CWC की अहम बैठक आज, नए ‘वीबी-जी राम जी’ कानून पर आंदोलन की रणनीति तय करेगी कांग्रेस, कई और मुद्दों पर भी चर्चा संभव

कांग्रेस इस बैठक में महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट, 2005 (मनरेगा) को खत्म करने के फैसले के खिलाफ अपने आंदोलन की दिशा और रूपरेखा तय कर सकती है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की अहम बैठक आज यानी शनिवार को आयोजित की जा रही है। इस बैठक में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के साथ-साथ विभिन्न स्तरों के वरिष्ठ नेता और संगठन के प्रमुख पदाधिकारी शामिल होंगे। खबरों की मानें तो, बैठक में मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों की समीक्षा की जाएगी और केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस की आगे की रणनीति पर मंथन भी होगा।

बैठक का एक प्रमुख एजेंडा मनरेगा की जगह लाए गए नए कानून ‘वीबी-जी राम जी’ को लेकर पार्टी की रणनीति तय करना है। कांग्रेस ने इस कानून के खिलाफ देशभर में विरोध-प्रदर्शन करने का फैसला किया है और CWC बैठक में इसके एक्शन प्लान को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है।

कांग्रेस शासित राज्यों के सीएम भी होंगे बैठक में मौजूद 

CWC की इस बैठक में कांग्रेस शासित राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के अलावा सभी प्रदेश कांग्रेस कमेटियों (PCC) के अध्यक्ष भी मौजूद रहेंगे। खास बात यह है कि यह बैठक 2026 में असम, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले हो रही है, जिससे इसकी राजनीतिक अहमियत और बढ़ जाती है।

खबरों के मुताबिक कांग्रेस इस बैठक में महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट, 2005 (मनरेगा) को खत्म करने के फैसले के खिलाफ अपने आंदोलन की दिशा और रूपरेखा तय कर सकती है।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस नए कानून पर कड़ा विरोध जताया है

दरअसल, यूपीए सरकार के दौर में लागू मनरेगा की जगह केंद्र सरकार ने ‘विकासशील भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ विधेयक पेश किया था, जिसे हाल ही में संसद के मानसून सत्र 2025 में पारित किया गया। इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी इस कानून को अपनी मंजूरी दे दी है।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस नए कानून पर कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि मनरेगा से महात्मा गांधी का नाम हटाया जाना उनके सम्मान का अपमान है। इस योजना में केंद्र सरकार की भूमिका पहले जैसी नहीं होगी। नए कानून के अनुसार, योजना की फंडिंग केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 के अनुपात में साझा की जाएगी। साथ ही, कानून लागू होने की तारीख से छह महीने के भीतर राज्यों को इसके नियमों के अनुरूप अपनी-अपनी योजनाएं तैयार करनी होंगी।

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