'जनप्रतिनिधियों की अभिव्यक्ति पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की नहीं है जरूरत', सुप्रीम कोर्ट का फैसला

याचिका पर 15 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। बेंच की यह राय थी कि तथ्यात्मक पृष्ठभूमि की जांच किए बिना केंद्रीय दिशा-निर्देश तय करना मुश्किल था और सिर्फ मामला-दर-मामला आधार पर यह फैसला ले सकता है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सासंदों/ विधायकों और उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों की बोलने की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं है। क्या राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सासंदों/ विधायकों और उच्च पद पर बैठे लोगों की बोलने की आजादी पर कोई अंकुश लगाया जा सकता है? इसपर 5 जजों के संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है।

इस याचिका पर 15 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। बेंच ने 28 सितंबर को कहा था कि सरकार के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों या राजनीतिक दल के अध्यक्षों समेत सार्वजनिक नेताओं को सार्वजनिक रूप से असावधानीपूर्ण, अपमानजनक और आहत करने वाले बयान देने से रोकने के लिए ‘थिन एयर’ में सामान्य दिशा-निर्देश तैयार करना ‘मुश्किल’ साबित हो सकता है।


बेंच की यह राय थी कि तथ्यात्मक पृष्ठभूमि की जांच किए बिना केंद्रीय दिशा-निर्देश तय करना मुश्किल था और सिर्फ मामला-दर-मामला आधार पर यह फैसला ले सकता है। जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस भूषण आर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी राम सुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा था कि कब किसके अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को किस हद तक अंकुश लगाना है। इस लेकर कोई आम आदेश नहीं दिया जा सकता है।

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