शीर्ष अदालत ने एक मीडिया रिपोर्ट में उठाए गए इन कैडेट्स के मुद्दे पर 12 अगस्त को स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की थी। ये कैडेट कभी राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) जैसे देश के शीर्ष सैन्य संस्थानों में प्रशिक्षण का हिस्सा थे।मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1985 से अब तक लगभग 500 अधिकारी कैडेट्स को प्रशिक्षण के दौरान हुई विभिन्न प्रकार की दिव्यांगता के कारण चिकित्सा आधार पर सैन्य संस्थानों से बाहर कर दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार अब ये लोग बढ़ते चिकित्सा बिलों का सामना कर रहे हैं और उन्हें दी जा रही मासिक अनुग्रह राशि बेहद कम है।


रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेले एनडीए में ही लगभग 20 ऐसे कैडेट हैं, जिन्हें 2021 से जुलाई 2025 के बीच केवल पांच वर्षों में चिकित्सा आधार पर सेवा से बाहर किया गया। मीडिया रिपोर्ट में इन कैडेट्स की दुर्दशा पर और प्रकाश डाला गया है क्योंकि नियमों के अनुसार वे पूर्व सैनिकों (ईएसएम) का दर्जा पाने के हकदार नहीं हैं क्योंकि उनकी दिव्यांगता अधिकारी के रूप में सेवा में आने से पहले प्रशिक्षण के दौरान हुई थीं। भूतपूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना (ईसीएचएस) के तहत सैन्य सुविधाओं और सूचीबद्ध अस्पतालों में मुफ्त इलाज के लिए पात्र होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ईएसएम दर्जा पाने के हकदार इस श्रेणी के सैनिकों के विपरीत इन अधिकारी कैडेट्स को दिव्यांगता की प्रकृति के आधार पर 40,000 रुपये प्रति माह तक का अनुग्रह राशि का भुगतान मिलता है, जो उनकी बुनियादी जरूरतों को देखते हुए बहुत कम है।