मोदी सरकार जिस बजट को बता रही शानदार, उसमें की गई है आंकड़ों की बाजीगरी! हेल्थ बजट 137% कैसे बढ़ा? जानें सच

हेल्थ बजट में हेल्थ मिनिस्ट्री और उसके अंदर आने वाले विभाग की बजट की घोषणा की जाती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस बार वित्त मंत्री ने हेल्थ एंड वेलबीइंग पर खर्च बता दिया और इसमें उस मंत्रालय और विभाग का बजट भी जोड़ लिया गया, जो हेल्थ मिनिस्ट्री के अंदर में आते ही नहीं हैं।

फोटो: Getty Images
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नवजीवन डेस्क

केंद्र की मोदी सरकार जिस बजट का काफी शानदार बता रही है, लेकिन सरकार ने इसमें आंकड़ों की जादूगरी की है। वो किस तरह से आंकड़ों में खेल किया गया है वो आपको आगे बताते हैं। सरकार ने जो विभाग और मंत्रालय, हेल्थ मिनिस्ट्री का हिस्सा नहीं है, उसका खर्च भी हेल्थ बजट में जोड़कर दिखा दिया है। जिसके बाद स्वास्थ्य का बजट बढ़कर 137 प्रतिशत हो गई। जबकि पिछली बार स्वास्थ्य पर 94,452 करोड़ रुपए खर्च किए थे। निर्मला सीतारमण की इस बात पर खूब तालियां बजीं, लेकिन आंकड़ों का खेल समझिए।

हेल्थ बजट के बारे में जब वित्तमंत्री बताते है तो उसमें सिर्फ हेल्थ मिनिस्ट्री और उसके अंदर आने वाले विभाग की बजट की घोषणा की जाती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इस बार वित्त मंत्री ने हेल्थ एंड वेलबीइंग पर खर्च बता दिया और इसमें उस मंत्रालय और विभाग का बजट भी जोड़ लिया गया, जो हेल्थ मिनिस्ट्री के अंदर में आते ही नहीं हैं। कैसे, चलिए आपको बताते हैं।


स्वास्थ्य बजट में स्वास्थय के अलावा आयुष मिनिस्ट्री, डिपार्टमेंट ऑफ ड्रिंकिंग वॉटर एंड सैनिटेशन और कोरोना वैक्सीन पर होने वाले खर्च को भी जोड़ लिया गया है। जबकि आयुष मंत्रालय और डिपार्टमेंट ऑफ ड्रिंकिंग वॉटर एंड सैनिटेशन अलग मंत्रालय में आते हैं।

इस बार हेल्थ मिनिस्ट्री को 73,931 करोड़ रुपए मिले हैं। हेल्थ रिसर्च पर 2,663 करोड़ रुपए, आयुष मंत्रालय पर 2,970 करोड़, कोरोना वैक्सीनेशन पर 35,000 करोड़, ड्रिंकिंग वॉटर एंड सैनिटेशन पर 60,030 करोड़, न्यूट्रीशन पर 2,700 करोड़, वॉटर और सैनिटेशन पर 36,022 करोड़ और हेल्थ पर 13,192 करोड़ का बजट ऐलान किया है। सभी को अगर जोड़ा जाए तो बजट पहुंचता है 2,23,846 करोड़। जो पिछले साल के मुकाबले 137 प्रतिशता का इजाफा हुआ है।

बता दें कि स्वास्थ्य में 2.23 लाख करोड़ रुपयों में पेयजल, स्वच्छता और टीकाकरण को भी जोड़ा गया है, जबकि ये अलग होने चाहिए थे क्योंकि जब बीमारी और इलाज की बात आती है तो स्वास्थ्य बजट पर ज़ोर देना जरूरी था, आम जनता को उम्मीद होती है कि उसे बेहतर इलाज मिले, अस्पतालों में डॉक्टर उपलब्ध हों, ऐसे में स्वास्थ्य बजट को बढ़ाया जाना चाहिए था।

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