समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, सरकार को निर्देश, 'समलैंगिक जोड़ों के साथ न हो भेदभाव, बनाएं कमेटी'
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र सरकार समलैंगिक संघों में व्यक्तियों के अधिकारों और हकदारियों को तय करने के लिए एक समिति का गठन करेगी।
![फोटो: सोशल मीडिया](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2022-05%2F2075047f-7ee7-41b8-9fb5-d21c37483443%2FSupreme_Court___Copy.jpg?rect=0%2C0%2C1160%2C653&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
देश में समलैंगिक विवाह की मांग वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुना दिया है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के लिए वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच में कोई भेदभाव न हो और सरकार को समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि सरकार समलैंगिक समुदाय के लिए हॉटलाइन बनाएगी, हिंसा का सामना करने वाले समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर 'गरिमा गृह' बनाएगी और यह सुनिश्चित करेगी कि अंतर-लिंग वाले बच्चों को ऑपरेशन के लिए मजबूर न किया जाए।
सीजेआई ने कहा, "यौन अभिविन्यास के आधार पर संघ में प्रवेश करने का अधिकार प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। विषमलैंगिक संबंधों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को व्यक्तिगत कानूनों समेत मौजूदा कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है। समलैंगिक जोड़े समेत अविवाहित जोड़े संयुक्त रूप से एक बच्चे को गोद ले सकते हैं।”
CJI चंद्रचूड़ ने कहा, "केंद्र सरकार समलैंगिक संघों में व्यक्तियों के अधिकारों और हकदारियों को तय करने के लिए एक समिति का गठन करेगी। यह समिति राशन कार्डों में समलैंगिक जोड़ों को 'परिवार' के रूप में शामिल करने, समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाने, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि से मिलने वाले अधिकारों पर विचार करेगी। समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा।"
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत द्वारा निर्देश जारी करने के रास्ते में नहीं आ सकता। अदालत कानून नहीं बना सकती बल्कि केवल उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है।"
सीजेआई ने कहा, "यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है। अगर विशेष विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा। विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह संसद को तय करना है। इस न्यायालय को विधायी क्षेत्र में प्रवेश न करने के प्रति सावधान रहना चाहिए।"
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