तेलंगाना: एसआईटी ने खोला भानुमती का पिटारा! खुले कई राज

एसआईटी के खुलासे से पता चलता है कि 2018 और 2023 के बीच 6,500 से ज्यादा लोगों के फोन टैप किए गए जिनमें राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों और उनके परिवारों, पार्टी के असंतुष्टों, पत्रकारों, व्यापारियों, मशहूर हस्तियों से लेकर जज तक थे।

फोटो: सोशल मीडिया
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तेलंगाना में दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत से भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के दस साल के शासन का अंत हुआ और इसके अगले ही दिन हैदराबाद में राज्य पुलिस की विशेष खुफिया शाखा (एसआईबी) की असामान्य गतिविधियां देखी गईं। एक घंटे से ज्यादा समय तक सभी सीसीटीवी कैमरे बंद रहे और फोन टैपिंग से जुड़ी संवेदनशील जानकारी वाली 60 से ज्यादा हार्ड डिस्क को नष्ट किया गया।

एसआईटी के खुलासे से पता चलता है कि 2018 और 2023 के बीच 6,500 से ज्यादा लोगों के फोन टैप किए गए जिनमें राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों और उनके परिवारों, पार्टी के असंतुष्टों, पत्रकारों, व्यापारियों, मशहूर हस्तियों से लेकर जज तक थे। इस जाल में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ए. रेवंत रेड्डी, उनके खास समर्थक, बीजेपी और कांग्रेस के सदस्य, साथ ही सत्तारूढ़ बीआरएस के कुछ नेता, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी और एमएलसी के. कविता और उनका परिवार भी शामिल था। इस अभियान को अंजाम दिया एक विशेष दल ने और इसके तहत कथित तौर पर एक लाख से ज्यादा फोन कॉल टैप किए गए।

एसआईटी के सामने गवाही देने वाले हाई-प्रोफाइल लोगों में सबसे ताजा नाम केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री और बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय कुमार का है। कांग्रेस अध्यक्ष बी. महेश कुमार गौड़ ने भी गवाही दी। मामले के मुख्य अभियुक्त, पूर्व एसआईबी प्रमुख टी. प्रभाकर राव, जो राज्य में सत्ता परिवर्तन के फौरन बाद अमेरिका चले गए थे, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद हैदराबाद लौटने पर मजबूर हुए। कभी उनके निर्देशों का पालन करने वाले उनके जूनियर अधिकारी राज पर राज खोल रहे हैं, लेकिन राव चुप हैं।

राव, जिन्होंने निगरानी के लिए एसआईबी के भीतर अपने भरोसेमंद सहयोगियों की एक टीम बनाई थी, का दावा है कि वह ‘उच्च अधिकारियों’ के आदेश पर काम कर रहे थे। पूर्व पुलिस उपायुक्त पी. राधाकिशन राव (केसीआर के मुख्य सुरक्षा अधिकारी), अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक भुजंग राव और थिरुपथन्ना, और उप पुलिस अधीक्षक प्रणीत राव पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं। इन्होंने अवैध रूप से जासूसी करने और सबूत मिटाने की बात मानी है। भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5(2) के तहत फोन टैपिंग के लिए गृह मंत्रालय की पूर्व अनुमति जरूरी है।


दिवंगत बीजेपी नेता अरुण जेटली की शिकायत के बाद गठित गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की 2013 की रिपोर्ट में कहा गया था कि निर्वाचित प्रतिनिधियों की निगरानी के लिए लोकसभा अध्यक्ष या संबंधित विधानसभा अध्यक्ष की पूर्व अनुमति जरूरी है। लेकिन बीआरएस ने ऐसा नहीं किया।

पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर ‘भगवा’ हंगामा

बीजेपी फिर से वही कर रही है, जिसमें वह माहिर है- सांप्रदायिक राजनीति। उसकी नजर तेलंगाना में पिछड़े वर्गों के लिए प्रस्तावित आरक्षण बढ़ाने पर है। बंदी संजय ने कहा, ‘कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र में पिछड़े वर्गों के लिए 42 फीसद आरक्षण का वादा किया था। लेकिन अब इसका 10 फीसद मुसलमानों को दिया जा रहा है। यानी पिछड़े वर्गों को केवल 32 फीसद आरक्षण मिलेगा।’ उनका दावा हैरान करने वाला है क्योंकि प्रस्तावित बिल में मुसलमानों के लिए कोटे का कोई जिक्र नहीं है।

विधेयक का आधार सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार, राजनीतिक और जातिगत (एसईईईपीसी) सर्वेक्षण 2024 है, जिसके मुताबिक अनुसार पिछड़ी जातियों में हिन्दू 46.25 फीसद और मुस्लिम 10 फीसद हैं। विधानसभा ने मार्च 2025 में इस बिल को पास किया था, जिसमें नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़ी जातियों के लिए कोटा 23 फीसद से बढ़ाकर 42 फीसद करने की मांग की गई थी। तब से, राज्यपाल जिष्णु देव वर्मा ने इस विधेयक को राष्ट्रपति मुर्मू के पास भेज दिया है, और कांग्रेस सरकार राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए दबाव बढ़ा रही है। बीजेपी, पिछड़ी जातियों के मुसलमानों को पिछड़ी जाति कोटे में शामिल करने का विरोध कर रही है और कांग्रेस पर हिन्दू पिछड़ी जातियों के लाभों को कम करके मुसलमानों को देने की साजिश रचने का आरोप लगा रही है।


कोटे की निर्धारित 50 फीसद की सीमा को देखते हुए इसके लिए विधेयक को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करना होगा, जैसा कि तमिलनाडु में किया गया, जहां आरक्षण सीमा बढ़ाकर 69 फीसद की गई।

संजय ने कहा, ‘कांग्रेस का तथाकथित ‘पिछड़ी जातियों का विधेयक’ पिछड़ों को महज 5 फीसद आरक्षण देता है। इसका इस्तेमाल मुसलमानों को 10 फीसद आरक्षण देने के लिए किया जा रहा है। भाजपा ने हमेशा मुस्लिम आरक्षण का विरोध किया है। हम पिछड़ी जातियों के लिए पूरे 42 फीसद आरक्षण की मांग करते हैं; अन्यथा, हम विधेयक को रोकेंगे। हमारा रुख साफ है। धर्म-आधारित आरक्षण संविधान की भावना के विरुद्ध है।’ समझ रहे हैं इस विडंबना को!